अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप(Donald Trump) के प्रशासन ने जेनेरिक दवाओं पर आयात शुल्क (टैरिफ) लगाने की योजना फिलहाल ठंडे बस्ते में डाल दी है। यह निर्णय भारतीय फार्मा कंपनियों के लिए बड़ी राहत माना जा रहा है, क्योंकि अमेरिका में इस्तेमाल होने वाली लगभग 50 प्रतिशत जेनेरिक दवाएं भारत से आयात की जाती हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, इस फैसले से उन लाखों अमेरिकी नागरिकों को भी राहत मिली है, जो हाई ब्लड प्रेशर, डिप्रेशन, अल्सर और कोलेस्ट्रॉल जैसी बीमारियों के इलाज के लिए सस्ती भारतीय जेनेरिक दवाओं पर निर्भर हैं।
भारत को कहा जाता है ‘दुनिया की फार्मेसी’
वैश्विक चिकित्सा डेटा एनालिटिक्स कंपनी आईक्यूवीआईए (IQVIA) के अनुसार, अमेरिका में फार्मेसियों में बेची जाने वाली कुल जेनेरिक दवाओं में से 47 प्रतिशत दवाएं भारत से आयातित हैं। अमेरिका के घरेलू निर्माता कुल जेनेरिक दवाओं में करीब 30 प्रतिशत हिस्सेदारी रखते हैं, जबकि बाकी हिस्सा अन्य देशों से आता है। इसमें भारत की हिस्सेदारी सबसे बड़ी है।
वाइट हाउस का यू-टर्न
वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिकी प्रशासन का यह कदम वाणिज्य विभाग द्वारा चल रही दवाओं पर टैरिफ जांच के दायरे को सीमित करता है। अप्रैल में शुरू हुई इस जांच में पहले कहा गया था कि जेनेरिक और नॉन-जेनेरिक दोनों प्रकार की तैयार दवाओं के साथ-साथ दवा निर्माण में उपयोग होने वाले कच्चे माल (ड्रग इंग्रेडिएंट्स) को भी जांच के दायरे में रखा जाएगा।
व्हाइट हाउस के भीतर जेनेरिक दवाओं पर टैरिफ को लेकर भारी खींचतान देखने को मिली। ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन (MAGA)’ गुट के कठोरपंथी सदस्य चाहते थे कि दवा निर्माण को वापस अमेरिका में लाया जाए और इसके लिए विदेशी दवाओं पर भारी टैरिफ लगाया जाए।
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की घरेलू नीति परिषद के कुछ सदस्य जेनेरिक दवाओं पर टैरिफ लगाने के प्रस्ताव के खिलाफ थे। उन्होंने तर्क दिया कि:
अगर टैरिफ लागू किया गया, तो अमेरिका में दवाओं की कीमतें बढ़ेंगी और दवाओं की कमी भी हो सकती है।
जेनेरिक दवाओं का उत्पादन भारत जैसे देशों में बहुत सस्ता है। भारी टैरिफ लगाने के बाद भी अमेरिकी उत्पादन आर्थिक रूप से फायदेमंद नहीं होगा।
ट्रंप की ‘टैरिफ पॉलिसी’ पर फिर सवाल
ट्रंप प्रशासन पहले भी अपने टैरिफ युद्धों के कारण आलोचनाओं में रहा है। चीन पर लगाए गए टैरिफ के बाद चीन ने अमेरिकी कृषि उत्पादों, खासकर सोयाबीन की खरीद बंद कर दी, जिससे अमेरिकी किसान बुरी तरह प्रभावित हुए। इस स्थिति से निपटने के लिए अमेरिकी सरकार को किसानों की मदद के लिए 16 अरब डॉलर की सब्सिडी देना पड़ा।
सोशल मीडिया पर एक अमेरिकी किसान ने अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए लिखा, “सरकार हमसे पैसा वसूल रही है और वही पैसा हमें वापस दे रही है।” यह टिप्पणी टैरिफ नीतियों के प्रत्यक्ष प्रभाव को दर्शाती है। ट्रंप प्रशासन ने शायद यही महसूस किया कि जेनेरिक दवाओं पर टैरिफ लगाने से जनता को एक और “कड़वी दवा” नहीं दी जा सकती, क्योंकि इससे दवाओं की कीमतें बढ़ेंगी और उपभोक्ताओं पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा।
अनुमानों के अनुसार, साल 2022 में भारतीय जेनेरिक दवाओं ने अमेरिकी स्वास्थ्य प्रणाली को करीब 219 अरब डॉलर की बचत कराई।
भारतीय कंपनियों की अहम भूमिका
रिपोर्ट के मुताबिक, 2022 में भारतीय फार्मा कंपनियों जैसे सिप्ला, सन फार्मास्युटिकल्स और डॉ. रेड्डीज लैबोरेट्रीज ने अमेरिका में कोलेस्ट्रॉल, हाई ब्लड प्रेशर, अवसाद, अल्सर और नर्वस सिस्टम डिसऑर्डर जैसी प्रमुख बीमारियों के इलाज के लिए दी जाने वाली दवाओं में आधे से अधिक प्रिस्क्रिप्शन सप्लाई किए।
इनमें विशेष रूप से शामिल दवाएं हैं:
मेटफॉर्मिन – डायबिटीज के इलाज के लिए
एटोरवास्टेटिन – कोलेस्ट्रॉल नियंत्रण के लिए
लोसार्टन – ब्लड प्रेशर के लिए
आम एंटीबायोटिक्स – एमॉक्सिसिलिन, सिप्रोफ्लोक्सासिन
ये दवाएं अमेरिकी मरीजों के रोजाना उपयोग में आती हैं और भारतीय जेनेरिक दवाओं की उपलब्धता ने अमेरिका में स्वास्थ्य देखभाल की लागत कम करने में अहम योगदान दिया है।
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