देवेंन्द्र वर्मा, पूर्व प्रमुख सचिव, छत्तीसगढ़ विधानसभा
संसदीय लोकतंत्र में अध्यक्ष के पद का महत्वपूर्ण स्थान है अध्यक्ष सदन की प्रतिष्ठा गरिमा एवं शक्ति का प्रतीक है और वह समग्र रूप से सदन का प्रतिनिधित्व करता है. देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भारत में अध्यक्ष पद का सही संदर्भ देते हुए कहा था – अध्यक्ष सभा का प्रतिनिधि है, वह सभा की गरिमा,एवं सभा की स्वतंत्रता का प्रतिनिधित्व करता है,और क्योंकि सभा राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करती है, इसलिए एक प्रकार से अध्यक्ष राष्ट्र की स्वतंत्रता और स्वाधीनता का प्रतीक बन जाता है. यह उचित ही है कि इस पद का सम्मान एवं स्वतंत्रता कायम रहे और इस पर सदैव असाधारण योग्यता एवं निष्पक्षता वाला व्यक्ति आसीन हो.”
उक्त वाक्यांश राज्यों की विधान सभाओं के अध्यक्ष के संदर्भ में भी लागू होता है. हाल ही में मध्य प्रदेश विधानसभा के प्रोटेम स्पीकर जगदीश देवड़ा सुवासरा विधानसभा के उप चुनाव के लिए भाजपा द्वारा प्रभारी नियुक्त करने के कारण समाचार पत्रों में सुर्खियों में है.
पूर्व विधायक पारस सकलेचा ने उन्हें प्रभारी नियुक्त करने के आधार पर राज्यपाल से अपनी शिकायत में उन्हें पद से हटाने और उनकी सदस्यता समाप्त करने का आग्रह किया है. उन्होंने यह भी उल्लेख किया है कि प्रोटेम स्पीकर की हैसियत से देवड़ा विधानसभा अध्यक्ष को मिलने वाली सभी सुविधाएं, भत्ते, स्वेच्छा अनुदान आदि भी ले रहे हैं, इस प्रकार उन्हें सभी संवैधानिक अधिकार प्राप्त हैं.
विधायक डॉक्टर गोविंद सिंह ने भी जगदीश देवड़ा को चुनाव प्रभारी नियुक्त करने को पद की गरिमा के खिलाफ बताया है. भाजपा अध्यक्ष बीडी शर्मा ने प्रोटेम स्पीकर द्वारा कार्य नहीं संभालने का वक्तव्य देते हुए कहा है कि विचार किया जा रहा है, और जगदीश देवड़ा ने तो उन्हें जानकारी नहीं है कहकर संपूर्ण मामले में पल्ला झाड़ लिया है.
महत्वपूर्ण विचारणीय प्रश्न यह है कि क्या प्रोटेम स्पीकर और स्पीकर एक समान पद है ? क्या प्रोटेम स्पीकर को उनके राजनीतिक दल द्वारा दलीय राजनीतिक ज़िम्मेदारी सौंपी जा सकती है ? क्या प्रोटेम स्पीकर,के नाते जगदीश देवड़ा स्पीकर के वेतन भत्ते अन्य सुविधाएँ तथा स्वेच्छा अनुदान आदि की पात्रता रखते हैं?
संविधान के अनुच्छेद 178 से 181 में अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष के पद रिक्त होना, पद त्याग और पद से हटाने, उनके कार्यकाल आदि प्रावधानों का उल्लेख है, संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार अध्यक्ष उसके निर्वाचन के समय से लेकर उस विधानसभा, जिसके लिए वह अध्यक्ष निर्वाचित हुआ है, के विघटन के पश्चात होने वाले विधानसभा के प्रथम अधिवेशन के ठीक पहले तक अपने पद को रिक्त नहीं करेगा.
उपरोक्त परिपेक्ष में सभा के अध्यक्ष नर्मदा प्रसाद प्रजापति के लिए यह कतई आवश्यक नहीं था कि वह अध्यक्ष पद से अपना इस्तीफ़ा देते, तथापि अध्यक्ष को स्वेच्छा से त्यागपत्र देने से रोका भी नहीं जा सकता. अपरिहार्य स्थिति में जब अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष का पद रिक्त हो तब राज्यपाल सभा के किसी सदस्य को तब तक के लिए जब तक की अध्यक्ष के पद का निर्वाचन नहीं हो जाता सामयिक अध्यक्ष नियुक्त करते हैं.
इस प्रकार नियुक्त किए गए व्यक्ति को प्रोटेम स्पीकर कहा जाता है और इस नाम तथा संवैधानिक प्रावधानों से यह स्पष्ट है कि प्रोटेम स्पीकर, निर्वाचित स्पीकर से भिन्न नितांत अस्थायी, एक निश्चित कालावधी के लिए व्यवस्था है.
चुनाव के पश्चात विधानसभा के गठन होने पर संविधान के अनुच्छेद 188 के अंतर्गत यह प्रावधान किया गया है कि, विधानसभा का प्रत्येक सदस्य सभा में अपना आसन ग्रहण करने के पूर्व राज्यपाल या उसके द्वारा निमित्त व्यक्ति के समक्ष संविधान की तीसरी अनुसूची में इस हेतु दिए गए प्रारूप के अनुसार शपथ लेगा अथवा प्रति ज्ञान करेगा. क्योंकि संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार चुनाव पश्चात गठित विधानसभा के प्रथम सत्र के प्रथम दिन की बैठक के ठीक पहले तक अध्यक्ष पद पर बना रहता है.
अतः बैठक प्रारंभ होने के पूर्व उक्त अनुच्छेद के प्रयोजन के लिए राज्यपाल परंपरा अनुसार सदन के लिए निर्वाचित वरिष्ठतम विधायकों में से मुख्यमंत्री की अनुशंसा पर किसी एक सदस्य को संविधान की अनुसूची 3 में प्रारूप अनुसार सदस्य की शपथ दिलाकर प्रोटेम स्पीकर नियुक्त करते हुए उसे शेष समस्त सदस्यों को शपथ दिलाने के लिए अधिकृत करता है, जिसके समक्ष सभी सदस्य शपथ ग्रहण करते हैं, और क्योंकि उसकी नियुक्ति केवल अल्प समय और सभा में एक निश्चित कार्य हेतु की जाती है, उसे सामयिक अध्यक्ष संबोधित किया गया है.
यह पद अध्यक्ष से भिन्न है अध्यक्ष तो कदापि नहीं, हाल के वर्षों में उच्चतम न्यायालय ने अपने अनेक न्याय निर्णयों में प्रोटेम स्पीकर को फ्लोर टेस्ट के लिए मतदान की कार्यवाही तथा इस हेतु समस्त कार्यवाही पूर्ण होने तक, सिर्फ और सिर्फ न्याय निर्णय अनुसार कार्य करने की ज़िम्मेदारी सौंपी है उससे अधिक नहीं, अर्थात प्रोटेम स्पीकर और किसी भी प्रकार का कार्य संपादित करने के लिए पात्रता नहीं रखता है.
चुनाव के पश्चात किसी भी दल को बहुमत प्राप्त नहीं होने की स्थिति में जब फ्लोर टेस्ट से बहुमत का निर्धारण किया जाता है, तब विधानसभा सचिवालय द्वारा राज्यपाल को वरिष्ठतम सदस्यों के नाम भेजें जाते हैं और राज्यपाल उनमें से किसी एक को प्रोटेम स्पीकर नियुक्त करता है, ऐसी स्थिति में प्रोटेम स्पीकर मतदान की संपूर्ण कार्यवाही पूर्ण करवाता है. सामयिक अध्यक्ष की नियुक्ति जब तक अध्यक्ष का निर्वाचन नहीं हो जाता, तब तक की सभा की कार्यवाही संपादित करवाने के लिए एक अस्थाई स्टॉप गैप संवैधानिक व्यवस्था है.
संविधान के अनुच्छेद 187 के अंतर्गत विधान सभा सचिवालय के कर्मचारी वृंद में भर्ती और सेवा शर्तों के विनियमन के लिए बनाए गए अधिनियम एवं नियमों में भी केवल अध्यक्ष का ही प्रशासकीय नियंत्रण रहने का प्रावधान है, सामयिक अध्यक्ष का नहीं, उपरोक्त से यह स्पष्ट है कि सामयिक अध्यक्ष का कार्य केवल नए सदस्यों को शपथ दिलाना और स्पीकर का चुनाव कराना होता है.
हाल के वर्षों में जब चुनाव में किसी भी राजनीतिक दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं हुआ हो तब उच्चतम न्यायालय ने बहुमत सिद्ध करने हेतु अपने न्याय निर्णयों में फ्लोर टेस्ट कराने और मतदान संबंधी समस्त कार्य भी प्रोटेम स्पीकर द्वारा किए जाने के निर्देश दिए हैं, और ऐसी स्थिति में सामयिक अध्यक्ष का रोल काफी महत्वपूर्ण हो जाता है, लेकिन इसका आशय यह कदापि नहीं है कि प्रोटेम स्पीकर और स्पीकर एक समान और समान कर्तव्य वेतन भत्ते सुविधाओं वाले पद हैं. अर्थात प्रोटेम स्पीकर को ना तो वेतन भत्ते की पात्रता है और ना ही स्वेच्छा अनुदान स्वीकृत करने की अधिकारिता.
उपरोक्त विवेचना से निष्कर्ष यह है कि प्रोटेम स्पीकर को उनके दल द्वारा चुनाव प्रभारी नियुक्त करने में संवैधानिक अथवा अन्यथा कोई रोक नहीं है, किंतु साथ ही वह अध्यक्ष के रूप में किसी भी प्रकार के लाभ प्राप्त करने की अधिकारिता भी नहीं रखते.