दिल्ली में स्कूल फीस को लेकर चल रहा विवाद आखिरकार अदालत के हस्तक्षेप के बाद समाप्त हो गया। साकेत जिला की सिविल जज अजीत नारायण की अदालत ने स्पष्ट किया कि शिक्षा निदेशालय के जिस पुराने आदेश का हवाला देकर अभिभावक फीस रोक रहे थे, वह आदेश अब रद्द हो चुका है। ऐसे में उसके आधार पर फीस भुगतान से बचा नहीं जा सकता। अदालत ने निजी स्कूल के पक्ष में फैसला सुनाते हुए अभिभावक को 1.49 लाख रुपये की बकाया फीस नौ प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित चुकाने का निर्देश दिया।
मामला ब्लूबेल्स स्कूल इंटरनेशनल से जुड़ा है। स्कूल ने छात्र के पिता के खिलाफ करीब 1.49 लाख रुपये की बकाया फीस की वसूली के लिए दीवानी मुकदमा दायर किया था। स्कूल की ओर से दलील दी गई कि अभिभावक ने यह जानते हुए बच्चे को प्रवेश दिलाया कि स्कूल पूर्णतः शुल्क आधारित है और फीस जमा करना उसकी कानूनी जिम्मेदारी भी है। शुरुआती अवधि तक फीस नियमित रूप से जमा की गई, लेकिन उसके बाद अभिभावक ने 1 अगस्त 2018 के शिक्षा निदेशालय के आदेश और उससे जुड़े हाई कोर्ट मामले का हवाला देते हुए भुगतान रोक दिया।
फीस भरने के लिए टालमटोल करता रहा अभिभावक
स्कूल की पैरवी कर रहे अधिवक्ता अतुल जैन ने अदालत को बताया कि जिस शिक्षा निदेशालय के आदेश को आधार बनाकर अभिभावक ने फीस रोकी थी, उसे दिल्ली हाई कोर्ट सात फरवरी 2024 को पहले ही निरस्त कर चुका है और उस निर्णय पर किसी भी प्रकार की रोक भी नहीं है। इसके बावजूद अभिभावक ने बकाया राशि जमा नहीं की।
अधिवक्ता ने यह भी कहा कि स्कूल प्रबंधन ने बकाया फीस जमा कराने के लिए अभिभावक से कई बार पत्र, फोन कॉल और मौखिक बातचीत के माध्यम से संपर्क किया, लेकिन हर बार टालमटोल की गई। लगातार प्रयासों के बावजूद भुगतान न मिलने पर स्कूल ने 31 मई 2024 को अभिभावक को कानूनी नोटिस भेजा। नोटिस प्राप्त होने के बाद भी अभिभावक ने न तो कोई जवाब दिया और न ही बकाया राशि जमा की। अंततः स्कूल को अदालत की शरण लेनी पड़ी।
18 से घटाकर 9% की ब्याज दर
कोर्ट रिकॉर्ड के अनुसार, 18 नवंबर 2024 को अभिभावक को समन तामील करा दिए गए थे। इसके बावजूद न तो वह अदालत में उपस्थित हुए और न ही उन्होंने कोई लिखित बयान दाखिल किया। उनके इस रवैये को अदालत ने गंभीर लापरवाही माना और तीन फरवरी 2025 को उनका बचाव अधिकार समाप्त करते हुए मामले की एकतरफा सुनवाई का आदेश दिया।
स्कूल द्वारा पेश किए गए दस्तावेजों, छात्र के प्रवेश फॉर्म और फीस बही-खाते को विश्वसनीय मानते हुए अदालत ने 1,49,647 रुपये की बकाया राशि स्कूल को अदा करने का निर्देश दिया। हालांकि, स्कूल की ओर से 18 प्रतिशत ब्याज की मांग को अदालत ने अत्यधिक माना और उसे घटाकर नौ प्रतिशत वार्षिक निर्धारित किया। इसके साथ ही, अदालत ने मुकदमे की लागत भी अभिभावक को वहन करने का आदेश दिया।
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