हेमंत शर्मा, इंदौर। महर्षि वाल्मिकी जयंती के पावन अवसर पर इंदौर में पीतल की पूर्ण रामायण तैयार करने का कार्य शुरू किया गया है। स्वामी अवधेशानंद गिरी (आचार्य महामंडलेश्वर, जूनापीठाधीश्वर) की प्रेरणा और ‘समर्पण से संसार’ पुस्तक की पहल पर इस अनोखी परियोजना की शुरुआत की गई। महर्षि वाल्मिकी, जो रामायण के रचियता हैं, उनकी जयंती के दिन पीतल की इस पूर्ण रामायण का पहला पृष्ठ जारी किया गया। यह रामायण 40 पेज की पीतल शीट पर तैयार की जा रही है, जिसमें हर पृष्ठ 7 इंच लंबा और 5 इंच चौड़ा होगा। कुल 850 पृष्ठों पर संपूर्ण रामायण अंकित की जाएगी।

20 से ज्यादा मेटल किताबें बना चुका हैं

इस परियोजना को भारतीय संस्कृति, अध्यात्म और सनातन परंपरा के गौरव को धातु के रूप में अमर करने का ऐतिहासिक प्रयास माना जा रहा है। इस विशेष कार्य के पीछे इंदौर के युवा लोकेश मंगल का समर्पण है, जो अब तक 20 से अधिक मेटल की किताबें बना चुके हैं। उनका कहना है कि “किताबें तो हर कोई लिखता है जिनका विमोचन होता है, लेकिन मेरा मकसद ऐसी किताब बनाना था जिसका विमोचन न हो, जिसे सिर्फ रखा और संजोया जा सके।

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धर्मगुरुओं से मिलने के बाद प्रेरणा

लोकेश ने बताया कि यह विचार उन्हें धर्मगुरुओं से प्रेरणा मिलने के बाद आया। उन्होंने कहा कि “धर्मगुरुओं ने बताया कि पीतल सबसे स्थायी धातु मानी जाती है, तब मन में विचार आया कि धर्म और राष्ट्र से जुड़े ग्रंथों को पीतल पर अमर किया जाए।” उन्होंने 2017 में यह कार्य शुरू किया था। इसी दौरान उन्होंने 193 देशों के संविधान को पीतल पर अंकित किया। 57 किलो की इस किताब का काम 2017 में शुरू होकर 2023 में पूरा हुआ। इसके लिए उन्होंने भारत के 200 शहरों से 42 हजार लोगों से एक-एक रुपए जुटाए।

ये किताबें भी कर चुके हैं तैयार

इसके अलावा उन्होंने भारतीय संविधान की 54 पेज की 32 किलो वजनी किताब भी तैयार की थी, जो दो महीने में बनकर तैयार हुई। इंदौर की जनता के सहयोग से 49 हजार रुपये में इसे बनाया गया। 34 किलो वजनी, 4 फीट लंबी भारतीय संसद की प्रतिकृति भी उन्होंने दो महीने में तैयार की थी। साथ ही, BNS, BSA और BNSS की तीनों किताबें उन्होंने चार दिन में तैयार कर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को भेंट की थीं।

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लोकेश मंगल का क्या है उद्देश्य ?

साल 2017 में केंद्रीय मंत्री थावरचंद गहलोत के समय से ही उन्होंने इस अभियान को गति दी। लोकेश मंगल का कहना है कि “मेरा उद्देश्य युवाओं को समाज के प्रति एक नई सोच और दिशा देना है, ताकि वे समझें कि राष्ट्र और धर्म से जुड़ी धरोहरों को आधुनिक रूप में भी संरक्षित किया जा सकता है।”

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