जीतेंद्र सिंहा, राजिम. क्वार नवरात्रि पर्व के पावन अवसर पर फिंगेश्वर के प्रसिद्ध मां मौली मंदिर में इस वर्ष भी आस्था और श्रद्धा का सैलाब उमड़ पड़ा है. परंपरा अनुसार भक्तों ने इस बार 2265 मनोकामना दीप प्रज्वलित किए हैं. तड़के सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ दर्शन के लिए मंदिर परिसर में उमड़ने लगी, जो देर रात तक बनी रहती है. दीप प्रज्वलन के लिए इस वर्ष मौली मंदिर के साथ-साथ शीतला मंदिर परिसर का भी उपयोग किया गया.

प्राचीन किवदंती से जुड़ा मौली मंदिर

मान्यता है कि फिंगेश्वर में मां मौली का आगमन ईसा पूर्व हुआ था. किवदंती के अनुसार, जब राजा मनमोहन सिंह अपने काफिले के साथ राजिम से फिंगेश्वर की ओर जा रहे थे, तब रास्ते में किरवई गांव के समीप सफेद वस्त्रधारी वृद्धा ने उनसे साथ ले जाने की प्रार्थना की. राजा ने उन्हें घोड़े पर बैठाया, लेकिन थोड़ी ही देर में वृद्धा विलुप्त हो गई. रात में राजा को स्वप्न आया, जिसमें वृद्धा ने स्वयं को बस्तर की मां मौली बताकर यहां झोपड़ी बनाने का आदेश दिया. इसके बाद राजा ने मंदिर निर्माण कराया, पर देवी ने झोपड़ी में ही निवास की इच्छा जताई. आज भी मंदिर परिसर में देवी की प्राचीन झोपड़ी आस्था का केंद्र है.

युद्ध और 21 नरबलि की कथा

इतिहास में दर्ज एक और प्रसंग के अनुसार, राजा ठाकुर दलगंजन सिंह पर दुश्मन राज्य ने हमला किया. विरोधियों के पास ऐसी ढफली थी, जिसे बजाने पर घायल सैनिक पुनः जीवित होकर युद्ध करने लगते थे. राजा ने मां मौली से विजय की प्रार्थना की. देवी ने निर्देश दिया कि ढफली बजाने वाले पर हमला कर उसे नष्ट करो. राजा ने वैसा ही किया और विजय प्राप्त की. वचन अनुसार उन्होंने मां को 21 नरबलि अर्पित की.

दशहरा की अनोखी परंपरा

बस्तर दशहरा के बाद प्रदेश में सबसे प्रसिद्ध फिंगेश्वर का शाही दशहरा मनाया जाता है. खास बात यह है कि यहां दशहरा परंपरा अनुसार तीन दिन विलंब से तेरस को मनाया जाता है. भक्त इस दिन मां के दरबार में मत्था टेककर सुख-समृद्धि की कामना करते हैं. गुरुवार की पूजा यहां का विशेष आकर्षण है.

मौली मंदिर ट्रस्ट की देखरेख

मंदिर का संचालन वर्तमान सर्वराकार राजा नीलेन्द्र बहादुर सिंह और मंदिर ट्रस्ट समिति के प्रमुख सदस्य शिव कुमार सिंह ठाकुर, रमेन्द्र सिंह, देवेंद्र बहादुर सिंह, पुखराज सिंह, यशोधरा सिंह धुर्वे, पंकज शर्मा, आदित्येंद्र बहादुर सिंह, रवि तिवारी के नेतृत्व में किया जाता है. मां मौली की विशेष पूजा अर्चना आज भी प्राचिन परंपरा अनुसार हलबा समाज के लोग करते हैं. मंदिर के गर्भ गृह मे ब्राम्हण पंडितो का प्रवेश वर्जित है.

मनोकामना पूरी करने की प्रसिद्धि प्राप्त है नगर की मौली माँ

मां मौली को लेकर आस्था है कि जो भी भक्त यहां सच्चे मन से मनौती लेकर आता है, उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है. यही कारण है कि नवरात्रि के अवसर पर छत्तीसगढ़ ही नहीं, बल्कि दूर-दराज से हजारों श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए पहुंचते हैं. श्रृंगार पंचमी के अवसर पर आज फिंगेश्वर का पूरा वातावरण मां मौली के जयघोष से गूंजेगा और भक्तों का विशाल जनसैलाब मंदिर परिसर में उमड़ेगा.