Bastar News Update : इंदिरा प्रियदर्शिनी स्टेडियम में हुए जिला स्तरीय बस्तर ओलंपिक का समापन हुआ और जगदलपुर ब्लॉक ओवरऑल चैंपियन बना. आयोजन में 1999 खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया और यह ग्रामीण प्रतिभा को उभारने का बड़ा मंच बनकर उभरा. कई स्पर्धाएँ धरमपुरा और पंडरीपानी में आयोजित हुईं, जिनमें कुछ मैदानों के रख-रखाव और सुविधाओं की कमी नजर आई. खिलाड़ियों और कोचों ने पीने के पानी, फर्स्ट एड और तकनीकी सहायता की बाधाओं की बात उठाई. विजेताओं को डीबीटी के जरिए नगद पुरस्कार जारी करने का निर्णय खिलाड़ियों के लिए सहायक रहा. समापन समारोह में रूपसिंह मंडावी ने खेल भावना पर जोर दिया और ग्रामीण प्रतिभा को आगे बढ़ाने का संदेश दिया. तीरंदाजी, एथलेटिक्स और रस्साकशी में युवा खिलाड़ियों के प्रदर्शन ने खास छाप छोड़ी. सलोनी बघेल, अस्तिपाल और मदन जैसे खिलाड़ियों ने व्यक्तिगत मुकाबलों में शानदार परिणाम दिए.

आयोजन के समन्वय में शेड्यूल में बदलाव और तकनीकी कमियों ने वक्तव्यगत असमंजस्य पैदा किया. जिला प्रशासन ने संभाग स्तरीय तैयारी से पहले सभी मैदानों की विस्तृत समीक्षा का आश्वासन दिया. खिलाड़ी और अभिभावक अगले सत्र में बेहतर प्रशिक्षण शिविर और समयबद्ध आयोजन की उम्मीद रखते हैं. खेलों में दर्शाई गई अनुशासन और खेल भावना ने दर्शकों का समर्थन हासिल किया. ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाले प्रतिभागियों के लिए लॉजिस्टिक्स और आवागमन पर सुधार की आवश्यकता स्पष्ट हुई.

जिला खेल अधिकारी ने कहा कि अगले आयोजन में इन कमियों को दूर करने के लिए कदम उठाए जाएंगे. समापन ने यह संकेत दिया कि प्रतिभा मौजूद है, पर उसे निखारने के लिए बुनियादी ढांचे और व्यवस्थाओं में निवेश जरूरी है.

गर्ल्स हॉस्टल सुरक्षा पर बड़ा सवाल

जगदलपुर मेडिकल कॉलेज परिसर में लड़कियों के हॉस्टल की सुरक्षा एक बार फिर कटघरे में है. अंधेरा होने के बाद परिसर में बेखौफ शराबियों की आवाजाही ने छात्राओं की चिंता बढ़ा दी है. हर महीने लाखों रुपये सुरक्षा एजेंसी को देने के बावजूद ग्राउंड लेवल पर सुरक्षा इंतज़ाम नज़र नहीं आते.

एमबीबीएस छात्राएं बताती हैं कि रात होते ही हॉस्टल के आसपास अजनबी लोगों की मौजूदगी उनका मनोबल तोड़ती है. कॉलेज कैंपस में यह कोई पहला मामला नहीं है पहले भी सुरक्षा ढीलापन कई बार सामने आ चुका है. सूनसान माहौल और बिना मॉनिटरिंग के घूमते संदिग्ध लोग छात्राओं के भीतर खौफ पैदा कर रहे हैं. छात्राओं ने मांग की है कि सुरक्षा गार्ड की तैनाती बढ़ाई जाए और कैंपस में नाइट पेट्रोलिंग अनिवार्य की जाए. प्रशासन पर सवाल यह है कि लाखों की सुरक्षा व्यवस्था सिर्फ कागजों में है या ज़मीन पर भी? फिलहाल कॉलेज प्रबंधन पर दबाव है कि तत्काल प्रभाव से सुरक्षा खामियों को दूर करे और छात्राओं को भरोसा दे.

दंतेवाड़ा – नाका और जैविक धान “पहचान पर ख़तरा”

दंतेवाड़ा-सुकमा सीमा पर चिंगावारम नाका वर्तमान में खाली और अव्यवस्थित दिख रहा है. नाके पर नियमित कर्मचारी तैनात न होने से अवैध धान की खेपें आसानी से जिले में प्रवेश कर रही हैं. सख्त व्यवस्था कागजों में तो दर्ज है, पर जमीनी निगरानी नाकाफी होने से व्यवस्था फेल हो रही है. सुकमा के स्टॉकिस्ट बड़े पैमाने पर धान जमा कर देते हैं और खरीदी के समय इसे दंतेवाड़ा में भेजा जाता है. बीजापुर और नारायणपुर किनारों से निगरानी के अभाव ने धान की घुसपैठ को और बढ़ा दिया है. दंतेवाड़ा की 100% जैविक धान की ब्रांड वैल्यू बाजारू मिलावट से प्रभावित हो रही है.

किसान और स्थानीय उत्पादक इसे अपनी मेहनत की पहचान पर सीधा प्रहार मानते हैं. खाद्य विभाग की प्रारंभिक कार्रवाइयाँ अस्थायी रहती हैं और सिस्टम धीरे-धीरे कमजोर पड़ता दिखता है. स्थानीय लोगों का कहना है कि नाके सिर्फ सजावटी बोर्ड बनकर रह गए हैं, जमीन पर प्रभाव शून्य है. अगर निगरानी नहीं कड़ी की गई तो दंतेवाड़ा का जैविक धान केवल रिकॉर्ड ही रह जाएगा. प्रशासन से मांग है कि नाके पर स्थायी तैनाती और मोबाइल चेकिंग टीम तुरंत लगाई जाए. किसानों ने सीमा निगरानी और गोदामों की नियमित छानबीन की अपील की है. विशेषज्ञ सुझाव दे रहे हैं कि पहचान बचाने के लिए ट्रेसबिलिटी और बैरकोडिंग जैसी तकनीक अपनाई जाए. स्थानीय प्रतिनिधि और किसानों ने मिलकर राज्य स्तर पर इस मुद्दे को उठाने की तैयारी शुरू कर दी है. समय पर ठोस कदम नहीं उठे तो दंतेवाड़ा की अर्थव्यवस्था और जैविक ब्रांड दोनों को नुकसान होगा.

धान खरीदी केंद्र में काम नहीं होने से किसान परेशान…

सुकमा- छिंदगढ़ ब्लॉक में उद्घाटन के बाद भी धान खरीदी केंद्र काम न करने से किसानों में भारी आक्रोश है. रानीबहाल, कांजीपानी और अन्य केंद्रों पर किसान आदर तक पहुँच रहे हैं, पर खरीदी शुरू नहीं हो रही. खरीदी में देरी से किसान कर्ज के बोझ तले आ रहे हैं और मजबूरी में कम दाम पर बेचने को मजबूर हैं. ब्लॉक कांग्रेस ने केंद्रों की अव्यवस्था को लेकर जोरदार प्रदर्शन किया और ज्ञापन सौंपा. किसानों ने चेतावनी दी है कि 10 दिनों में स्थिति नहीं सुधरी तो चक्का जाम किया जाएगा. वजन कांटा, बारदाना और कर्मचारियों की कमी खरीदी प्रक्रिया को पटरी से उतार रही है. कई केंद्रों का उद्घाटन दिखावटी साबित हुआ क्योंकि सिस्टम पर काम नहीं किया गया.

किसानों के बार-बार आने के कारण अतिरिक्त परिवहन और समयगत लागत बढ़ रही है. कुछ व्यापारियों ने स्थिति का फायदा उठाकर दबाव में कम दरों पर खरीदी शुरू कर दी है.

प्रशासन ने आश्वासन दिया है, लेकिन मौके पर नज़र आ रही जमीनी असमर्थता चिंता बढ़ाती है. स्थानीय किसान नेताओं ने लगातार निगरानी और तात्कालिक कर्मचारियों की नियुक्ति की मांग उठाई है. खरीदी आरम्भ होने पर किसानों को उचित समर्थन कीमत और पारदर्शी प्रक्रिया का आश्वासन चाहिए. अगर व्यवस्था शीघ्र नहीं सुधरी तो सकारात्मक सीज़न और ग्रामीण आर्थिक संतुलन पर असर होगा. ब्लॉक स्तर पर व्यवस्थित खरीदी के बिना किसानों की सालभर की आमदनी असुरक्षित रहेगी.
अब देखना होगा कि प्रशासन जल्द प्रभावी स्टेप लेकर किसानों की नाराजगी को शांत कर पाता है या नहीं.

सुकमा पुनर्वास केंद्र में उपमुख्यमंत्री शर्मा से युवाओं का सीधा संवाद

सुकमा पुनर्वास केंद्र में उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा के आकस्मिक निरीक्षण ने केंद्र की समस्याओं को शीघ्रता से उजागर किया. युवाओं ने दस्तावेजों के अभाव और बुनियादी सुविधाओं की कमी की जानकारी सीधे उपमुख्यमंत्री को दी. उपमुख्यमंत्री ने मौके पर अधिकारियों को प्रमाण-पत्र बनवाने और निरीक्षण का निर्देश दिया. आधार, राशन और आयुष्मान कार्ड बनवाने के लिए आवेदन कराए गए और प्रक्रिया की निगरानी की गई.

अधिकारियों के साथ बैठकर उपमुख्यमंत्री ने पुनर्वास प्रक्रिया में पारदर्शिता और त्वरित सुधार की बातें कीं. प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में राज-मिस्त्री, कृषि उद्यमी और सिलाई जैसे कौशल शामिल कर रोजगार पर फोकस रखा जा रहा है. यक्षाओं ने मुख्यधारा में लौटने के बाद रोजगार और सामाजिक पुनर्संयोजन की आशा व्यक्त की. प्रशासन ने स्वास्थ्य शिविर और विधानसभा दौरों के जरिए युवाओं को लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं से जोड़ा जाएगा, यह भी सुनिश्चित किया गया. पुनर्वास केंद्र में दस्तावेज पूर्ण होने पर कई युवाओं के बाहर संपर्क सुगम होंगे और सामाजिक पुनर्स्थापन होगा. स्थानीय पुलिस और उच्चाधिकारियों की मौजूदगी ने सुरक्षा और निगरानी का भरोसा बढ़ाया. कुछ युवाओं ने पारिवारिक बंदिशों के कारण जेल में परिजन होने की चिंता जताई, जिनके मिलने की व्यवस्था पर आश्वासन मिला. सामूहिक विवाह जैसी सामाजिक समायोजन सुविधाओं पर भी अधिकारियों ने सकारात्मक संकेत दिए हैं. केंद्र में दी जा रही ट्रेनिंगों की गुणवत्ता और रोज़गार के मार्ग स्पष्ट रखने की आवश्यकता बनी हुई है. पुनर्वासित युवाओं को दीर्घकालिक रोज़गार दिलाने के लिए अगले कदमों की रूपरेखा तैयार की जा रही है. उपमुख्यमंत्री की व्यक्तिगत भागीदारी ने युवा वर्ग में आशा जगाई है, पर क्रियान्वयन पर नजर बनी रहेगी.