दिल्ली हाईकोर्ट(Delhi High Court) ने अवैध निर्माण से जुड़े मामलों में रिट अधिकारिता का गलत इस्तेमाल करने के प्रयासों पर कड़ी नाराजगी व्यक्त की है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि न्यायिक प्रक्रिया का उपयोग गलत इरादों (ulterior motives) को पूरा करने के लिए नहीं किया जा सकता। जस्टिस मिनी पुष्करना ने शाहीन बाग की एक विवादित संपत्ति से जुड़ी याचिकाओं का निपटारा करते हुए 50,000 रुपये का जुर्माना लगाया। यह राशि दिल्ली हाईकोर्ट एडवोकेट्स वेलफेयर ट्रस्ट को जमा करनी होगी।

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कोर्ट ने नोट किया कि याचिकाकर्ता संपत्ति से लगभग 2.5 किलोमीटर दूर रहता है और कथित निर्माण से उसका कोई प्रत्यक्ष कानूनी या मौलिक अधिकार प्रभावित नहीं हो रहा है। जस्टिस मिनी पुष्करना ने कहा, “स्पष्ट रूप से कोई मौलिक या कानूनी अधिकार प्रभावित नहीं हो रहे हैं, खासकर तब जब याचिकाकर्ता विवादित संपत्ति के पास भी नहीं रहता।” कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि इससे पहले इसी तरह की कई याचिकाएं दायर की गई हैं, जिससे ऐसे मुकदमों की सच्चाई (bona fides) और याचिकाकर्ता की नीयत पर सवाल उठते हैं।

जस्टिस मिनी पुष्करना ने स्पष्ट किया कि जिनकी नीयत साफ नहीं (unclean hands) और जिनके इरादे गलत (ulterior motives) हैं, वे रिट अधिकारिता का दुरुपयोग नहीं कर सकते। उन्होंने दोहराया कि अवैध निर्माणों से सख्ती से निपटा जाएगा, लेकिन व्यक्तिगत लाभ के लिए कानूनी उपायों का गलत इस्तेमाल करने वालों को समर्थन नहीं मिलेगा।

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इस मामले में पैरवी की स्थिति इस प्रकार रही, भारत सरकार की ओर: आशीष के. दीक्षित, CGSC, ने उमर हाशमी, एडवोकेट के साथ पैरवी की। अन्य प्रतिवादियों की ओर: नितिनज्य चौधरी, CGSC, और राहुल मौर्या, एडवोकेट पेश हुए। निजी प्रतिवादियों की ओर: राजेश कुमार सिंह, रोहिश अरोड़ा और अमित बिदुरी, एडवोकेट प्रतिनिधित्व कर रहे थे।

कार्यवाही के दौरान एमसीडी (MCD) की ओर से अभिनव सिंह, एएससी-एमसीडी (ASC-MCD) ने अपने वकील ऋषभ मित्तल के साथ एक स्टेटस रिपोर्ट दायर की। इस रिपोर्ट में पुष्टि की गई कि संपत्ति के खिलाफ तोड़फोड़ की कार्रवाई 17-18 सितंबर 2025 को पहले ही की जा चुकी है। साथ ही, शाहीन बाग पुलिस स्टेशन के SHO ने अपने वकील के माध्यम से बताया कि उन्होंने इस अभियान के दौरान जरूरी सहायता प्रदान की थी। भविष्य में ऐसे दुरुपयोग को रोकने के लिए कोर्ट ने एहतियाती निर्देश दिए कि यदि यही याचिकाकर्ता अवैध निर्माण से संबंधित कोई नई याचिका दायर करता है, तो उसे कोर्ट के विचार के लिए इस आदेश की एक प्रति रिकॉर्ड पर (दस्तावेजों सहित) संलग्न करनी होगी।

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