Old vehicle Fitness Certificate Fee Hike: देश में पुरानी गाड़ियों को लेकर अब एक नया संकट खड़ा हो गया है. सड़क पर दौड़ने वाली लाखों कारों, बाइकों और कमर्शियल वाहनों के लिए फिटनेस सर्टिफिकेट की फीस अचानक कई गुना बढ़ा दी गई है.

मंत्रालय का दावा है कि यह बदलाव सुरक्षा और पर्यावरण मानकों को मजबूत करने के लिए जरूरी हैं, लेकिन आंकड़े और नए नियम एक गहरी कहानी बयां करते हैं, कहीं यह कदम पुराने वाहनों को अप्रत्यक्ष रूप से सड़क से हटाने की एक रणनीति तो नहीं?

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Old vehicle Fitness Certificate Fee Hike

Old vehicle Fitness Certificate Fee Hike

सरकार ने फिटनेस टेस्ट की नई व्यवस्था को तीन वर्गों में विभाजित किया है, 10 से 15 साल, 15 से 20 साल और 20 साल से अधिक पुरानी गाड़ियां. जैसे-जैसे आपकी गाड़ी की उम्र बढ़ेगी, वैसे-वैसे फिटनेस टेस्ट का खर्च भी बढ़ता जाएगा.

सबसे ज्यादा झटका 20 साल पार कर चुकी कारों और कमर्शियल वाहनों को लगा है. एक साधारण कार के लिए फिटनेस सर्टिफिकेट की नई फीस 15,000 रुपये कर दी गई है, जबकि बाइकों के लिए यह 2,000 रुपये और हैवी व्हीकल्स के लिए 25,000 रुपये हो गई है. ये रकम पहले की तुलना में लगभग 10 गुना है.

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मंत्रालय का तर्क है कि पुराने वाहन अपनी डिज़ाइन लाइफ पार कर जाते हैं और इससे सुरक्षा और प्रदूषण का खतरा बढ़ता है. नई फीस से ऑटोमेटेड टेस्टिंग सेंटर्स में आधुनिक मशीनें लग सकेंगी और जांच अधिक कठोर हो सकेगी. पर सवाल यह है कि आर्थिक रूप से परेशान लाखों गाड़ी मालिक यह भारी-भरकम खर्च कैसे उठाएंगे?

गहराई से देखने पर तस्वीर और स्पष्ट होने लगती है. बाइक या कार नहीं, सबसे बड़ा बोझ ट्रक, बस और अन्य कमर्शियल वाहनों पर पड़ा है. इनकी मेंटेनेंस पहले ही भारी खर्च मांगती है, अब फिटनेस टेस्ट पर कई हजारों रुपये और खर्च करना मालिकों को या तो कर्ज में धकेल देगा या उन्हें अपनी गाड़ियां स्क्रैप करवाने पर मजबूर करेगा. यही वजह है कि उद्योग जगत इसे स्क्रैपिंग पॉलिसी को तेजी से लागू करने की अप्रत्यक्ष कोशिश के रूप में देख रहा है.

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फिटनेस टेस्ट की प्रक्रिया भी आसान नहीं है. फेल होने की सूरत में बढ़ी हुई री-टेस्ट फीस अलग से देनी पड़ती है. गाड़ी की लाइट, ब्रेक, सस्पेंशन, एमिशन, हर छोटे-बड़े हिस्से की जांच की जाती है.

एक पुरानी गाड़ी का मेंटेनेंस और फिटनेस मिलाकर अब उसकी वैल्यू से ज्यादा खर्च होने लगा है. इसका सीधा असर मिडिल क्लास फैमिली पर पड़ेगा, जो नई गाड़ी खरीदने की स्थिति में नहीं होती.

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उधर, ऑटो इंडस्ट्री के एक्सपर्ट्स का कहना है कि इस फैसले का फायदा इलेक्ट्रिक और BS-6 वाहनों को मिलेगा. बढ़े हुए खर्च पहले मालिकों को स्क्रैपिंग की ओर ले जाएंगे, फिर वे ईंधन-कुशल या इलेक्ट्रिक वाहनों पर शिफ्ट होंगे. सरकार के 2030 तक क्लीन व्हीकल मिशन को देखते हुए यह कदम उसी दिशा में आगे बढ़ता दिख रहा है.

आने वाले महीनों में RTO में भीड़ बढ़ने की आशंका जताई जा रही है. लाखों वाहन मालिक फिटनेस सर्टिफिकेट के लिए लाइन में खड़े होंगे. जो लोग इन्हें वहन नहीं कर पाएंगे, वे अपनी गाड़ियां सेकंड-हैंड मार्केट में बेचने या कबाड़ में देने पर मजबूर होंगे.

सरकार बार-बार कह रही है कि यह कदम सुरक्षा के लिए जरूरी है, लेकिन जमीनी हालात बताते हैं कि यह केवल सुरक्षा का मामला नहीं, यह एक बड़े बदलाव की शुरुआत है. वह बदलाव जिसमें पुराने वाहन आपके बजट से बाहर भी हो सकते हैं और सड़कों से बाहर भी.

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