सत्यपाल सिंह राजपूत, रायपुर। मानसिक रोगियों के व्यवस्थापन में प्रदेश सरकार की नामाकी को स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने स्वीकार करते हुए रायपुर में सौ बिस्तर वाले मेंटल हॉस्पिटल का प्रस्ताव देने की बात कही है. इसे आगामी बजट में शामिल किया जाएगा.

राजधानी सहित प्रदेश के अन्य शहरों में मानसिक रोगी यहां-वहां घूमते-फिरते कूड़ा-करकट से खाना उठाकर खाना खाते आसानी से नजर आ जाते हैं. तमाम कानूनी प्रावधान और प्राधिकरण के गठन होने के बावजूद मानसिक रोगियों के व्यवस्थापन वाली बात कहीं नजर नहीं आ रही है. हालत यह है कि आम लोगों को सामने आकर मानसिक रोगियों के उचित व्यवस्थापन करना पड़ रहा है. इस कड़ी में शिक्षिका भूमिका तिवारी और उसकी सहेलियों ने हफ्तेभर की मशक्क्त के बाद लल्लूराम डॉट कॉम की मदद से हॉस्पिटल पहुंचाया था.

मानसिक रोगियों की हालत को लेकर स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव से लल्लूराम डॉट कॉम ने चर्चा की. उन्होंने व्यवस्थागत परेशानियों को स्वीकार करते हुए कहा कि प्रदेश में सिर्फ बिलासपुर में ही मेंटल हॉस्पिटल है, जहां से लाने ले जाने में होने वाली समस्या से लोगों ने अवगत कराया था. सरकार व्यवस्था दुरुस्त करने का प्रयास कर रही है. उन्होंने कहा कि प्रदेश में अभी सिर्फ़ बिलासपुर के सेंदरी में 100 बिस्तर का हॉस्पिटल है. प्रदेश के सभी जिला अस्पतालों में काउंसलिंग डेस्क है, मिनांस के साथ AMU हुआ है, जिससे मानसिक रोगियों को काउंसलिंग हो, उपचार और व्यवस्थापन हो सके. इस तरह व्यवस्था बनाई गई है.

मंत्री ने कहा कि चौक-चौराहों में जो मानसिक रोगी दिखते हैं, उनको सीधा पकड़ लेना संभव नहीं होता. उनका और उनके परिजनों का सहमति ले पाने की प्रक्रिया बहुत कठिन है. फ़िलहाल, मनोरोगियों को बिलासपुर हॉस्पिटल भेजा जा रहा है. हॉस्पिटल फूल होने पर अन्य जगहों में स्थान बनाकर रखा जाता है. फिर भी ऐसे लोग दिखें तो मुझे भी सूचित कर सकते हैं, स्वास्थ्य विभाग को सूचित करें. मानसिक रोगियों के दाखिले में दिक्कत हो रही है, इस बात को नकारा नहीं जा सकता. जो सौ बिस्तर का हॉस्पिटल बना है, वो हाईकोर्ट के आदेश के बाद बनना है, जितनी तैयारी होना चाहिए उतनी तैयारी सरकार के पास नहीं है.

हेल्प डेस्क, एमरजेंसी नंबरों पर कॉल करने के कई घंटों बाद भी कोई सहायता नहीं मिलती, बल्कि एक दूसरे नंबरों पर कॉल फारवर्ड कर दिया जाता है. इस सवाल पर मंत्री सिंहदेव ने कहा कि व्यवस्थापन कठिन होता है. हेल्प टैक्स में वही पहुँचेंगे, जो समझदार होते हैं. मानसिक दबाव में हैं, जो मानसिक रोगी हो गए हैं, जो अपने नियंत्रण में नहीं हैं. समाज सेवी संस्था है, सरकार द्वारा गठित कमेटी है. बावजूद ऐसे प्रकरण में देरी हो जाती है. लेट क्यों होता ये तो समीक्षा के बाद पता चलेगा.

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