रमेश सिन्हा,महासमुन्द। प्राचीन भारतीय पुराणों के अनुसार यमराज का पूजा करने से अकाल मृत्यु का भय सदा के लिए समाप्त हो जाता है. यमराज को धर्मराज के नाम से भी जाना जाता है जो मनुष्यो के कर्मो के हिसाब से अलग—अलग दण्ड का विधान रचते हैं. जिन्हे मृत्यु के बाद के जीवन निर्धारण की जिम्मेदारी दी गई है. आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि देश में एकमात्र यमराज का मंदिर हिमाचल प्रदेश के चांबा गांव में स्थित है. लेकिन अब छत्तीसगढ़ मे भी यमराज के एक मंदिर का निर्माण कराया गया है.

यमराज का नाम सुनते ही इंसान कांप उठते है. लोग सपने में भी यमराज को देखना पसंद नहीं करते है. लेकिन महासमुन्द में एक ऐसा मंदिर है, जहां लोग यमराज की पूजा कर उन्हें प्रसन्न करने का प्रयास करते है. हम बात कर रहे है महासमुन्द जिले के ग्राम तेन्दूकोना से बागबाहरा पहुंच मुख्य मार्ग में पहाड़ी पर मां खल्लारी परिसर में स्थि​त यम-यमी मंदिर की.जिसका निर्माण एक श्रद्धालू द्वारा कराया गया हैं. यह मंदिर इस क्षेत्र और प्रदेश में ही नही बल्कि प्रदेश के बाहर के भी भक्तों को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है.

इस यम-यमी के भव्य मंदिर का निर्माण ग्राम तेन्दूकोना के प्रतिष्ठित व्यवसायी नंदकुमार सोनी के द्वारा कराया गया है. बताया जाता है कि नंदकुमार लगभग 5 साल पहले इसी मंदिर स्थल के पास सड़क हादसे में गंभीर रूप से घायल हो गये थे. लेकिन गंभीर रूप से घायल होते हुए भी वे नही डरे और आज मृत्यु को मात देने के बाद वे पूरी तरह से स्वस्थ्य है. इस घटना के बाद ही नंदकुमार ने यमराज का मंदिर बनाने का सोचा और अब उनका सोचा हुआ काम पूरा हो गया है. उन्होंने यमराज के मंदिर का निर्माण पूर्ण करा दिवाली के बाद भाई दूज के दिन मंदिर में मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा की .

पुराणों के अनुसार इस दिन यमराज को दीपदान किया जाता है. चार बातियों वाले बत्तियां एक सूत्र में बंधे दीपक सरसों के तेल से जलाने का विधान है तथा उनका मुख दक्षिण दिशा की तरफ होना चाहिए. इस तरह के दीपक का जलाना सुखदायक व पुण्य फलदायक होता है।