रायपुर। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर को स्मार्ट सिटी बनाने न जाने कितने ही सौ करोड़ रुपये अब तक खर्च किए जा चुके हैं. लेकिन राजधानी बनने के 25 वर्षों बाद भी रायपुर की स्थिति कैसी है, इसे रायपुर में रहने वाले बेहतर तरीके से जानते हैं. अपनी घनी बसाहट और कस्बाई पृष्ठभूमि वाला रायपुर समय के साथ बदला तो जरूर है, लेकिन वैसा नहीं, जैसा कोई व्यवस्थित-विकसित शहर होता है. शायद इसके पीछे की वजह है रायपुर में विकास को लेकर बनाई जानी वाली योजनाएं. क्योंकि जब प्लानिंग में गड़बड़ियां हो तो परिणाम शून्य ही रहता है. बीते 10 वर्षों में रायपुर की प्लानिंग में ऐसी कई गड़बड़ियां या खामियां उजागर होती रही हैं, जिसने यह बताया है कि दरअसल स्मार्ट सिटी बनाने के नाम पर रायपुर एक प्रयोगशाला ही साबित हुआ है.


देश में जब केंद्र सरकार ने स्मार्ट सिटी के रूप में छत्तीसगढ़ के 2 शहरों का चयन किया था, तो उसमें रायपुर में भी शामिल था. स्मार्ट सिटी रायपुर में कई तरह के विकासकार्यों को अंजाम दिया गया. इन कार्यों में सर्वाधिक काम रायपुर को चकाचौंध से भर देना रहा है. सौंदर्यीकरण के नाम पर जिस तरह से रायपुर को सजाने और संवारने का काम हुआ वह सबने देखा है. और सबने देखा कि कैसे सैकड़ों करोड़ रुपये सिर्फ चौक-चौराहों के विकास पर खर्च कर दिए गए. इससे रायपुर का, शहरवासियों का कितना और कैसा विकास हुआ स्थानीय लोग बेहतर जानते हैं.

सौंदर्यीकरण के नाम पर कहीं तालाबों का आकार घटाया, कहीं तालाबों को पिकनिक स्पॉट बनाया गया, कहीं उसे बेतरतीब खाने-पीने वाली जगह में बदल दिया गया. यही हाल कई प्रमुख उद्यानों का भी कर दिया गया. वहां भी जबरन दुकानें खोल दी गई और उसे चौपाटी में तब्दील कर दिया गया. तालाबों और उद्यानों को ही नहीं, बल्कि शहर के कई ऐसे प्रमुख मार्गों और स्थानों को चौपाटी में बदल दिया गया, जिससे भीड़ और भीड़ के साथ ट्रैफिक की समस्या बढ़ती चली गई.
यही नहीं शहर में बढ़ते ट्रैफिक के दबाव के मद्देनजर प्रमुख चौक-चौराहों को सड़क के किनारे शिफ्ट किया गया. मुर्तियां हटाई गईं, कई जगहों पर चौराहों का आकार घटाया गया, कई जगहों से आवा-जाही को बंद किया, डिवाइडर्स के आकारों को भी समय-समय पर घटाया और बढ़ाया गया. कहीं जबरन सिग्नल खोले गए, तो कहीं सिग्नल बंद किए गए. चौराहों पर लेफ्ट टर्न भी दिया गया.
कुछ वर्ष पूर्व करीब 2 करोड़ की लागत से सायकल यात्रियों के लिए अलग से ट्रैक बनाया गया था. लेकिन काम नहीं आया है. इसी तरह से जय स्तंभ चौक को सजाने-संवारने में करीब 60 लाख खर्च किया गया था. महंगे एलईडी पैनल लगाए गए थे. आज चौक पर उसकी दुर्दशा क्या सब रोजाना देखते हैं. इसी तरह से फ्लाई ओवर की जगह करोड़ों खर्च स्कॉई वॉक का स्ट्रकचर खड़ा किया गया. जिसे लोग अनुपयोगी मानते रहे हैं. इसी तरह से न जाने क्या-क्या नहीं इस रायपुर शहर में चौक-चौराहों में विकास के नाम पर किया गया.

ऐसे में यह जानकर थोड़ा चौंकना लाजिमी हो जाता है कि रायपुर में फिर से चौक-चौराहों में विकास के नाम पर 10 करोड़ खर्च किए जाएंगे. एक बड़ी धन राशि वहां पर खर्च की जाएगी, जहां जाने कितने ही करोड़ अब तक खर्च किए जा चुके हैं.
दरअसल रायपुर नगर निगम की मेयर इन कउंसिल ने शहर में बढ़ते ट्रैफिक दबाव के मद्देनजर चौक-चौराहों के विकास पर जोर दिया है. विकास के लिए 10 करोड़ की राशि का प्रस्ताव किया है. परिषद ने निर्णय लिया कि शहर के आनंद नगर, अनुपम नगर, भगत सिंह, फाफडीह, जय स्तंभ, कालीबाड़ी सहित 18 चौक-चौराहों पर कई तरह के विकास कार्य कराए जाएंगे. इन कार्यों से शहर में यातायात की समस्या को दूर करना और शहर को सुंदर और व्यवस्थित बनाना शामिल है.
महापौर मीनल चौबे का कहना है कि नगरोत्थान योजना के तहत शासन ने लगभग 10 करोड़ रुपये की राशि स्वीकृत की है. मैं भरोसा दिलाती हूं कि जनता के लिए अच्छा काम होगा. पैसे का सदुपयोग होगा. शहर में ट्रैफिक की समस्या का समाधान होगा. चौराहों के पास लेफ्ट हैंड फ्री एरिया, अंडर ग्राउंड केबलिंग, रोड लेन मार्किंग, स्ट्रीट लाइट्स, स्मूथ ट्रैफिक फ्लो जैसे कार्य कराए जाएंगे. लेकिन विपक्ष इससे सहमत नहीं है. नेता-प्रतिपक्ष आकाश तिवारी का कहना है वार्डों में विकास के लिए पैसे नहीं और चौराहों का विकास होगा. वैसे ऐसा नहीं है कि इन चौक-चौराहों इतनी बड़ी राशि पहली बार खर्च की जा रही है. निगम में जब कांग्रेस की सत्ता रही तब भी सौंदर्यीकरण पर बेहिसाब खर्च हुआ है.
फिलहाल तो यही कहा जा सकता है कि रायपुर में शुद्ध पेयजल मिले या न मिले, लेकिन चौराहों पर विकास होता रहे. जलभराव से मुक्ति मिले या न मिले, लेकिन सौंदर्यीकरण का दिखावा चलता रहे. स्कूल भवन जर्जर है तो जर्जर रहे, लेकिन शहर को रंगने का काम चलता रहे. उम्मीद है 10 करोड़ का सदुपयोग ही होगा.
उसे मालूम ही क्या कि शहर की आब-हवा क्या है ?
जहर क्या है ? दवा क्या है ?
जब बदले ही न बस्तियों की सूरत तो
चौराहों को भला सजाने की जरूरत क्या है ?
लेखक- lalluram.com में राजनीतिक संपादक हैं.
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