प्रयागराज. दुष्कर्म पीड़िता नाबालिग को गर्भपात की अनुमति देने में देरी करने को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने टिप्पणी की है. अदालत ने कहा है कि गर्भ समापन की अनुमति देने में देरी करना अनुचित है. ऐसा करने से पीड़िता के जीवन को खतरा हो सकता है. ट्रायल कोर्ट द्वारा पीड़िता के गर्भावस्था को समाप्त करने के आवेदन को रद्द करना असंवेदनशील है. शायद उनमें कानून की समझ नहीं है.

अदालत ने ये टिप्पणी करते हुए पीड़िता को गर्भपात करने की अनुमति दे दी. ये आदेश न्यायमूर्ति मनोज कुमार गुप्ता व न्यायमूर्ति अनीश कुमार गुप्ता की खंडपीठ ने याची अधिवक्ता मोहम्मद समीउज्जमां खान व जीशान खान को सुनकर दिया.

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दरअसल, बागपत के सिंघावली अहीर थाना क्षेत्र निवासी 17 वर्षीय दुष्कर्म पीड़िता की मां ने कोर्ट में याचिका दायर गर्भपात करने की अनुमति की मांग की याचिका दा​खिल की थी. न्यायालय ने पहले 22 अगस्त 2025 को एक आदेश पारित किया था, जिसमें मुख्य चिकित्सा अधिकारी बागपत को एक मेडिकल बोर्ड गठित करने का निर्देश दिया गया था. मेडिकल बोर्ड ने 23 अगस्त को पीड़िता की जांच की और अपनी रिपोर्ट में भ्रूण की आयु 21 सप्ताह होना बताया गया. ऐसे में अगर गर्भावस्था जारी रहती है तो यह पीड़िता के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करेती. पीड़िता और उसके माता-पिता दोनों ने गर्भपात की प्रक्रिया के लिए सहमति दी है और पीड़िता पर किसी तरह का कोई दबाव नहीं है.