सत्यपाल सिंह/सुप्रिया पांडे,रायपुर। छत्तीसगढ़ के किसानों और दलित-आदिवासियों से जुड़े 25 से ज्यादा संगठनों ने बुधवार 8 जनवरी को ग्रामीण भारत बंद का आह्वान किया है. इसी के तहत राजधानी रायपुर में भी भारत बंद का असर देखने को मिल रहा है. कहीं छोटे-छोटे दुकाने और ठेले बंद तो कहीं खुले भी है. मजदूर भी काम में नहीं निकले हैं. सब्जी मंडी और कृषि उत्पादन केंद्र भी बंद है. सरकारी कामकाज ठप है.

रायपुर डिवीजन इंश्योरेंस एम्पलाइज यूनियन ने भारत बंद को समर्थन दिया है. सैकड़ों कर्मचारी भारतीय जीवन बीमा निगम कार्यालय परिसर में कामकाज बंद कर धरने पर बैठे है. साथ ही डाक विभाग में भी सन्नाटा पसरा हुआ है. कर्मचारियों कामकाज ठप कर हड़ताल पर बैठे हैं. केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ एक दिवसीय धरना प्रदर्शन कर रहे हैं.

अखिल भारतीय मज़दूर किसान संघ का आह्वान को संघर्ष समन्वय समिति और भूमि अधिकार आंदोलन सहित अनेक साझे मंचों से जुड़े देश के 228 किसान संगठनों बंद को समर्थन दिया है. प्रदेश में इस बंद को सफल बनाने के लिए अपनी खेती-किसानी अपना काम-धंधा बंद रखकर सब्जी, दूध, अंडा, मछली जैसा अपना कृषि उत्पाद न बेचे, न ही कोई सामान खरीदे, कृषि उपज मंडियों को बंद रखें और जगह-जगह रास्ता रोको आंदोलन और धरना-प्रदर्शन-रैली करें और केंद्र की मोदी सरकार और राज्य की भूपेश सरकार की कृषि व किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद कर रहे है.

छत्तीसगढ़ किसान सभा के प्रांतीय अध्यक्ष संजय पराते और किसान संगठनों के साझे मोर्चे से जुड़े विज ने बताया कि ग्रामीण भारत बंद की मुख्य मांगों में मोदी सरकार द्वारा खेती और कृषि उत्पादन तथा विपणन में देशी-विदेशी कारपोरेट कंपनियों की घुसपैठ का विरोध, किसान आत्महत्याओं की जिम्मेदार नीतियों की वापसी, खाद-बीज-कीटनाशकों के क्षेत्र में मिलावट, मुनाफाखोरी और ठगी तथा उपज के लाभकारी दामों से जुडी स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट पर अमल की मांगे शामिल हैं.

इसके साथ ही छत्तीसगढ़ राज्य सरकार से किसानों को मासिक पेंशन देने, कानून बनाकर किसानों को कर्जमुक्त करने, पिछले दो वर्षों का बकाया बोनस देने और धान के काटे गए रकबे को पुनः जोड़ने, फसल बीमा में नुकसानी का आंकलन व्यक्तिगत आधार पर करने, विकास के नाम पर किसानों की जमीन छीनकर उन्हें विस्थापित करने पर रोक लगाने और अनुपयोगी पड़ी अधिग्रहित जमीन को वापस करने, वनाधिकार कानून, पेसा और 5वीं अनुसूची के प्रावधानों को लागू करने, मनरेगा में हर परिवार को 250 दिन काम और 600 रुपये रोजी देने, मंडियों में समर्थन मूल्य सुनिश्चित करने, सोसाइटियों में किसानों को लूटे जाने पर रोक लगाने, जल-जंगल-जमीन के मुद्दे हल करने और सारकेगुड़ा कांड के दोषियों पर हत्या का मुकदमा कायम करने की मांग कर रहे है. इसके अवाला किसान संगठनों की और भी कई मांगे शामिल है.