मुंगेली। दशहरे के दिन मेला लगता है और रावण का दहन किया जाता है. लेकिन मुंगेली का एक गांव ऐसा भी है जहां दशहरे के दिन राजा आते हैं पर रावण नहीं मारा जाता. मुंगेली जिले के कन्तेली गाँव में ये परंपरा 16 वी सदी से चली आ रही है. इस परंपरा के मुताबिक राजा की सवारी निकलेगी पर रावण दहन नहीं होगा. यहां राजा के दर्शन के लिए 44 गाँव से ग्रामीण आते हैं.
जिस प्रकार केरल में मान्यता है की दशहरे के दिन राजा बलि अपनी प्रजा का हाल जानने के लिए पाताललोक से बाहर आते है और प्रजा उन्हें सोनपत्ति देकर उनका आशीर्वाद लेती है. कुछ ऐसे ही परंपरा मुंगेली जिले के कन्तेली गाँव में दशकों से चली आ रही है. यह छत्तीसगढ़ का पहला ऐसा गाँव है जहा दशहरा का मेला तो लगता है लेकिन रावण दहन नहीं होता. ये परंपरा 16 वी सदी से चली आ रही है.
मेले में यहाँ के राजा यशवंत सिंह के महल से सवारी निकलती है जिसमे लोग शामिल होकर नाचते गाते कुल देवी के मंदिर पहुचते है. यहां राजा यशवंत सिंह के सुपुत्र राजा गुनेंद्र सिंह के द्वारा कुल देवी माँ महालक्ष्मी,महासरस्वती और महाकाली की पूजा करके पुरे क्षेत्र के खुशहाली की कामना की जाती है. इसके बाद राजमहल में एक सभा का आयोजन किया जाता है. जहा ग्रामीणों द्वारा राजा को सोनपत्ति भेट कर उनका आशीर्वाद लिया जाता है.
इस परंपरा के बारे में राज परिवार के द्वारा बताया गया की हमारे पूर्वजो ने यह परम्परा शुरू की थी. इस दिन रावण दहन नहीं करने के पीछे उनकी ऐसी मान्यता है कि चूंकि रावण तीनों लोक में राज करता था और यहां के राजा भी राजा हैं. इसलिए एक राजा के द्वारा दूसरे राजा का वध न करके उनका सम्मान करने के मकसद से गाँव में रावण का वध नहीं किया जाता.
वहीं ग्रामीणों को भी इस आयोजन का बेसब्री से इन्तेजार रहता है. .यहां की कुल देवी पर इनकी गहरी आस्था है. ग्रामीण आज भी राजपरिवार का उतना ही सम्मान करते हैं. जितना इनके पूर्वज किया करते थें इनके इन्ही श्रद्धा के चलते 16 वीं सदी का यह परम्परा आज भी इस गांव मे देखी जा सकती है.