देहरादून. धराली में आई आपदा को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष करन माहरा ने धामी सरकार पर करारा हमला बोला है. करन माहरा ने आरोप लगाया कि आपदा के बाद लोगों किसी भी प्रकार की राहत नहीं दी गई. करन माहरा ने एक्स पर पोस्ट करते हुए कहा, मैं धराली गया था आपदा के ठीक बाद. जो मैंने वहां देखा, वह शब्दों में बयां करना आसान नहीं है, लेकिन चुप नहीं रहूंगा. वहां सब कुछ बर्बाद हो चुका था, घरों की दीवारें मिट चुकी थीं, आंगन ख़त्म थे, रास्ते टूटी पड़ी थीं और लोगों के चेहरे पर वही खालीपन था जो किसी के पूरे जीवन को पल भर में छीन लेने के बाद आता है. छोटे-छोटे बच्चे, बूढ़े और गर्भवती महिलाएं सब खुले आसमान के नीचे थके, भयभीत और असहाय. सड़कें बंद थीं बेसहारा लोग अपने लिए पानी और खाना तक तरस रहे थे.

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आगे करन माहरा ने कहा, मैंने तब भी आवाज़ उठाई और कहा कि राहत तत्काल पहुंचे, मुआवज़ा दिया जाए, टूटे रास्ते और स्वास्थ्य सुविधाएं ठीक की जाएं, लेकिन जवाब मिला दिखावे और दर्शकों के लिए स्क्रिप्टेड रीलें. मुख्यमंत्री का हेलीकॉप्टर धराली के ऊपर चक्कर लगाते रहे, नीचे मौजूद लोगों की आंखों में उलझे जख्मों की तस्वीरें नहीं, बल्कि पॉज़ किए हुए फोटो और चमकती रीलें बनाकर सोशल मीडिया पर परोसी गईं. पत्रकारों को जमीन की सच्चाई दिखाने से रोका गया, ताकि कैमरे नीचे की आबादी तक पहुंचने वाली आवाज को रोक दें.

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करन माहरा ने आगे कहा, और आज हाईकोर्ट ने भी सरकार की रिपोर्ट से असंतोष जाहिर कर दिया है क्योंकि रिपोर्ट कहानियां बनाकर भरोसा नहीं जीत सकतीं. असलियत यह है कि न मुआवजा मिला, न प्रभावी राहत, न स्वास्थ्य व्यवस्था में सुधार, और न ही प्रभावित इलाकों के लिए ठोस प्लान. ऐसे में सरकार की “संतुष्ट रिपोर्ट” जनता के खून पसीने की कीमत चुकाकर तैयार की गयी दिखती है.

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यह सिर्फ धराली का मामला नहीं है, बल्कि यह उस सिस्टम की परख है जो आपदा के वक़्त भी दिखावे और PR को प्राथमिकता देता है. क्या जान केवल कैमरे और रील के लिए बचायी जा रही है? क्या ज़मीन पर मौजूद मां-बाप, बुज़ुर्ग और बच्चे तब तक इंतज़ार करें जब तक कोई पोज़ बनाकर हवाई नज़रें भर ले? हम मांग करते हैं और मांग कहने से पहले धराली के लोग रो रहे हैं, इसलिए यह मांग हुकूमत के प्रति नहीं, बल्कि इंसानियत के प्रति है:

अतिशीघ्र और पारदर्शी राहत पहुंचाई जाए – खाद्य, पानी, दवाइयां और अस्थायी आवास तुरंत.

प्रभावित परिवारों को न्यायोचित मुआवज़ा दिया जाए – ताकि वे अपना जीवन फिर से बना सकें. सड़कें और स्वास्थ्य-सुविधाएं तात्कालिक मरम्मत के साथ बहाल की जाएं-खासकर गर्भवती महिलाओं और बीमारों के लिए.

एक स्वतंत्र, लोकप्रतिनिधि-अनुपस्थित जांच आयोग बनाकर रिपोर्ट सार्वजनिक की जाए – झूठी रिपोर्टों और दिखावों की जवाबदेही तय हो.

पत्रकारों और स्थानीय निवासियों को मुक्त होकर सच्चाई दिखाने की अनुमति दी जाए – सूचना दबाना अपराध है.