रायपुर. राज्य स्तरीय युवा महोत्सव में जशपुर के लोक कलाकार अपनी कला की प्रस्तुति देने को लेकर बेहद उत्साहित हैं। राज्य स्तरीय युवा महोत्सव के मंच से कला प्रेमियों, दर्शको को जशपुरिया ठेठ लोकगीत की तान और स्वर लहरी सुनने को मिलेगी. जशपुरिया लोकगीत वास्तव में ठेठ नागपुरी है, जिसके जरिए प्रेम-प्रसंग, विरह, ऋतु अनुसार, देवी-देवताओं की स्तुति को बड़े ही प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया जाता है. लोकगीत दल के कलाकारों की साज-सज्जा और उनके गायन की शैली भी निराली होती है.

जशपुर जिला छोटा नागपुर का हिस्सा है, जहां चारों ओर छोटी-छोटी पहाड़ियों, सुरम्य वादियां, ऊंचीं-नीची घाटिया एवं प्राकृतिक सौंदर्य बिखरा पड़ा है. यहां का लोक कला एवं संस्कृति बेहद समृद्ध है. जशपुरिया लोकगीत वास्तव में यहां के जनजीवन ऐसा रचा-बसा है जैसे प्राणवायु. लोकगीत गायक चंद्रमणी यादव और उनके साथी कलाकार राजधानी रायपुर में अपनी प्रस्तुति को लेकर तैयारी में जुटे हैं. चर्चा के दौरान लोकगायक चन्द्रमणी यादव ने बताया कि उनका दल राज्य स्तरीय युवा महोत्सव के मंच से

प्रेमी-प्रेमिका गीत
हायरे हायरे भादों के पानी।
झिंखोर मारे, तोके देखे गुंया।।
बाठम दुवारे, बाठम दुवारे।
भादो के पानी झिखोर मारे।।
देवी स्तुति गीत
वंदन करौं, माई तोर चरण,
मोर खुड़िया रानी, पावे पखारों दूधधार।।
ऋतु गीत
ए साजन, साजन, साजन हो साजन।
ए साजन सगरो आषाढ़ मासे।।

की प्रस्तुति देंगे. राज्य स्तरीय युवा महोत्सव के मंच से जशपुर जिले के 241 कलाकार विविध विधाओं में अपनी कला के प्रदर्शन के लिए राज्य स्तरीय मंच से मौका मिलने को लेकर बेहद उत्साहित हैं.

राज्य स्तरीय युवा महोत्सव में लोगों को जशपुर के कलाकारों द्वारा प्रस्तुत डंडा गीत-नृत्य देखने को मिलेगा. इसके प्रस्तुति जशपुर के बगीचा स्थित रामकृष्ण आश्रम के छात्र कलाकार देंगे. रामकृष्ण आश्रम के छात्र अपने प्रदर्शन को लेकर बेहद उत्साहित हैं. प्रशिक्षक हरिशंकर के मार्गदर्शन में छात्र जी-जान से तैयारी में जुटे हैं. जिला स्तरीय युवा महोत्सव में अपनी शानदार प्रस्तुति की बदौलत इस दल ने न सिर्फ दर्शकों से वाहवाही बटोरी थी, बल्कि प्रथम स्थान भी प्राप्त किया था. डंडा नृत्य के कलाकार चंद्रशेखर पैकरा ने बताया कि उनको मिलाकर कुल 20 कलाकार डंडा नृत्य में शामिल होंगे. प्रशिक्षक हरि शंकर ने चर्चा में बताया कि डंडानृत्य को स्थानीय लोग सैला नृत्य के नाम से भी जानते हैं. यह गीतनृत्य लोक जीवन से जुड़ा है. धान की कटाई और मिजाई के समय ग्रामीण जनजीवन का यह लोकप्रिय नृत्य है. इस अवधि में डंडा नृत्य और गीत की प्रस्तुति खेत-खलिहानों में देकर कलाकार पुरस्कार स्वरूप धान एकत्र करते हैं और जिसका उपयोग वह सामूहिक भोज मे करके अपनी खुशी मनाते हैं. सरगुजा जशपुर क्षेत्र में यह नृत्य पौष माघ महीने में किया जाता है. प्रशिक्षक हरिशंकर ने बताया कि डंडा नृत्य के साथ प्रस्तुत गीत ग्रामीण जीवन शैली पर आधारित होते हैं.

हरियर गोबरा अंगना लिपावे,
झुरवाली गोंदली रईया बिहान
गोदेला राजा रिनी बिछी खावे।
जायके तो जाबे भोंडू
जाबे जगरनाथ रे
जगरनाथे जाबे भुंडू, पयरी गड़वाबे।