राउरकेला. सीकेपी डिवीजन के बिमलगढ़, बरसुआ, पाटासाही और रांगड़ा रेलवे साइडिंग से अवैध कोयले का कारोबार इन दिनों तेजी से फैल रहा है. यह गोरखधंधा अब आसपास के गांवों तक पहुंच चुका है. सूत्रों के अनुसार, मालगाड़ी से निकाले गए कोयले को बोरियों में भरकर गांवों के खेल मैदानों और सुनसान जगहों पर छिपाया जाता है, ताकि मौके मिलते ही उसे काले बाजार में बेचा जा सके. इसका ताजा उदाहरण लहुनीपाड़ा थाना क्षेत्र के दार्जिग गांव में देखा गया, जहां मैदान में खुलेआम बोरी-बोरी कोयला रखा गया है. स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार, रेलवे कंटेनर जब लौह अयस्क लेने के लिए इन साइडिंगों पर पहुंचते हैं, तो उनमें बड़ी मात्रा में कोयला मौजूद रहता है. चौंकाने वाली बात यह है कि इन कंटेनरों से कोयला निकालने का काम ग्रामीण ही करते हैं.

जान जोखिम में डालकर वे कंटेनरों पर चढ़ते हैं और बोरी बोरी कोयला उतार लेते हैं. चूंकि इस कोयले का कोई अधिकृत दावेदार सामने नहीं आता, मामला दबा ही रह जाता है. स्थानीय लोगों का कहना है कि इस पूरे गोरखधंधे से आरपीएफ को लाभ मिल रहा है. बिमलगढ़ और उससे जुड़े रेलवे साइडिंगों में यह काम खुलेआम चल रहा है, लेकिन अब तक कोई सख्त कार्रवाई नहीं हुई है. इससे साफ जाहिर होता है कि बिना मिलीभगत इतने बड़े पैमाने पर अवैध कारोबार संभव नहीं है. यहां चौंकाने वाली बात यह है कि बरसुआ से बीरमित्रपुर के बीच चलने वाली पैसेंजर ट्रेन से लंबे समय से अवैध कोयले की ढुलाई हो रही है.

डिब्बों में यह कोयला किसके इशारे पर चढ़ाया जा रहा है, यह अब स्थानीय चर्चा का विषय बन गया है. रेलवे का वाणिज्य विभाग, आरपीएफ, सीआईबी और एसआईबी तक सभी इस अवैध कारोबार पर चुप्पी साधे हुए हैं. स्टेशन मास्टरों की भूमिका पर भी संदेह व्यक्त किया जा रहा है. सरकारी संपत्ति की इस खुलेआम चोरी और विभागीय चुप्पी से क्षेत्र के आम लोग नाराज हैं. उनका कहना है कि अवैध कारोबार पर रोक न लगना न केवल जनता के लिए चिंता का विषय है, बल्कि इससे सरकार की साख पर भी प्रश्नचिह्न लग रहा है.