Uttarakhand’s Rajat Jayant: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने आज उत्तराखण्ड राज्य स्थापना, रजतोत्सव के अवसर पर आयोजित, उत्तराखण्ड विधानसभा के विशेष सत्र को संबोधित किया। राष्ट्रपति ने इस ऐतिहासिक अवसर के लिए उत्तराखण्ड विधानसभा के पूर्व और वर्तमान सदस्यों तथा सभी राज्यवासियों को बधाई देते हुए कहा कि अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री कार्यकाल में, यहां के जनमानस की आकांक्षा के अनुरूप, बेहतर प्रशासन और संतुलित विकास की दृष्टि से, 9 नवंबर, 2000 में इस राज्य की स्थापना की गई।
शिक्षा के क्षेत्रों में राज्य ने सराहनीय प्रगति की
राष्ट्रपति ने कहा कि विगत पचीस वर्षों की यात्रा के दौरान उत्तराखण्ड के लोगों ने विकास के प्रभावशाली लक्ष्य हासिल किए हैं। पर्यावरण, ऊर्जा, पर्यटन, स्वास्थ्य-सेवा और शिक्षा के क्षेत्रों में राज्य ने सराहनीय प्रगति की है। इसी तरह डिजिटल और फिजिकल कनेक्टिविटी तथा इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलमेंट के क्षेत्रों में भी विकास हुआ है। राष्ट्रपति मुर्मु ने कहा कि विकास के समग्र प्रयासों के बल पर राज्य में मानव विकास सूचकांक के मानकों पर सुधार हुआ है। राज्य में साक्षरता बढ़ी है, महिलाओं की शिक्षा में विस्तार हुआ है, मातृ एवं शिशु-मृत्यु-दर में कमी आई है, राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं को सुलभ बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं।
उत्तराखण्ड विधान सभा ने अपना गौरव बढ़ाया
राष्ट्रपति ने राज्य में महिला सशक्तिकरण की दिशा में किए जा रहे प्रयासों की विशेष सराहना करते हुए कहा कि, इससे राज्य में सुशीला बलूनी, बछेन्द्री पाल, गौरा देवी, राधा भट्ट और वंदना कटारिया जैसी असाधारण महिलाओं की गौरवशाली परंपरा आगे बढ़ेगी। इसी तरह ऋतु खंडूड़ी भूषण को राज्य की पहली महिला विधान सभा अध्यक्ष नियुक्त करके उत्तराखण्ड विधान सभा ने अपना गौरव बढ़ाया है। उत्तराखण्ड की इस देव-भूमि से आध्यात्म और शौर्य की परम्पराएं प्रवाहित होती रही हैं। कुमांऊ रेजीमेंट और गढ़वाल रेजीमेंट के नाम से ही यहां की शौर्य परंपरा का परिचय मिलता है। यहां के युवाओं में भारतीय सेना के जरिए मातृ-भूमि की रक्षा करने के प्रति उत्साह दिखाई देता है। उत्तराखण्ड की यह शौर्य परंपरा सभी देशवासियों के लिए गर्व की बात है।
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राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे संविधान निर्माताओं ने ’नागरिकों के लिए एक समान सिविल संहिता’ के निर्माण के लिए संविधान के अनुच्छेद 44 के तहत प्रावधान किया था। संविधान निर्माताओं की इसी भावना के अनुरूप अब उत्तराखण्ड विधानसभा ने समान नागरिक संहिता विधेयक लागू कर दिया है, जिसकी वो सराहना करती हैं। उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड विधान सभा में 550 से अधिक विधेयक पारित किए गए हैं। उन विधेयकों में उत्तराखण्ड लोकायुक्त विधेयक, उत्तराखण्ड जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था विधेयक तथा नकल विरोधी विधेयक शामिल हैं। इससे पारदर्शिता, नैतिकता और सामाजिक न्याय की भावना मजबूत हुई है।
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राष्ट्रपति ने कहा कि विधान सभाएं हमारी संसदीय प्रणाली का प्रमुख स्तम्भ हैं। बाबासाहेब आंबेडकर ने कहा था कि संविधान निर्माताओं ने संसदीय प्रणाली को अपनाकर निरंतर उत्तरदायित्व को अधिक महत्व दिया था। जनता के प्रति निरंतर उत्तरदायी बने रहना संसदीय प्रणाली की शक्ति भी है और चुनौती भी। विधायक-गण, जनता और शासन के बीच की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी हैं।जमीनी स्तर पर क्षेत्र की जनता से जुड़कर उनकी सेवा करने का अवसर मिलना बड़े सौभाग्य की बात है। उन्हें यह जानकर प्रसन्नता हो रही है कि उत्तराखण्ड विधान सभा में इस वर्ष राष्ट्रीय ई-विधान एप्लीकेशन की व्यवस्था का शुभारंभ हुआ है, इसके माध्यम से दो सत्रों का संचालन किया जा चुका है। इस एप्लीकेशन के जरिये सभी विधायक-गण, संसद तथा अन्य विधान-सभाओं एवं विधान परिषदों के बेस्ट प्रेक्टिस को अपना सकते हैं।
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संबोधन में अंत में राष्ट्रपति ने कहा कि उत्तराखण्ड में अनुपम प्राकृतिक संपदा और सौन्दर्य विद्यमान हैं। प्रकृति के इन उपहारों का संरक्षण करते हुए, राज्य को विकास के मार्ग पर आगे ले जाना है। उत्तराखण्ड की 25 वर्ष की विकास-यात्रा, विधायकों के योगदान से ही संभव हो पायी है। उन्होंने उम्मीद की कि आगे भी सभी विधायक जन-आकांक्षाओं को अभिव्यक्ति देते रहेंगे। ’राष्ट्र सर्वोपरि’ की भावना के साथ राज्य तथा देश को विकास-पथ पर तेजी से आगे ले जाने की जरूरत है। उन्होंने अपने संबोधन का समापन उत्तराखण्ड के सभी निवासियों को भविष्य की मंगलकामना देने के साथ की। राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (से नि) ने अपने अभिभाषण में प्रदेश की 25 वर्ष की विकास यात्रा को रेखांकित करते हुए कहा कि यह कालखण्ड उत्तराखण्ड के लिए आर्थिक समृद्धि, सुशासन, सामाजिक न्याय, महिला सशक्तिकरण और आधारभूत संरचना निर्माण का स्वर्णिम दौर रहा है।
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