रायपुर. प्रकृति से ताकतवर कोई नहीं है। प्रकृति ने एक वायरस में बदलाव किया और खुद को सर्व शक्तिमान समझने वाले इंसान को घुटनों के बल लाकर उसकी हैसियत समझा दी। पृथ्वी पर ज्ञात सभी जीवों में सबसे सूक्ष्म वायरस एक म्युटेशन से सबसे ख़ौफ़ज़दा जीव बन गया, सबसे ताकतवर जीव मनुष्य सबसे ज़्यादा दहशत में आकर घरों में कैद हो गया और पीढ़ियों से जंगल मे छिपकर रहने वाले जानवर उन्मुक्त होकर घूमने लगे। हवा-पानी शुद्ध और आसमान साफ हुआ.

इन तस्वीरों ने विकास के नाम पर पागलों की तरह दौड़े जा रहे इंसानों को रुककर सोचने और अपने अहंकारी -लालची स्वभाव को बदलने का एक मौका दिया है। जब शहरों में जंगली जानवरों को लोगों ने देखा तो उनके मन मे ख्याल आया कि इनका भी हक़ है। ये इन जगहों पर तब से काबिज़ थे जब इंसान अस्तित्व में भी नहीं आये थे। लेकिन हमने पहले कॉलोनी और बस्तियां बनाकर इन्हें जंगलों में भेजा उसके बाद वहां भी हमारी लालची नज़र पंहुच गई। ये तस्वीरें धरती के सबसे बड़े जानवरो इंसान की अन्य जानवरों के प्रति संवेदना को बढ़ाएगी, ये उम्मीद की जानी चाहिए। अब इंसान लॉक डाउन में कैद होकर उसे जब प्रकृति की खूबसूरती अपनी छत, वीडियो और फ़ोटो से निहारने का वक़्त मिला है तो वो सोचेगा कि यहां से वो आगे कैसा सफर शुरू करना चाहता है.

ये सनद रहे कि कोरोना ब्राज़ील और ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में लगी आग की त्रासदियों के ठीक बाद आई है। आगजनी की इन घटनाओ के ज़रिए वहां के राष्ट्राध्यक्षों ने ये संदेश दिया कि उनके लिए खनन पर्यावरण से ज़्यादा महत्वपूर्ण है। ये संदेश अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भी राष्ट्रपति बनने के बाद स्पष्ट रूप से दिया और पेरिस समझौते से ठीक पहले दिया। ये इत्तेफाक है लेकिन गज़ब का इत्तेफाक है। इन तीनो घटनाओ ने दुनिया को उस जगह पंहुचा दिया था जहां पर्यावरण को पीछे छोड़ते हुए इंसान खनन और दूसरे औद्योगिक कामों को तरजीह देने की ओर आगे बढ़ने की होड़ शुरू करता। अब प्रकृति के आगे नतमस्तक होने के बाद अब ये होड़ थमेगी, इसकी उम्मीद करनी चाहिए.

इन दोनों घटनाओं पर जैसा लोगों का रुख दिखा है, उससे क्या ये उम्मीद की जानी चाहिए कि होमो सेपियंस के अंदर पर्यावरणीय चेतना का विकास और विस्तार हुआ होगा। अगर ऐसा हुआ तो समाज मे ऊर्जा के नवीन विकल्पों को अपनाने की प्रवित्ति
बढ़ेगी.
अब तक जीवन की आपाधापी में हमे ये सोचने का वक़्त ही नहीं मिल पाता था कि हम कहाँ जा रहे हैं। बस चले जा रहे थे। भेड़ियाघसान नचा हुआ था। भागने की रफ्तार कम हुई है और आने वाले वक्त में इसके तेज़ी होने के आसार भी नहीं है। कई उद्योग इसलिये बन्द हो जाएंगे क्योंकि उन्हें कामगार नहीं मिलेगा। कामगार की अब दूर जाने की प्रवित्ति में बदलाव आएगा और वो स्थानीय स्तर पर रोज़गार ढूंढेगा। ये अनजाने में विकास का विकेंद्रीकरण करेगा। दिल्ली के पत्रकार अश्वनी कुमार सिंह का मानना है कि कामगारों की इस प्रवित्ति की वजह से नए उद्योगों को दूरदराज के इलाके में जाना होगा। ये परिवर्तन वैश्विक स्तर पर होंगे। इसका एक असर ये भी होगा कि ट्रांसपोर्ट का खर्च कम करने के लिए उद्योग इलेक्ट्रिक वाहनों की तरफ आकृष्ट होंगे। पोस्ट कोरोन पीरियड टिस्ला जैसी कंपनियों के दरवाजे खोलेगा जिन्होंने एक बार चार्ज करने के बाद 200 से 400 मील चलने वाली गाड़ियों का अविष्कार कर लिया है। इस अवसर का लाभ नवीनीकृत ऊर्जा में काम करने वालो ने उठाया तो एनर्जी ट्रांज़िशन तेज़ी से होगा। इसको मानने के दो कारण हैं.

कोरोना महामारी के वक़्त में दुनिया ने दिखा कि फॉसिल फ्यूल के बिना रहने का विकल्प उनके लिए ज़्यादा खूबसूरत है। इसके अलावा दुनिया भर में फॉसिल फ्यूल के कारोबार में लगी कंपनियों के खिलाफ आवाजे अब और तेज़ होंगी और इसके खिलाफ एक जनमत भी तैयार होगा। सबसे बुरा हाल अमेरिका का कोरोना ने कर रखा है। जहां फॉसिल फ्यूल लॉबी सबसे ताकतवर है और लगातार उनके खिलाफ आवाज़ उठ रही हैं। एक और वजह फॉसिल की अपेक्षा नवीनीकृत ऊर्जा का विकल्प सस्ता है। लेकिन फॉसिल फ्यूल में लगी लॉबी इसे सामने आने में अड़चन डालती ऑनयी हैं।चूंकि अब ज़िन्दगी में भागदौड़ नहीं है इसलिए लोगों के सामने विश्लेषण करने का भरपूर समय है कि वो अपनी हैसियत प्रकृति के हैसियत आकेँ। अपनी गलतियों का विश्लेषण करें और बेहतर कल के निर्माण की दिशा में आगे बढ़े.

सम्पादकीय : राजनितिक संपादक  – रूपेश गुप्ता