रायपुर. आज महिला दिवस (Womens Day) है, पूरे देश में महिलाओं पर कई खबरें बन रही है और उनके स्ट्रगल सामने आ रहे है. इसी बीच आज हम आपको ऐसी ही एक सीए की स्टोरी बताने जा रहे है, जिनकी मां ने कड़ी मेहनत कर के स्ट्रगल किया और आज बेटी सीए बनकर परिवार का सम्मान बढ़ा रही है.
हम बात कर रहे है सीए चारूल परमार (CA Charul Parmar) की. चारूल पिछले 2 वर्षों से सीए (CA) है. लेकिन उनके यहां तक की कहानी काफी सुनकर आपकी आंखें नम हो जाएंगी. 10 वीं के बाद चारूल को Maths लेकर पढ़ाई करने का मन था. लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति को देखते हुए चारूल ने कौमर्स (Commerce) लिया. लेकिन ये ठाना की कौमर्स में सबसे उच्च जो भी पढ़ाई होगी उसे वो अचिव कर अपने परिवार (Family) का नाम रौशन करेंगी. फिर क्यां था, 12 पहुंचने के दौरान ही उन्होंने इसकी पढ़ाई शुरू की और कोचिंग क्लास भी ज्वाइन किया.
परमार परिवार पेशे का गुजराती नमकीन बनाने का बिजनेस है. लेकिन 10-15 वर्षों पहले तक ये बिजनेस नहीं था महज एक घर से पैकेट बनकर नमकीन बिकने वाला ट्रेडिंग था. वे 5-5 किलो मिक्चर लेते और उन्हें छोटे-छोटे पैकेट्स में पैक कर के बेचा करते थे. चूंकि चारूल की मम्मी को कुकिंग का शौक था इसलिए श्रीमती गीता परमार (चारूल की मम्मी) ने मिक्चर को बनाना शुरू किया.
अपने स्ट्रगल की कहानी बताते हुए चारूल की आंखे तब नम हो गई जब उन्होंने कहा कि 15 साल पहले का एक स्ट्रगल का वो दौर था जब घर में मम्मी को दुकान के लिए सामान तैयार करना होता था, तब वे सुबह एक ही बार खाना बनाती थी और पूरा परिवार तीन टाइम उसी खाने को खाता था. चारूल कहती है, मुझे अपने स्ट्रगल के समय को याद करने में भी कोई गुरेज नहीं है, क्योंकि एक वहीं समय था, जिसने मेरा और मेरे पूरे परिवार का जीवन बदलकर रख दिया और उस समय जब मैने अपने पूरे शौक को भूलकर पढ़ाई पूरी की और आज सीए बनने के बाद अपने और पूरे परिवार के शौक पूरे करने में उनका सहयोग कर रही है. चारूल ये भी कहती है कि मैं चाहकर भी कभी माता-पिता और भाई-भाभी का सपोर्ट उन्हें नहीं लौटा सकती जो उन्होंने स्ट्रगल कर मेरे लिए किया है.
मां ने जो कह दिया वो मेरे लिए पत्थर की लकीर
चारूल से जब ये पूछा गया कि वे आज के युवाओं को क्या संदेश देना चाहती है, तो वे कहती है कि अक्सर आज के युवा घर में मम्मी-पापा की कही हुई बातों का विरोध करते है, लेकिन मेरे लिए जो मम्मी ने जो कह दिया वो पत्थर की लकीर हैं, क्योंकि कोई भी माता-पिता (Mother-father) अपने बच्चों के लिए बुरा नहीं चाहते. चारूल कहती है कि आज के युवाओं को अपने माता-पिता को गलत नहीं कहना चाहिए, बल्कि उन्हें ये साबित करना चाहिए कि वे सही कैसे है.