दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High-Court) ने रेस्टोरेंट और होटल एसोसिएशनों (Restaurant Association) से तीखा सवाल पूछा है। अदालत ने कहा कि जब किसी उत्पाद की कीमत पहले से तय (MRP) होती है, तो फिर ग्राहकों से उस पर अतिरिक्त रकम कैसे वसूली जा सकती है और यह राशि सर्विस चार्ज के तौर पर क्यों नहीं मानी जानी चाहिए। मुख्य न्यायाधीश डी.के. उपाध्याय और जस्टिस तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने यह टिप्पणी उस समय की, जब नेशनल रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया और फेडरेशन ऑफ होटल्स एंड रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया की अपील पर सुनवाई हो रही थी।

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दिल्ली हाईकोर्ट ने रेस्टोरेंट्स और होटलों द्वारा ग्राहकों से वसूले जा रहे सर्विस चार्ज को लेकर कड़ी टिप्पणी की है। अदालत ने कहा कि मार्च में दिए गए आदेश के मुताबिक, रेस्टोरेंट्स छिपे हुए या जबरन तरीके से बिल में सर्विस चार्ज नहीं जोड़ सकते, क्योंकि यह जनहित के खिलाफ है।

शुक्रवार को हुई सुनवाई में चीफ जस्टिस डी.के. उपाध्याय और जस्टिस तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने कहा कि रेस्टोरेंट्स ग्राहकों से तीन तरह के चार्ज वसूल रहे हैं. बेची गई खाद्य सामग्री की कीमत, AC सुविधा का खर्च, और खाना परोसने के नाम पर सर्विस चार्ज। बेंच ने सवाल उठाया कि जब मालिक अपने रेस्टोरेंट में आने वाले व्यक्ति को मिलने वाले अनुभव के लिए एमआरपी से अधिक कीमत पहले ही वसूल रहे हैं, तो उसके बाद सेवा के नाम पर अलग से सर्विस चार्ज क्यों लिया जा रहा है।

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इससे पहले 28 मार्च को दिए गए आदेश में भी बेंच ने कहा था कि सर्विस चार्ज वसूलना उपभोक्ताओं पर दोहरी मार है। उन्हें सर्विस टैक्स के साथ-साथ जीएसटी भी देना पड़ता है। अदालत ने उपभोक्ता शिकायतों और रेस्टोरेंट्स के बिलों का हवाला देते हुए कहा कि सर्विस चार्ज मनमाने ढंग से और जबरन वसूला जा रहा है। ऐसे में कोर्ट मूकदर्शक बनकर नहीं रह सकता।

सिंगल जज के आदेश को चुनौती

यह मामला दरअसल उन संस्थाओं की अपील से जुड़ा है, जो सिंगल जज के उस आदेश को चुनौती दे रही हैं, जिसमें कहा गया था कि सर्विस चार्ज और टिप पूरी तरह स्वैच्छिक हैं और इन्हें ग्राहक पर थोपना अवैध है। केंद्र सरकार की ओर से पेश वकील ने हाईकोर्ट को बताया कि आदेश के बावजूद कई रेस्टोरेंट अभी भी सर्विस चार्ज वसूल रहे हैं और इसे ग्राहकों पर जबरन थोपा जा रहा है। वहीं, रेस्टोरेंट एसोसिएशन की तरफ से पेश वकील ने दलील दी कि सेंट्रल कंज्यूमर प्रोटेक्शन अथॉरिटी कोई प्राइस कंट्रोल अथॉरिटी नहीं है, और सर्विस चार्ज इसलिए लिया जाता है क्योंकि ग्राहक रेस्टोरेंट में बैठकर सुविधाओं का उपयोग करते हैं।

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दिल्ली हाईकोर्ट के अहम सवाल

रेस्टोरेंट एसोसिएशन की ओर से पेश वकील ने दलील दी कि अतिरिक्त राशि अनुभव और वातावरण के लिए ली जाती है। लेकिन अदालत ने टिप्पणी की कि माहौल, संगीत, बैठने की जगह और मेहमाननवाजी जैसी चीजें तो सर्विस चार्ज का ही हिस्सा होनी चाहिए। फिर MRP से ऊपर वसूले गए 80 रुपये किस मद में गिने जाएंगे? रेस्टोरेंट एसोसिएशन की ओर से पेश वकील ने यह भी कहा कि यह मामला पूरी तरह से कॉन्ट्रैक्ट का है। ग्राहक चाहे तो रेस्टोरेंट जाए, चाहे तो न जाए। हालांकि, केंद्र सरकार की ओर से पेश वकील ने कोर्ट को बताया कि सिंगल जज के आदेश के बावजूद कई रेस्टोरेंट अब भी सर्विस चार्ज जबरन वसूल रहे हैं, जबकि यह पूरी तरह से स्वैच्छिक होना चाहिए। कोर्ट ने पहले 28 मार्च को अपने आदेश में कहा था कि सर्विस चार्ज वसूलना उपभोक्ताओं के लिए दोहरी मार है, क्योंकि उन्हें सर्विस टैक्स के साथ-साथ जीएसटी भी देना पड़ता है। अदालत ने कहा था कि सर्विस चार्ज मनमाने ढंग से और जबरन वसूला जा रहा है, ऐसे में कोर्ट मूकदर्शक नहीं रह सकता।

सिंगल जज ने दिया था अहम आदेश

इससे पहले दिल्ली हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने मार्च 2025 में सेंट्रल कंज्यूमर प्रोटेक्शन अथॉरिटी (CCPA) की 2022 की गाइडलाइंस को बरकरार रखा था। उसमें कहा गया था कि सर्विस चार्ज ऑटोमैटिक या डिफॉल्ट रूप से बिल में नहीं जोड़ा जा सकता। अगर ग्राहक स्वेच्छा से टिप देना चाहे, तो दे सकता है। बिल में जबरन सर्विस चार्ज शामिल करना गैरकानूनी है। कई बार ग्राहक इसे सरकारी टैक्स समझकर भुगतान कर देते हैं, जो भ्रामक है।

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सरकार और एसोसिएशन की दलीलें

केंद्र सरकार की ओर से पेश वकील ने कोर्ट को बताया कि सिंगल बेंच के आदेश के बावजूद कई रेस्टोरेंट अब भी सर्विस चार्ज जबरन वसूल रहे हैं। वहीं, रेस्टोरेंट एसोसिएशन की तरफ से कहा गया कि यह मामला पूरी तरह से कॉन्ट्रैक्ट का है—ग्राहक चाहे तो सेवाएं ले, चाहे तो न ले। हाईकोर्ट ने कहा कि यह मामला उपभोक्ताओं के अधिकारों और पारदर्शिता से जुड़ा है। फिलहाल, मामले की अगली सुनवाई 22 सितंबर को होगी।

हाईकोर्ट का उदाहरण: पानी की बोतल पर 100 रुपये क्यों?

बेंच ने नेशनल रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया और फेडरेशन ऑफ होटल्स एंड रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया के वकीलों से सवाल किया कि “जब रेस्टोरेंट 20 रुपये की पानी की बोतल के लिए 100 रुपये वसूल रहे हैं, तो फिर ग्राहक को उनकी सेवाओं के लिए अलग से अतिरिक्त शुल्क क्यों देना होगा?”