रायपुर. इसे अधिकारियों का नकारापन कहें, उनकी लापरवाही कहें,पंजाब और हरियाणा जैसे राज्य धान के रखरखाव और सुरक्षा पर जहां 7 से 7.50 रुपये केंद्र से ले लेते हैं, वहीं छत्तीसगढ़ केवल 4.80 रुपये ही ले पाता है. दरअसल, धान के रखरखाव और सुरक्षा पर केंद्र सरकार वास्तविक व्यय की राशि का भुगतान करती है. लेकिन नियमों को न सुधारने से राज्य को इस मद में सालाना करोड़ों का नुकसान उठाना पड़ता है.
पिछले साल के मुताबिक अगले साल के लिए इसका दर निर्धारित करती है. छत्तीसगढ़ सरकार के पिछले खर्च के हिसाब से इस साल ये दर 4 रुपये 80 पैसे निर्धारित है. लेकिन इसके लिए अंतिम राशि उतनी ही मिलेगी, जितना खर्च राज्य सरकार प्रमाणित कर पाएगी. छत्तीसगढ़ सरकार की नीतियों और अधिकारियों के चलते राज्य को करीब साढ़े चौंतीस करोड़ का नुकसान उठाना पड़ता है.
छत्तीसगढ़ सरकार ने इसके लिए सोसाइटियों को 3 रुपये देने का प्रावधान किया हुआ है. जबकि मार्कफेड जितना धान उठाती है, उसका 1 रुपये 80 पैसे ले पाती है. सोसाइटियों का रखरखाव और सुरक्षा पर करीब 7 रुपये खर्च आता है. जबकि मार्कफेड का करीब 2 रुपये. औसतन मार्कफेड करीब आधा धान का उठाव करती है.अब राज्य सरकार क्लेम 4.80 की दर से कर पाती हैं. यानि सोसाइटियों को 4 रुपये प्रति क्विंटल और मार्कफेड को प्रति क्विंटल का नुकसान होता है.
पिछले साल राज्य में सोसाइटियों के माध्यम से कुल धान की खरीदी 8 करोड़ 39 लाख 45 हज़ार 756 क्विंटल हुई थी. इस लिहाज़ से सोसाइटियों को करीब 33.57 करोड़ का नुकसान धान के रखरखाव और सुरक्षा में नुकसान हुआ. जबकि सालाना औसत के लिहाज़ से गणना करें तो इसमें से मार्कफेड के हिस्से में 4 करोड़ 19 लाख 72 हजार 878 क्विंटल धान आता है. चूंकि मार्कफेड को प्रति क्विंटल 20 पैसे का नुकसान हो रहा है. लिहाज़ा उसे करीब 83.94 लाख का नुकसान हुआ. जबकि केंद्र सरकार के प्रावधानों के मुताबिक इसका सारा खर्च केंद्र से मिलने का प्रावधान है. बस, राज्य सरकार के कानूनों के मुताबिक ऑडिट कराना होता है.
मार्कफेड के क्षतिपूर्ति की भरपाई राज्य सरकार कर देती है. लेकिन सोसाइटियों की हानि की भरपाई उऩ्हें अपने कमीशन से करना होता है. अगर, सरकार सोसाइटियों को धान के रखरखाव और सुरक्षा पर प्रावधान बढ़ा दे तो सालाना करीब साढ़े 34 करोड़ के नुकसान से बचा जा सकता है.