रायपुर। कृषि वैज्ञानिक डॉ संकेत ठाकुर का कहना है कि राज्य सरकार ने जो विधेयक कल विधानसभा में पारित किया है, वो केंद्र सरकार द्वारा पारित किए गए 3 नए किसान कानूनों का ना केवल अनुमोदन करता है, बल्कि उससे आगे बढ़कर निजी/कार्पोरेट्स मंडियों को शासकीय मान्यता देने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाता है.

छत्तीसगढ़ के किसान एक बार फिर छले गये हैं. पहले केंद्र सरकार ने किसानों को उनकी कथित आज़ादी का नारा देकर कार्पोरेट्स हितैषी कानून लाकर छला और अब राज्य सरकार ने किसान का खेवनहार बनने का प्रपंच रचकर नया कार्पोरेट्स हितैषी 7 सूत्रीय मंडी संशोधन विधेयक लाकर छला है.

छत्तीसगढ़ किसान मजदूर महासंघ के संयोजक मंडल सदस्य डॉ संकेत ठाकुर ने राज्य सरकार द्वारा पारित विधेयक को किसान विरोधी और कारपोरेट हितैषी बताते हुए राज्यपाल अनुसुइया उइके से निवेदन किया है कि इस विधेयक को कानून बनाने से तब तक रोका जाए जब तक कि न्यूनतम समर्थन मूल्य में मंडी या डीम्ड मंडी में किसानों की उपज खरीदी को अनिवार्य करने का प्रावधान ना हो जाये. इसी तरह प्रति वर्ष धान की शासकीय खरीदी की तारीख 1 नवम्बर तय करने का संशोधन विधेयक में जोड़ा जाये.

यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि विधानसभा में सरकार की ओर से मुख्यमंत्री, कृषि मंत्री भाषण में कुछ और बोलते हैं पर विधेयक कुछ और पारित किया जाता है. विधेयक राज्य सरकार को निजी मंडियों से टैक्स वसूलने, जांच करने, रिकार्ड देखने, लेखा-जोखा की जांच करने के बहाने सरकारी छापा मारने का अधिकार देता है.

कांट्रैक्ट फार्मिंग को औपचारिक स्वरूप की खिलाफत करने वाले मुख्यमंत्री कार्पोरेट्स को निजी मंडी लगाने के लिये रेड कार्पेट बिछाने की तैयारी इस विधेयक के माध्यम से कर रहे हैं.