लखनऊ. आज वो ऐतिहासिक तारीख है जिस दिन आज से 150 वर्ष पहले देश में नए गीत का उदय हुआ था. ये वो गीत था जो स्वतंत्रता का नाद बन गया. ये वो गीत था जिसने देशवासियों में देशभक्ति की अद्भुत ज्वाला प्रज्ज्वलित की थी. यह गीत है बंकिमचन्द्र चटोपाध्याय के उपन्यास ‘आनंदमठ’ का एक हिस्सा- ‘वंदे मातरम्’. आज इस गीत की रचना के 150 वर्ष हो गए हैं. इस अवसर पर सीएम योगी ने सभी से इस गीत के सामूहिक गान की अपील की है.
सीएम योगी ने एक पोस्ट साझा करते हुए लिखा है कि ‘मां भारती की उपासना को समर्पित हमारे राष्ट्रगीत ‘वंदे मातरम्’ के गौरवशाली 150 वर्ष पूर्ण होने के पावन अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज पूर्वाह्न 9:50 बजे सार्वजनिक स्थलों पर ‘वंदे मातरम्’ के पूर्ण संस्करण के सामूहिक गान का आह्वान किया है. आइए, प्रधानमंत्री जी के इस राष्ट्रप्रेरक आह्वान से जुड़ते हुए हम सब एक स्वर, एक संकल्प और एक भावना में समाहित होकर राष्ट्रगीत का सामूहिक गान करें. यह मात्र गीत नहीं राष्ट्र की आत्मा की गूंज है, जो हमें एकता, अखंडता और ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ के संकल्प से जोड़ती है. वंदे मातरम्!’
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बता दें कि देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत चट्टोपाध्याय ने 7 नवम्बर 1875 को वंदेमातरम् की रचना की थी. वंदे मातरम् को कांग्रेस के अधिवेशन में प्रथम बार कलकत्ता में 1896 में गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर ने गाया. इसके बाद यह कांग्रेस के अधिवेशनों में परंपरागत रूप से गाया जाने लगा. वर्ष 1901 में भी कलकत्ता अधिवेशन में गाया गया, यहां चरणदास ने गायन किया. वर्ष 1905 में वाराणसी में आयोजित अधिवेशन में सरला देवी ने गायन किया. वर्ष 1923 में गायन के समय इसका विरोध हुआ. वंदे मातरम् की प्रबल राष्ट्रीय भावना के प्रकटीकरण के लिए ही स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय ने अपने समाचार पत्र का नामकरण ही “वंदे मातरम्” किया. अंग्रेजों की गोली लगने से शहीद हुईं क्रातिकारी मांतगिनी हजारा ने “वंदे मातरम्” का उद्घोष करते हुए अपने प्राण त्याग दिये थे. जर्मनी में मैडम भीकाजी कामा ने “वंदे मातरम्” लिखा तिरंगा स्टेट गार्ड में फहराया था. इसे जब बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय ने अपने उपन्यास “आनन्द मठ” में 1882 में शामिल किया तो यह क्रांति गीत बन गया.
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