Peepal-Banyan Tree Significance: भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक परंपरा में पीपल और बरगद के वृक्षों का विशेष स्थान है. इन दोनों वृक्षों को न सिर्फ पवित्र समझा जाता है, बल्कि इनमें देवी-देवताओं का वास भी माना जाता है. वेद-पुराणों और शास्त्रों के अनुसार, पीपल के मूल में भगवान विष्णु, तने में केशव, पत्तों में हरि और फलों में तमाम देवताओं की शक्ति का निवास बताया गया है. यही कारण है कि इसकी पूजा से मनुष्य को सुख-शांति और पापमुक्ति का आशीर्वाद प्राप्त होता है.
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धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व (Peepal-Banyan Tree Significance)
पीपल के वृक्ष को कल्पवृक्ष और अश्वत्थ भी कहते हैं. वेद-पुराणों के अनुसार, इसके मूल में भगवान विष्णु, तने में केशव, पत्तों में हरि और फलों में सभी देवताओं की शक्ति का वास होता है. इसी कारण पीपल की पूजा से सुख-शांति और पापों से मुक्ति मिलती है. वहीं, बरगद (वट) के वृक्ष में त्रिदेव – ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास माना गया है.
इसका महत्व वट सावित्री व्रत में विशेष रूप से देखने को मिलता है, जब सुहागिन महिलाएं अपने परिवार की सुख-शांति और पति की लंबी आयु के लिए इसकी पूजा करती हैं. सावित्री ने इसी वृक्ष के नीचे तपस्या करके अपने पति सत्यवान के प्राणों को यमराज से वापस पाया था, जिससे यह वृक्ष अखंड सौभाग्य का प्रतीक बन गया है.
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पूजा के विशेष दिन और तरीका (Peepal-Banyan Tree Significance)
पीपल की पूजा के लिए शनिवार, अमावस्या और सोमवती अमावस्या सबसे शुभ मानी जाती हैं. शनि दोष से मुक्ति, पितृ शांति और समृद्धि के लिए भक्त इन दिनों पीपल की परिक्रमा करते हैं और जल, दूध, हल्दी और धागा अर्पित करते हैं.
बरगद की पूजा के लिए गुरुवार, वट सावित्री व्रत और अमावस्या का दिन शुभ माना गया है. विशेषकर वट सावित्री के दिन विवाहित महिलाएं बरगद की पूजा करके अखंड सौभाग्य की कामना करती हैं.
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