दिल्ली सरकार ‘जन विश्वास विधेयक 2025’ का मसौदा तैयार कर रही है, जिसका उद्देश्य राजधानी में व्यावसायिक वातावरण को बेहतर बनाना और ईज ऑफ डूइंग बिजनेस को बढ़ावा देना है। इस प्रस्तावित विधेयक के तहत दर्जनों छोटे और तकनीकी किस्म के अपराधों पर लगने वाली जेल की सजा समाप्त की जा सकती है। सरकार का मानना है कि ऐसी मामूली त्रुटियों पर आपराधिक मामलों और सजा का प्रावधान न केवल व्यापार के अनुकूल माहौल बाधित करता है, बल्कि हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली और अदालतों पर भी अनावश्यक दबाव डालता है।

सूत्रों के अनुसार, यह प्रस्तावित कानून राजधानी के कम से कम 10 विभागों के नियमों में संशोधन लाएगा। इनमें बिजली, दिल्ली जल बोर्ड, पर्यटन, व्यापार और कर, श्रम तथा आबकारी विभाग शामिल हैं। इन विभागों के अंतर्गत आने वाले कई छोटे उल्लंघनों को अब अपराध की श्रेणी से बाहर किया जा सकता है। उदाहरण के तौर पर दिल्ली जल बोर्ड की पाइपलाइनों को नुकसान पहुंचाने के मामलों को आपराधिक श्रेणी में न रखकर दंडात्मक या जुर्माने के दायरे में लाने पर विचार हो रहा है। बिना लाइसेंस छोटे व्यवसाय या दुकान चलाने जैसे उल्लंघनों के लिए जेल की सजा का प्रावधान हटाया जा सकता है। सरकारी अधिकारियों के मुताबिक, अब तक सात विभाग अपनी राय दे चुके हैं और अधिकांश ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया है। उनका मानना है कि यह सुधार न केवल व्यापार और सेवाओं के क्षेत्र को राहत देगा, बल्कि कठोर दंड के दायरे में आने वाले मामूली उल्लंघनों को तर्कसंगत रूप से पुनर्परिभाषित करेगा।

फिलहाल दिल्ली सरकार ने जिन 10 विभागों के तहत आने वाले अपराधों में बदलाव प्रस्तावित किए हैं, उनकी सटीक संख्या सार्वजनिक नहीं की गई है। यह भी स्पष्ट नहीं है कि बीते वर्षों में ऐसे मामलों में कितने लोगों को जेल हुई या कितने पर जुर्माना लगाया गया। अधिकारियों का कहना है कि यह पहल केंद्र सरकार द्वारा पारित ‘जन विश्वास (प्रावधानों का संशोधन) अधिनियम, 2023’ की सफलता से प्रेरित है। वर्ष 2023 का यह कानून देश का पहला ऐसा अधिनियम था जिसने बड़े पैमाने पर छोटे-मोटे अपराधों को अपराध की श्रेणी से बाहर निकाला।

11 अगस्त 2023 को लागू हुए इस कानून के तहत 19 मंत्रालयों के अंतर्गत आने वाले 42 केंद्रीय कानूनों की 183 धाराओं में संशोधन किया गया था। दिल्ली सरकार का मानना है कि इसी तर्ज पर स्थानीय स्तर पर छोटे अपराधों के दंड प्रावधानों में बदलाव करने से न्यायिक प्रणाली पर बोझ कम होगा, व्यापारिक माहौल बेहतर होगा, और राजधानी में ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ को बढ़ावा मिलेगा।

दिल्ली का अपना जन विश्वासएक्ट

संसद द्वारा अपनाए गए इसी सिद्धांत को आगे बढ़ाते हुए, दिल्ली सरकार अब राज्य के कानूनों में भी ऐसे बदलाव लागू करना चाहती है। इस पहल का सीधा असर उन नियमों पर पड़ेगा, जिनका संबंध आम जनता के रोजमर्रा के जीवन से है और जो छोटे व्यापारियों व उद्योगों के संचालन को प्रभावित करते हैं।

अधिकारियों के अनुसार, मौजूदा व्यवस्था में मामूली उल्लंघनों पर भी ‘क्रिमिनल रिकॉर्ड’ बन जाता है। इसकी वजह से आम नागरिकों और छोटे कारोबारियों को न केवल कानूनी जटिलताओं का सामना करना पड़ता है, बल्कि भविष्य में लाइसेंसिंग, रोजगार और वित्तीय गतिविधियों में भी कठिनाई आती है। नया प्रस्ताव इन समस्याओं को दूर करते हुए छोटे उल्लंघनों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने का रास्ता साफ करेगा।

अधिकारी ने बताया कि मौजूदा व्यवस्था में छोटे उल्लंघनों पर भी आपराधिक मामला दर्ज हो जाता है और ‘क्रिमिनल रिकॉर्ड’ बन जाता है। इससे आम लोगों और छोटे व्यापारियों को भविष्य में नौकरी पाने, लाइसेंस लेने या व्यापार चलाने में गंभीर बाधाओं का सामना करना पड़ता है।

आपराधिक जुर्माना (Criminal Fine):

यह एक प्रकार की सजा है, जिसके तहत न केवल आर्थिक दंड लगाया जाता है बल्कि व्यक्ति का आपराधिक रिकॉर्ड भी बनता है। यह रिकॉर्ड आगे चलकर रोजगार, यात्रा, व्यापारिक अनुमतियों और अन्य कानूनी प्रक्रियाओं में बाधा बन सकता है।

नागरिक दंड (Civil Penalty):

यह केवल आर्थिक दंड है। इस स्थिति में केस दर्ज नहीं होता और न ही व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक रिकॉर्ड बनता है। सरकार केवल जुर्माने के रूप में रकम वसूलती है, इसलिए भविष्य पर इसका गंभीर प्रभाव नहीं पड़ता।

विधेयक में क्या बदलाव होंगे?

दिल्ली सरकार आगामी शीतकालीन सत्र (Winter Session) में ‘जन विश्वास विधेयक, 2025’ को विधानसभा में पेश कर सकती है। इस विधेयक का उद्देश्य छोटे-मोटे अपराधों के लिए जेल और आपराधिक कार्यवाही की व्यवस्था को समाप्त कर, नागरिक-अनुकूल और व्यापार-सहज कानून प्रणाली स्थापित करना है।

प्रस्तावित प्रमुख बदलाव:

सजा की जगह जुर्माना: ऐसे छोटे अपराध, जिनमें वर्तमान में जेल या आपराधिक जुर्माना होता है, उन्हें नागरिक दंड (Civil Penalty) की श्रेणी में शामिल किया जाएगा। यानी भविष्य में इनके लिए केवल आर्थिक जुर्माना देना होगा, आपराधिक रिकॉर्ड नहीं बनेगा।

सूली की सरल प्रक्रिया: प्रस्ताव के अनुसार, जुर्मानों की वसूली सरकारी बकाया (Arrears) के रूप में की जाएगी। इससे लंबे कानूनी मामले और अदालतों की प्रक्रिया से बचा जा सकेगा।

व्यापार और नागरिक-अनुकूल मॉडल: अधिकारी ने बताया कि सरकार का उद्देश्य मामूली गलतियों पर आपराधिक केस चलाने के बजाय एक ऐसी व्यवस्था बनाना है जो व्यापारियों के लिए सहयोगी और आम नागरिकों के लिए सुविधाजनक हो।

दिल्ली से पहले कई राज्य इसी दिशा में कदम उठा चुके हैं। महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा और ओडिशा जैसे राज्यों ने या तो ऐसे कानून और अध्यादेश (Ordinance) पहले ही पारित कर दिए हैं या उनके मसौदे प्रक्रिया में हैं। इससे साफ है कि छोटे अपराधों को गैर-आपराधिक श्रेणी में लाने का प्रयास अब एक व्यापक राष्ट्रीय प्रवृत्ति बन चुका है।

दिल्ली में अभी भी कई छोटे-मोटे अपराध दशकों पुराने कानूनों के तहत आते हैं, जिनमें अपराधियों को जेल भेजने तक के प्रावधान शामिल हैं। अधिकारियों का कहना है कि आज के समय में इन कठोर दंड की जरूरत नहीं है। सरकार ने निर्णय लिया है कि हर विभाग के लिए अलग-अलग संशोधन लाने के बजाय एक संबद्ध विधेयक (Consolidated Bill) तैयार किया जाए। इससे यह फायदा होगा कि कई विभागों के कानूनों में बदलाव एक ही बिल के माध्यम से किया जा सकेगा, बिना बार-बार अलग-अलग कानूनों में संशोधन करने की जरूरत के। वर्तमान में दिल्ली सरकार का विधि विभाग (Law Department) इस विधेयक का मसौदा तैयार कर रहा है। अधिकारी उम्मीद कर रहे हैं कि यह विधेयक छोटे अपराधों के मामलों में सजा और आपराधिक रिकॉर्ड की जटिलताओं को कम करने में मदद करेगा और नागरिक-अनुकूल शासन मॉडल को लागू करेगा।

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