चमोली. संसद के शीतकालीन सत्र का आज तीसरा दिन है. सदन में आज भी जमकर हंगामा हुआ. इस बीच उत्तराखंड के राज्यसभा सांसद महेंद्र भट्ट ने ऐतिहासिक चिपको आंदोलन की नेतृत्वकर्ता गौरा देवी को मरणोपरांत भारत रत्न देने की मांग की. उन्होंने बताया कि गौरा देवी सीमांत चमोली जोशीमठ विकासखंड के रैणी गांव की भोटिया जनजाति की ग्रामीण महिला थी.

सांसद ने राज्यसभा में विशेष उल्लेख के दौरान केंद्र सरकार से चिपको आंदोलन की अग्रणी स्वर और प्रेरणा रही गौरा देवी को भारत रत्न देने की मांग की. सांसद ने सदन को बताया कि गौरा देवी ने अपने जीवनकाल में पर्यावरण संरक्षण के लिए चिपको आंदोलन की शुरुआत की. चिपको आंदोलन हिमालयी क्षेत्र में बड़े पैमाने पर, पेड़ों की कटाई के खिलाफ मातृशक्ति का वृझों के आलिंगन से जुड़ा एक बड़ा आंदोलन था. इस आंदोलन को 51 वर्ष पूर्ण हो चुके हैं.

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बता दें कि पेड़ों के संरक्षण के उद्देश्य से इस आंदोलन की शुरुआत 1973 में हुई थी. जिसे गौरा देवी ने शुरू किया था. दरअसल, वन विभाग ने जोशीमठ ब्लॉक के रैणी गांव के नजदीक पेंग मुरेंडा जंगल को पेड़ कटान के लिए चुना था. जिसके लिए ऋषिकेश निवासी ठेकेदार को 680 हेक्टेयर जंगल पौने पांच लाख रुपये में नीलामी में दिया गया. इस इलाके से रैणी और आसपास के गांव की महिलाएं लकड़ी लाती थी. ये उनकी आजीविका के साधन थे. जंगल में पेड़ कटाने की सूचना मिलते ही सारी महिलाएं इकट्ठा हो गईं. गांव की प्रधान गौरा देवी ने एक बड़ी बैठक की. जिसमें वृक्षों के संरक्षण का निर्णय लिया गया. रणनीति के तहत महिलाएं जंगल पहुंचकर पेड़ों से लिपट गईं. उन्होंने पेड़ कटान कटने वालों के ऐसे ही कई दिनों तक रोके रखा. बाद में गौरा देवी के नेतृत्व में महिलाओं ने ठेकेदार और उसके मजदूरों को जंगल से बाहर निकाल दिया. पेड़ों से चिपक कर इसे बचाने के कारण इसे चिपको आंदोलन कहा गय.