सुप्रिया पाण्डेय, रायपुर। छत्तीसगढ़ के सरकारी स्कूलों में मध्यान्ह भोजन पकाने वाले रसोइये बुधवार को हड़ताल पर हैं. प्रदेश के विभिन्न जिलों से हजारों की संख्या में पहुंचे रसोइये बूढ़ातालाब स्थित धरना स्थल पर धरना दे रहे हैं. छत्तीसगढ़ मध्यान्ह भोजन रसोइया कल्याण संघ के बैनर तले प्रदर्शन कर रहे रसोइये कलेक्टर दर पर मानदेय देने, शासकीय कर्मचारी का दर्जा, सभी को भविष्य निधि योजना से जोड़ने और भोजन पकाने के लिए गैस सिलेण्डर दिये जाने की मांग कर रहे हैं.
रसोइया संघ का अपनी मांगों को लेकर कहना है कि बच्चों को स्वादिष्ट भोजन खिलाने की जिम्मेदारी हमारी है, लेकिन सिर्फ 40 रुपए रोजी मिलती है. उन्हें 6 घंटे काम कराया जाता है और 1200 रुपये ही महीना मानदेय मिलता है. महंगाई बढ़ रही है लेकिन वेतन में कोई वृद्धि नहीं हुई. खाना पकाने के लिए रसोई गैस भी नहीं दिया गया है जिसकी वजह से चूल्हे में खाना बनाना पड़ता है.
सवाल- कैसे उठाए बच्चों की पढ़ाई और परिवार का खर्चा?
विभिन्न जिलों से आए रसोइयों की लल्लूराम डॉट कॉम से बातचीत में दर्द छलक उठा. कोंडागांव से आए रसोइया मेघराज बघेल ने कहा, “हम लोग 1995 से काम करते आ रहे है कई बार हड़ताल कर चुके हैं लेकिन अब भी मानदेय के रूप में सिर्फ 1200 ही मिल रहा है. इस 1200 से हम ना ही परिवार का पालन पोषण कर सकते हैं ना ही बच्चों की पढ़ाई का खर्चा उठा सकते हैं. हमारे साथ शासन की तरफ से सौतेला व्यवहार किया जा रहा है. जितने भी पदाधिकारी हैं उनमें से किसी का भी रोजी 40 रुपए नहीं है लेकिन हमें 40 रुपए दे रहे हैं. जिससे हमारी स्थिति और कमजोर होती जा रही है. हम चाहते हैं कि हमें कोर्ट के दिशानिर्देशनुसार रोजी मिलनी चाहि,ए यदि हमें रोजी नहीं मिली तो हम और बड़े रूप में आंदोलन करेंगे.
सवाल- क्या खाएंगे, क्या बच्चों को खिलाएंगे?
इंदिरा रवानी कोंडागांव रसोइया ने कहा- हमें 40 रुपए रोजी दी जाती है और 8 घंटे काम करते हैं. कोर्ट के आदेशानुसार 255 रुपए रोजी तय किया गया है. हमें अंशकालिन से पूर्णकालिन माना जाए और रोजी बढ़ाया जाए. आज के युग मे 40 रुपए रोजी कमाना बहुत शर्म की बात है. 1200 रुपए में हम क्या खाएंगे और अपने बच्चों को क्या खिलाएंगे? ये बहुत सोचने वाली बात है.
चूल्हे के धुएं से आंखों में दर्द
रायपुर की रसोइया मोनिका पदमवार ने कहा कि हमारी स्थिति इतनी दयनीय है कि 1200 में कोई भी काम करना नहीं चाहता लेकिन हमारी मजबूरी है बच्चों के भविष्य के लिये हम इतने रुपयों में कुछ नहीं कर सकते. ना गैस सिलेंडर मिला है चूल्हे में आग जलाते हैं जिससे आंख में काफी दर्द होता है. इस बात से कई बार हमने शासन को अवगत कराया लेकिन उन्होंने हमारी एक न सुनी.
आपको बता दे बच्चों की स्कूलों में उपस्थिति बढ़ाने के लिए सरकार ने मध्यान्ह भोजन की शुरुआत की थी. इसके साथ ही सरकारी स्कूलों में पहुंचने वाले अभावग्रस्त कुपोषित बच्चों को सुपोषित करने का भी एक बड़ा लक्ष्य था.