दिल्ली हाईकोर्ट(Delhi High Court) ने अवैध निर्माण(illegal construction) के खिलाफ दायर एक याचिका पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता को कड़ी फटकार लगाई। अदालत ने पाया कि याचिकाकर्ता बार-बार एक जैसी याचिकाएं दायर कर रहा है और यह इस तरह की पाँचवीं याचिका है। कोर्ट के मुताबिक, याचिका का उद्देश्य जनहित नहीं बल्कि निजी लाभ प्रतीत होता है। जांच में यह भी सामने आया कि याचिकाकर्ता इन्हीं याचिकाओं के माध्यम से संपत्ति मालिकों को ब्लैकमेल करता है। अदालत ने टिप्पणी करते हुए कहा कि इस याचिका में सद्भावना नहीं, बल्कि निजी स्वार्थ दिखाई देता है।

याचिकाकर्ता की मंशा पर सवाल उठाए

न्यायमूर्ति मिनी पुष्कर्णा ने रोहिणी सेक्टर-15 में कथित अवैध निर्माण को गिराने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान पाया कि याचिकाकर्ता पहले भी इसी क्षेत्र की अलग-अलग संपत्तियों को लेकर चार याचिकाएँ दायर कर चुका है। यह पाँचवीं याचिका है। कोर्ट ने कहा कि इससे पूर्व दायर याचिकाएँ या तो आगे नहीं बढ़ाई गईं या फिर यह कहते हुए वापस ले ली गईं कि संबंधित संपत्ति मालिक स्वयं निर्माण हटा रहे हैं। अदालत ने इस पैटर्न पर सवाल उठाया और टिप्पणी की कि ऐसे मामलों में जनहित के बजाय निजी स्वार्थ या दबाव डालने का उद्देश्य अधिक दिखाई देता है।

संपति मालिकों को ब्लैकमेल करता है

सुनवाई के दौरान नगर निगम दिल्ली (एमसीडी) ने अदालत को जानकारी दी कि याचिकाकर्ता इस क्षेत्र की विभिन्न संपत्तियों को लेकर बार-बार अदालत का दरवाज़ा खटखटा चुका है। यहां तक कि उसने एक अवमानना याचिका भी दायर की थी, जिसे बाद में वापस ले लिया गया। निजी प्रतिवादी की ओर से यह आरोप लगाया गया कि याचिकाकर्ता इलाके के संपत्ति मालिकों को निशाना बनाकर कथित रूप से ब्लैकमेल करता है, और जनहित की आड़ में अपने निजी लाभ के लिए अदालत का इस्तेमाल करता रहा है।

याचिका में सद्भावना नहीं दिखती

रिकॉर्ड का अवलोकन करने के बाद हाईकोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता कथित अवैध निर्माण से प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित नहीं है। अदालत ने माना कि बार-बार याचिका दायर करने और उसके बाद उन्हें वापस लेने का सिलसिला रिट क्षेत्राधिकार के दुरुपयोग की ओर संकेत करता है। कोर्ट ने टिप्पणी की कि याचिकाकर्ता के कदमों में सद्भावना प्रतीत नहीं होती और यह निजी स्वार्थ से प्रेरित मालूम पड़ता है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि किसी भी व्यक्ति को कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

जब सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के आचरण पर सवाल उठे, तो उसके वकील ने याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी। अदालत ने याचिका वापस लेने की इजाजत तो दे दी, लेकिन भविष्य में इस तरह की हरकतों पर रोक लगाने के लिए याचिकाकर्ता पर 50 हजार रुपये का जुर्माना लगाया। कोर्ट ने निर्देश दिया कि यह राशि चार सप्ताह के भीतर दिल्ली हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के कॉस्ट अकाउंट में जमा कराई जाए।

हालांकि, अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता के आचरण को देखते हुए अवैध निर्माण के मुद्दे को अनदेखा नहीं किया जा सकता। एमसीडी ने कोर्ट को बताया कि संबंधित निर्माण को नियमों के तहत पहले ही ‘बुक’ किया जा चुका है। इस पर हाईकोर्ट ने नगर निगम को निर्देश दिया कि वह कानून और निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार अवैध निर्माण पर कार्रवाई जारी रखे। अदालत ने यह भी कहा कि लगाए गए 50 हजार रुपये के जुर्माने की राशि जमा होने की पुष्टि अगली सुनवाई में की जाएगी। मामले पर अगली सुनवाई 9 जनवरी 2026 को संयुक्त रजिस्ट्रार के समक्ष तय की गई है।

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