राजकुमार पाण्डेय की कलम से
कृषि विभाग में साहब का भौकाल, टेंशन में स्टाफ
भोपाल के एक कृषि विभाग के सभांगीय कार्यालय में पदस्थ एक अधिकारी का इन दिनों उनके कृषि विभाग में बड़ा खौफ चल रहा है. खौफ भी ऐसा की एक बाबू से लेकर कृषि मंत्री तक उनकी मर्जी के बगैर कोई निर्णय नहीं ले सकता. उनकी इच्छा के बिना विभाग में कब कौन क्या करेगा, वे ही तय करते है. इतना ही नहीं उनके कहने के बाद ना तो विभाग के सबसे बडे़ अधिकारी सचिव महोदय की टीप काम आती ना ही मंत्री जी का आदेश. इतना ही नहीं अपने ही विभाग के अधिकारी संघ को भी इन्होंने पूर्ण रूप से अपने प्रभाव में ले रखा है. सुनने में आया साहब ऐसे पद पर बैठे है, जिससे उन्हें कोई नहीं हटा सकता ना ही कोई और जिम्मेदारी दे सकता है. यहां तक की वरिष्ठ अधिकारी और कर्मचारियों के सभी प्रकार की वित्तीय राशि ये साहब ही निकालते है, इसलिए कोई इनसे टक्कर नहीं लेता और यही वजह है की साहब को काई माई का लाल अपनी जगह ना हिला पा रहा है, ना ही उनके आदेश को काई कर्मचारी तो क्या स्वंय संचालक भी नहीं मना कर पा रहा है. सुनने में यह भी आया है कि उनका स्थानानंतरण प्रस्ताव भी भेजा गया था, लेकिन साहब का भौकाल इतना है कि कोई टस से मस नहीं कर पा रहा है.
जब शरमा गए मंत्री जी
कई बार ऐसी स्थिति परिस्थितियों बन जाती हैं कि मानो क्या ही कहा जाए. ऐसा ही प्रदेश के एक मंत्री जी के साथ हुआ. वाक्या ट्रेबल मार्ट के आयोजन का है. मार्ट में कई विदेशी मेहमान भी शामिल हुए थे. मंत्री धर्मेंद्र सिंह लोधी ने भी विदेशी मेहमानों से चर्चा की, तभी एक विदेशी महिला ने मंत्री जी की सार्वजनिक रूप से तारीफ कर दी. महिला ने कहा कि भारत में युवा मंत्री मैंने कम ही देखे हैं. खासकर सेंट्रल की बात की जाए तो, लेकिन आप तो युवा हैं. आपका व्यक्तित्व भी अलग ही दमक रहा है. इतना सुनते हैं ही बाकी मेहमान तो हस पड़े, लेकिन मंत्री जी तो मानो शरमा ही गए. न हां निकला न कुछ और बस धन्यवाद ही ज्ञापित किया. विदेशी महिला मेहमान ने मंत्री जी के साथ सेल्फी लेने का भी आग्रह किया. सहर्ष भारतीय सभ्यता का परिचय देते हुए माननीय ने बड़े आदर से उनके अनुरोध को भी स्वीकारा. विदेशी मेहमानों ने आयोजन की भी जमकर तारीफ की.
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सन्नाटा सा पसरा है कुछ तो बात है
मंत्रालय के इन दिनों कुछ खास नहीं चल रहा है. मतलब बात कुछ अलग सी है. दरअसल, प्रदेश के संचालन का जिम्मा जिस मंत्रालय के कंधे पर होता है, वहां अमूमन ऐसी हलचलों का अंबार हो जाता है जो सुर्खियों में रहती हैं, लेकिन मंत्रालय के वरिष्ठों की लॉबी में इस वक्त कुछ नहीं. वही फाइल वही बैठकें वही इमारत वही काम लेकिन सब कुछ खामोशी में. दरअसल, इस बात की IAS लॉबी में चर्चा है कि कही से शांति पकड़ कर काम करने का संकेत किया गया है. खबर यह भी है कि तगड़ी वाली मॉनिटरिंग की जा रही है. कुछ अफसर जो तीन चार अपने ही विभागों के वरिष्ठ मंत्रियों से खफा रहते थे वो भी अब शांत हैं. वैसे एक बात जरूर है कहीं ये किसी तूफान के पहले की खामोशी तो नहीं, सावधानी में ही समझदारी है, समझ गए न आप…
मंत्री बनने का रह गया मलाल
मध्य प्रदेश में मंत्रिमंडल विस्तार की हवाएं चलीं तो प्रदेश के एक पूर्व मंत्री खुद को लगभग मंत्री की भूमिका में मान बैठे. नेताजी से मिलने-जुलने वालों की संख्या बढ़ने लगी और नेताजी भी समर्थकों की बधाइयों को सहदय स्वीकार करते रहे. नेताजी को उम्मीद थी कि दीपावली से पहले किसी भी कीमत पर सरकार में उनकी एंट्री हो जाएगी. लेकिन जैसे जैसे वक्त आगे बढ़ा, नेताजी अब बिहार चुनाव के बाद सत्ता की कुर्सी पर बैठने की अटकलें लगाए गुणा-भाग करने में जुटे हैं.
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हर घाट राम घाट
महाकुंभ में भगदढ़ मचने का एक अहम कारण संगम स्थल पर डुबकी लगाने की लालसा रहा. मध्य प्रदेश के उज्जैन में 2028 में होने जा रहे सिंहस्थ में इस तरह की स्थिति निर्मित न हो, इसके लिए शिप्रा तट के हर किनारे को राम घाट की तर्ज पर विकसित किया जा रहा है. शिप्रा नदी के दोनों ओर 16-16 किलोमीटर के सुव्यवस्थित घाट विकसित किए जा रहे हैं. प्लानिंग इस तरह की गई है कि हर घाट राम घाट के नाम से जाना जाएगा. नीति निर्माताओं का मानना है कि श्रद्धालुओं की भारी संख्या के बीच यह प्रयोग व्यवस्था के लिहाज से रामबाण साबित होगा.
महापौर का काम देख मुस्कुरा दिए कमिश्नर
मध्य प्रदेश के बड़े शहरों में स्थानीय नगर निगम का काम तो बोलता ही होगा और इसकी सीधी निगरानी की व्यवस्था महापौर के हाथों में ही होगी. नए-नए कमिश्नर यही मानकर चल रही थीं. समीक्षा की तो पता चला जैसा दिखाया जा रहा है, असल में अंदरखाने में वैसा कुछ दोनों की ओर से नहीं है. पहला ये कि न तो महापौर को कामकाज की पूरी परख और न ही दिखाए गए हालात नगर निगम के अंदर. समीक्षा के बाद कमिश्नर अब अमूलचूक परिवर्तन के लिए चुनिंदा एक्सपर्ट के साथ मंथन में जुटी हुई हैं.
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विभागीय अफसर कर आए कानाफूसी
मध्य प्रदेश में पिछले कुछ दिनों से स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली पर लगातार सवाल खड़े हो रहे हैं. पहले तो मामला खूब उछला, जब ठंडा पड़ने लगा तो एक विभागीय अफसर ही ठंडी पड़ रही आंच में घी डाल आए. अफसर महोदय ने विपक्ष को ऐसी पुड़िया दी कि वर्तमान हालात के साथ अब पुराने महीनों तक की जांच की मांग उठने लगी है. खबर है कि पिछले साल खुद की दाल नहीं लगने पर महोदय ने विभाग की दाल पतली करने की कसम जो खा रखी है.
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