Bihar News: बिहार चुनाव में मिली करारी हार के बाद से राजद के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी लगातार पार्टी के खिलाफ बयान बाजी कर रहे हैं। यहां तक की वह तेजस्वी यादव पर सीधे हमला करने में भी कोई संकोच नहीं कर रहे हैं। वहीं, अब राजद एमएलसी सुनील सिंह ने बिना नाम लिए शिवानंद तिवारी पर निशाना साधा है।

सुनील सिंह ने शिवानंद तिवारी को बनाया अवसरवादी

सुनील सिंह ने अपने फेसबुक पोस्ट पर लिखा कि, तथाकथित अवसरवादी तिवारी बाबा को जब तक जेडीयू या बीजेपी कुछ बनाने का आश्वासन नहीं देगा, तब तक ये आरजेडी के खिलाफ रूदाली विलाप करते रहेंगे!

सुनील कुमार सिंह ने यह आरोप लगाया है को शिवानंद तिवारी जो कुछ सोशल मीडिया पर तेजस्वी यादव को लेकर लिख रहे हैं। वो सब कुछ बीजेपी या जदयू से प्रसाद पाने के ईक्षा को लेकर कर रहे हैं। ये सर्वविदित है।

शिवानंद तिवारी ने तेजस्वी को दी सलाह

गौरतलब है कि राजद और महागठबंधन की करारी हार के बाद से लगातार शिवानंद तिवारी राजद और तेजस्वी के नेतृत्व पर सवाल उठा रहे हैं। बीते दिनों शिवानंद तिवारी ने फेसबुक पर एक लंबा चौड़ पोस्ट करते हुए लिखा था कि, तेजस्वी यादव के संदर्भ में, जो उनको भेजा।

कल यानी 9 दिसंबर को मेरा जन्मदिन था। संयोग ऐसा है कि नौ दिसंबर मेरी प्यारी नतिनी शाएबा के विवाह का भी दिन है। उसका विवाह कर्नाटक के एक नौजवान के साथ हुई है। दोनों को जर्मनी में एक साथ पढ़ते थे और वहीं उनकी दोस्ती हुई। लड़का किस बिरादरी का है इसकी जानकारी मुझे आज तक नहीं है। क्योंकि लड़का इतना अच्छा और भला है कि इसके आगे कभी नजर ही नहीं गई। वह विवाह जमशेदपुर हुआ था।
संयोग है कि जिस दिन मेरी नातिन का विवाह हुआ यानी 9 दिसंबर 2021, उसी दिन तेजस्वी यादव का भी विवाह हुआ था। वह विवाह अंतर्धार्मिक था।

लेकिन उस विवाह के विषय में इससे ज़्यादा मुझे कोई जानकारी नहीं थी। फोन पर मैंने तेजस्वी को बधाई दी और उसे बताया कि नातिन के विवाह में हूं। आज मेरा जन्मदिन भी है। इसलिए तुम्हारे विवाह का दिन मुझे हमेशा याद रहेगा। कल मैंने जब अपने नातिन और दामाद को फोन पर बधाई दी तो मुझे तेजस्वी के विवाह की याद आई। हालांकि लालू परिवार से मैं थोड़ा अलग थलग चल रहा हूं। फिर भी मैंने फोन पर उसे बधाई संदेश भेजा. उसने भी इस 🙏इमोजी के जरिए मुझे जवाब दिया।

तेजस्वी, लालू यादव के बेटे हैं। उनके वारिस हैं। बल्की राष्ट्रीय जनता दल का कमान अब तेजस्वी के ही हाथ में है। पिछले चुनाव में तो घोषित हो गया था कि महागठबंधन के बहुमत में आने पर तेजस्वी यादव ही मुख्यमंत्री होंगे। लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। बल्कि उल्टा हुआ।

जय और पराजय तो किसी भी क्षेत्र में सहज और सामान्य नियम है। लेकिन सबसे महत्त्वपूर्ण सवाल यह है कि हम अपने जय या पराजय को किस रूप में लेते हैं। अगर विजयी पक्ष विजय के बाद अहंकार का प्रदर्शन करता है। पराजित पक्ष को नीचा दिखाने का प्रयास करता है, तो भविष्य में वह अपनी पराजय की गाथा लिख देता है। उसी प्रकार पराजित पक्ष के नेता की भूमिका विजयी पक्ष के नेता के मुक़ाबले ज़्यादा बड़ी हो जाती है। क्योंकि अपने सहयोगियों और समर्थकों के मनोबल को बनाए रखने की जवाबदेही उसको ही निभानी होती है। पराजय के बाद अगर वह मैदान छोड़ देता है तो वह स्वयं ही घोषित कर देता है कि वह भविष्य में मैदान में उतरने की लायकियत उसमें नहीं है।

लोकतंत्र में राजनीतिक दल अपनी अपनी विचारधारा के आधार पर अपने पक्ष में जनमत बनाने का प्रयास करते हैं। भले ही उक्त विचारधारा के आधार पर ईमानदारी से आचरण करते हों या नहीं। लेकिन संगठन के बनावट में किन लोगों को कैसी जगह मिलती है। आप किन लोगों को विधान परिषद, विधानसभा, राज्यसभा या लोकसभा में उम्मीदवार बनाते हैं। यह सब सार्वजनिक है। सबके नजर के सामने है। इन्हीं के आधार पर लोग आपकी विचारधारा का आकलन करते हैं। आपकी पार्टी के साथ जुड़ते या अलग हैं। तेजस्वी को देखना चाहिए कि जिन सिद्धांतों की आप घोषणा कर रहे हैं, उसकी छवि विधान परिषद, राज्य सभा में दिखाई देती है या नहीं। समाज का कमज़ोर तबका चाहे वह हिंदू हो या मुसलमान उसको वहां जगह मिल रही है या नहीं। उनको आप उनको यहां जगह नहीं दे रहे हैं तो आप उनके समर्थन की अपेक्षा कैसे कर सकते हैं!

शिवानंद तिवारी ने आगे लिखा- तेजस्वी को जब पार्टी का नया नया कमान मिला था, उस समय मैंने उसको कहा था कि तुम्हारे पिताजी तुम्हारे लायक गुरु नहीं हो सकते हैं। क्योंकि 90 में मंडल अभियान और आडवाणी जी की गिरफ़्तारी के बाद तो “न भूतो न भविष्यति” जैसा जन समर्थन उनको मिला था। राजनीति में एक नायक जैसी छवि उनकी बन गई थी। मैंने स्वयं देश के कई इलाक़ों में उनके साथ गया हूं और इसको प्रत्यक्ष देखा है। लेकिन कितनी जल्दी सब कुछ बिखर गया! 90 के हीरो 2010 में 22 सीट पर सिमट गए। विरोधी दल की मान्यता भी नहीं मिली। तुमने तो थोड़ा बेहतर किया है। विपक्ष के मान्यता प्राप्त नेता हो। लेकिन नतीजा के बाद तुम ग़ायब हो गए! तुम्हें तो अपने सहयोगियों के साथ बैठना था। पार्टी के निचले स्तर तक के साथियों के साथ बैठना था। उनको ढाढ़स देनी थी। ताकि हार के बाद भी उनका मनोबल थोड़ा बहुत क़ायम रहे। लेकिन तुमने तो मैदान ही छोड़ दिया। समता पार्टी के गठन में मेरी किसी से कम भूमिका नहीं थी। पहले चुनाव में पार्टी महज़ सात सीटों पर ही सिमट गई। लेकिन हमने मैदान नहीं छोड़ा।

लेकिन तुम तो दो दिन भी नहीं टिक पाए। अपने सहयोगियों और समर्थकों का मन छोटा कर दिया।
वैसे आज कल रजद के राज्य कार्यालय में समीक्षा बैठक चल रही है। मंगनी लाल जी कार्यकर्ताओं के आदमी हैं। कार्यकर्ताओं की बात सुनते हैं। उनकी इज़्ज़त है। कार्यकर्ता जगता भाई की इज़्ज़त नहीं करते थे। उनसे डरते थे। वे नेता नहीं साहब थे। जैसे साहब लोग मंत्री को वही सुनाते हैं, जो उनको अच्छा लगता है।

संजय और जगता भाई, दोनों ने तुम्हारी आंखों पर पट्टी बांध दी थी। खूब हरियाली दिखाई। एवज में दोनों ने भरपूर हासिल भी कर लिया। तुमको भी वही अच्छा लगता था। सब कुछ लूट जाने के बाद जब सत्य सामने आया तो तुम सामना नहीं कर पाए। मैं तो सलाह दूंगा कि तत्काल वापस लौटो। बिहार में घूमो। नेता की तरह नहीं। बल्कि कार्यकर्ता की तरह, उनसे बराबरी से मिलो। साहब की तरह नहीं। तभी भविष्य बचेगा। याद रखना समय किसी का इंतज़ार नही करता है। तुम्हारा शुभचिंतक-शिवानन्द 10 दिसंबर 25।

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