पुरषोत्तम पात्र, गरियाबन्द। जिले के मक्का उत्पादक किसान फसल का उचित दाम नहीं मिलने से परेशान हैं। इस साल 19 हजार हेक्टेयर में लगी मक्का फसल 60 फीसदी कट कर तैयार हो गई है। किसानों के अनुसार बाजार में भाव इतना भी नहीं कि लागत तक निकल सके। इसलिए किसान अब मक्का की फसल को रखने की जतन में दिन रात एक कर रहे। जिले भर के 5 विकासखण्ड में सर्वाधिक मक्के का उत्पादन मैनपुर व देवभोग क्षेत्र में होता है। इस बार 10 हजार से भी ज्यादा किसानों ने मैनपुर में 10,500 हेक्टेयर व देवभोग में 8400 हेक्टेयर में मक्के का उत्पादन किया है। हमेशा की तरह अक्टूबर खत्म होते तक 60 फीसदी मक्के की फसल कट कर तैयार हो चुकी है। लेकिन इस बार पिछले साल 1800 रूपये प्रति क्विंटल की बजाए इस दफा महज 1200 रू प्रति क्विंटल का भाव खुला है। इसलिए किसान इतनी कम कीमत पर उपज बेचने के बजाए अच्छी कीमत का इंतजार कर रहे हैं। पिछले तीन दिनों से बिगड़े मौसम ने किसानों की चिंता दुगुनी कर दी है। घरों से दूर दराज जिन छोटे किसानों के खलिहान है वे मचान तैयार कर मक्के को रख रखाव में जुट गए हैं। उन्हें डर है कि पानी की छींटे फसल पर न पड़ जाए, अगर ऐसा हुआ तो गुणवत्ता प्रभावित होगी जिससे कीमत अच्छी नहीं मिलेगी।

लागत बढ़ी

मक्के के बड़े किसान गोलामाल के राम रतन मांझी, डूमरपीठा के लिंगेश्वर बीसी, माहुलकोट के डमरूधर ने बताया कि खाद, दवा व लेबर दर बढ़ने से प्रति हेक्टेयर लागत ढाई से 3 हजार बढ़ गई है। पिछ्ले साल नवम्बर माह में 1800 रुपये से क़ीमत खुली थी लेकिन इस बार का भाव 1200 रूपये है। 40 से 45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर औसत उत्पादन है, ऐसे में जो कीमत है उससे तो लागत भी नहीं निकलेगी। ज्यादा उत्पादन करने वाले किसान शुरुवाती दौर में ही बेच देते थे ताकि रख रखाव की समस्या न आये।

कोरोना काल में मांग घटी

भारत मे उत्पादित मक्के का 50 फीसदी, पोल्ट्री सेक्टर में खपत होता है। कोरोना के चलते पोल्ट्री उद्योग प्रभावित है इसलिए मांग नही आई। कॉर्न व अन्य खाद्य उद्योग में भी इसकी मांग 40 फीसदी घट गई है। यही वजह है कि बाजार में भाव न्यूनतम दर पर खुला है।समर्थन मूल्य की कीमत 1740 रूपये है पर अब तक खरीदी के कोई निर्देश जारी नही हुए हैं।

एक्सपोर्ट भी नहीं हुआ चालू

मैनपुर देवभोग का मक्का उत्पाद गुणवत्ता युक्त होने के कारण विशाखापटनम बन्दरगाह के जरिये म्यामार, बंगलादेश, मलेशिया, नेपाल तक जाता है। मंडी रिकार्ड के मुताबिक पिछले साल 3 लाख क्विंटल से ज्यादा का कारोबार हुआ है। 2400 रूपये उच्चतम दर खुलने के कारण किसानों को 2200 रूपये तक मिला। कोरोना के चलते एक्सपोर्ट बन्द रखा गया है। कीमत नहीं खुलने की एक वजह इसे भी बताया जा रहा।

यूक्रेन से आयात हुआ था मक्का

पिछले साल देश के उद्योग सेक्टर में मक्के की भारी खपत थी, जिसकी वजह से इसकी कीमतों में उछाल था। बढ़े कीमत पर लगाम लगाने भारत सरकार ने यूक्रेन से मक्के का भारी मात्रा में आयात किया था। लॉकडाउन की वजह से उस खेप का इस्तेमाल नहीं हुआ था, जिसका अब उपयोग हो रहा है। नई मांग नहीं होने के कारण भी कीमत नहीं खुल रही है