पटना। विधानसभा चुनाव 2025 से पहले बिहार भाजपा में अंदरूनी सियासत गरमा गई है। पूर्व केंद्रीय मंत्री और आरा से सांसद रह चुके आरके सिंह ने अपनी ही पार्टी के नेताओं पर सवाल उठाकर राजनीतिक भूचाल ला दिया है। प्रशांत किशोर के आरोपों के बाद उन्होंने उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी और प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल से सार्वजनिक सफाई की मांग कर पार्टी को कटघरे में खड़ा कर दिया।

जवाबदेही पर अड़े आरके सिंह

जन सुराज के प्रमुख प्रशांत किशोर ने दरभंगा में जनसभा के दौरान भाजपा नेताओं पर भ्रष्टाचार, हत्या और कोविड काल में गड़बड़ी जैसे गंभीर आरोप लगाए थे। इस पर आरके सिंह ने कहा अगर आप पाक-साफ हैं तो जनता के सामने सफाई क्यों नहीं दे रहे? उनका तर्क है कि नेताओं की चुप्पी पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचा रही है।

विश्वासघात बताई लोकसभा हार

आरके सिंह यहीं नहीं रुके। उन्होंने खुलासा किया कि 2024 लोकसभा चुनाव में उनकी हार सामान्य नहीं थी बल्कि पार्टी के ही कुछ नेताओं ने निर्दलीय उम्मीदवार को समर्थन देकर उन्हें हराने की साजिश रची। इसे उन्होंने विश्वासघात बताया और चेतावनी दी कि अगर 2025 में ऐसे चेहरों को टिकट मिला तो वे एनडीए के खिलाफ प्रचार करने से पीछे नहीं हटेंगे।

विरोध और निष्ठा का अनोखा संगम

दिलचस्प यह है कि आरके सिंह खुद को पार्टी का अनुशासित सिपाही बताते हैं और भाजपा बैठकों में नियमित रूप से शामिल भी रहते हैं। यानी एक ओर वे बगावत का सुर छेड़ते हैं, दूसरी ओर वफादारी भी दिखाते हैं। यह विरोध और निष्ठा का मेल उन्हें भाजपा के भीतर सबसे चर्चित चेहरों में ला खड़ा करता है।

पवन सिंह की वापसी का समर्थन

कड़े तेवरों के बीच आरके सिंह ने भोजपुरी अभिनेता और गायक पवन सिंह की भाजपा में वापसी का समर्थन कर सबको चौंका दिया। भ्रष्ट नेताओं पर हमलावर रुख और लोकप्रिय चेहरों को पार्टी से जोड़ने की वकालत यह विरोधाभासी राजनीति उनके रवैये को और पेचीदा बना देती है।

रणनीति या सुधार की पहल?

राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि आरके सिंह का यह रवैया एक रणनीति हो सकता है। दबाव बनाकर पार्टी में अपनी प्रासंगिकता बनाए रखना और साथ ही सुधारक की छवि गढ़ना दोनों मकसद साफ झलकते हैं। अब देखना होगा कि भाजपा उनके तेवरों को सुधार की पहल मानती है या बगावत का संकेत।