वीरेंद्र गहवई, बिलासपुर. हाईकोर्ट ने दहेज प्रताड़ना और दहेज हत्या के मामले में दोषी ठहराए गए सास-ससुर की सात साल सजा को निरस्त कर दिया है। जस्टिस रजनी दुबे की सिंगल बेंच ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोप साबित करने में विफल रहा। आरोप था कि ससुराल पक्ष दहेज व गहनों के लिए बहू को प्रताड़ित करता था। शादी के एक साल के भीतर 29 जून 2007 को उसने केरोसिन डालकर आत्मदाह कर लिया। हाईकोर्ट ने पाया कि मृतका के पिता, मां और भाई ने दहेज की मांग या प्रताड़ना की बात से इंकार किया था। एफआईआर भी ढाई महीने बाद दर्ज हुई और कोई स्वतंत्र गवाह भी नहीं मिला, ऐसे में आरोप सिद्ध नहीं किया जा सका।
पूरा मामला जांजगीर-चांपा जिले के जैजैपुर थाना क्षेत्र के ग्राम धीवरा का है। अनुजराम और उनकी पत्नी इंदिराबाई पर आरोप था कि उन्होंने अपनी बहू चैनकुमारी को दहेज के लिए प्रताड़ित किया। चैनकुमारी की शादी 2006 में पवन कश्यप से हुई थी। शादी के एक साल के भीतर 29 जून 2007 को चैनकुमारी ने आग लगाकर सुसाइड कर ली। ट्रायल कोर्ट ने वर्ष 2008 में सास-ससुर को आईपीसी की धारा 498ए/34 में तीन साल और 304बी/34 में सात साल की सजा सुनाई थी।

हाईकोर्ट में अपीलकर्ताओं की ओर से कहा गया कि किसी भी स्वतंत्र गवाह ने दहेज की मांग या प्रताड़ना की पुष्टि नहीं की। मृतका के पिता, मां और भाई ने भी अदालत में स्वीकार किया कि आरोपितों ने कभी दहेज नहीं मांगा। गहनों की मांग खुद मृतका अपनी पसंद से की थी। एफआईआर घटना के ढाई महीने बाद दर्ज हुई, जिससे संदेह और गहरा हो गया।
हाईकोर्ट ने पाया कि मृतका की मौत शादी के सात साल के भीतर जरूर हुई, लेकिन मृत्यु से ठीक पहले प्रताड़ना या दहेज मांग के पुख्ता सबूत नहीं मिले। सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का हवाला देते हुए हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को निरस्त कर दोनों आरोपियों को बरी कर दिया। चूंकि वे पहले से जमानत पर हैं, इसलिए उन्हें 25 हजार रुपए के निजी मुचलका और एक जमानतदार प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया।
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