सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि बच्चों को यौन अपराधों से संरक्षण करने के लिए बनाये गए अधिनियम (पॉक्सो कानून) का गलत इस्तेमाल बढ़ रहा है। अदालत ने देखा कि इस कानून का उपयोग कई बार पति-पत्नी के झगड़ों या किशोर-किशोरी के आपसी सहमति वाले संबंधों में किया जा रहा है, जो कानून की असली भावना के खिलाफ है। जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस आर महादेवन की पीठ एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इस याचिका में मांग की गई है कि लोगों को दुष्कर्म और पॉक्सो कानून के प्रावधानों के बारे में जागरूक किया जाए, ताकि देश में महिलाओं और लड़कियों के लिए माहौल और सुरक्षित बने।
पॉक्सो एक्ट के गलत इस्तेमाल पर जताई चिंता
इस सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा, ‘हम यह देख रहे हैं कि कई बार पॉक्सो एक्ट का इस्तेमाल झगड़ों या किशोरों के आपसी संबंधों में गलत तरीके से किया जा रहा है। इसलिए जरूरी है कि लड़कों और पुरुषों में इस कानून की जानकारी और समझ बढ़ाई जाए।’
2 दिसंबर तक के लिए टली सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई 2 दिसंबर तक टाल दी है, क्योंकि कुछ राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों ने अभी तक इस मुद्दे पर अपनी राय नहीं दी है। पहले, अदालत ने केंद्र सरकार, शिक्षा मंत्रालय, सूचना और प्रसारण मंत्रालय और फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था। वरिष्ठ अधिवक्ता आबाद हर्षद पोंडा ने अदालत से कहा कि लोगों को यह बताया जाना जरूरी है कि निर्भया कांड के बाद दुष्कर्म से जुड़े कानूनों में क्या बदलाव हुए हैं।
याचिका में शिक्षा मंत्रालय को निर्देश देने की मांग
जनहित याचिका में मांग की गई है कि शिक्षा मंत्रालय सभी स्कूलों को यह निर्देश दे कि बच्चों को महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों से जुड़े कानूनों की बुनियादी जानकारी दी जाए। नैतिक शिक्षा को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए ताकि बच्चों को लैंगिक समानता, महिलाओं के अधिकार और सम्मानजनक जीवन के महत्व के बारे में सिखाया जा सके।
दुष्कर्म जैसे अपराधों के दुष्परिणाम-सजा के बारे में करें जागरूक
इस याचिका में यह भी कहा गया है कि सूचना और प्रसारण मंत्रालय तथा सीबीएफसी को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि फिल्मों और मीडिया के माध्यम से जनता को दुष्कर्म जैसे अपराधों के दुष्परिणाम और सजा के बारे में जागरूक किया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि लड़कियों की सुरक्षा सिर्फ कानून से नहीं, बल्कि समाज की सोच बदलने से संभव है, और यह बदलाव स्कूल स्तर से शुरू होना चाहिए।
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