कर्ण मिश्रा, ग्वालियर। तकनीक के इस डिजिटल युग में जहां हर कारोबार का हिसाब-किताब अब लैपटॉप और मोबाइल में सिमट गया है। वहीं दीपावली पर पुराने बहीखाते की परंपरा आज भी कायम है। ग्वालियर के हुजरात पुल इलाके में स्थित जगदीश स्टेशनरी स्टोर से आज भी बहीखातों की खरीदारी होती है और इस महापर्व पर इसके पूजन की परंपरा जीवित है।
बहीखातों से ही नए वित्तीय वर्ष की शुरुआत करते हैं व्यापारी
एक वक्त था जब हुजरात पुल इलाके में हर जगह बहीखातों की दुकानें हुआ करती थीं। आज वक्त बदल गया है। बहीखाते के पन्ने डिजिटली स्क्रीन पर शिफ्ट हो गए हैं। मगर परंपरा अब भी कायम है। शहर की इकलौती पारंपरिक बहीखाता दुकान में दीपावली से पहले रौनक सजी हुई है। अलमारियों में सजे लाल कवर वाले रजिस्टर,परंपरा और विश्वास का प्रतीक हैं। व्यापारी आज भी इन्हीं बहीखातों से दीपावली पर अपने नए वित्तीय वर्ष की शुरुआत करते हैं।
दीपावली के दिन बहीखाता खरीदे बिना पूजन अधूरा
दुकान का संचालन करने वाले अभिषेक का कहना है कि दुकान की सालो से चल रही है। लेकिन अब सब कंप्यूटर और मोबाइल पर हिसाब रखते हैं। फिर भी दीपावली के दिन बहीखाता खरीदे बिना पूजन अधूरा सा लगता है। शहर के दाल बाजार, लोहिया बाजार और नया बाजार से लेकर आसपास की तहसीलों के व्यापारी हर साल यहां पहुंचते हैं ताकि नए बहीखाते से साल की शुरुआत मां लक्ष्मी और गणेश की कृपा के साथ की जा सके। देसी स्याही, पारंपरिक लाल कपड़ा और हाथ से बने कागज़ों पर तैयार बहीखाते अब विरले हो चले हैं। लेकिन इन्हें पूजने वालों की आस्था ज़रा भी कम नहीं हुई।
25 से 30 क्विंटल माल की होती थी बिक्री
हिंदू कैलेंडर के अनुसार, दीपावली की अमावस्या के दिन व्यापारी नये बहीखाते पर ‘श्री गणेशाय नमः’ और ‘शुभ लाभ’ लिखकर नए वित्तीय साल का शुभारंभ करते हैं। यह पूजन लक्ष्मी, गणेश और कुबेर की आराधना के साथ सम्पन्न होता है। एक दौर था जब इस दुकान से 25 से 30 क्विंटल तक माल की बिक्री हो जाती थी। जो अब सिमट कर डेढ़ से दो क्विंटल पर आ कर रह गयी है।
डिजिटल इंडिया के इस दौर में भले ही हिसाब-किताब में लैपटॉप ने जगह बना ली हो, लेकिन विश्वास और परंपरा की संस्कृति आज भी डायरी,कॉपी,रजिस्ट्रर साइज में उपलब्ध इन बहीखाते के पन्नों में ही बसती है।
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