सत्यपाल सिंह राजपूत, रायपुर। मानसिक रोगियों के व्यवस्थापन में शासन-प्रशासन असफल साबित हो रहा है. कटघरे में मानसिक रोगी प्राधिकरण खड़ा है. शहर के चौक-चौराहों में भटक रहे मानसिक रोगी कूड़ेदान से खाना खाने को मजबूर हैं. ऐसी स्थिति में शिक्षकों की मदद से एक मानसिक रोगी अस्पताल पहुंचा है. कोरोना टेस्ट कराने के बाद आवश्यकतानुसार वृद्धाश्रम या मेंटल हॉस्पिटल पहुंचाया जाएगा.
प्रदेश में मानसिक रोग से ग्रसित या बेसहारा लोगों के सहारा बनने में सरकार और विभाग फेल साबित हो रही है, बल्कि ऐसे लोगों के देख रेख के लिए एक बजट होता है. आईपीसी से लेकर समाज कल्याण विभाग में कई नियम कानून है. विभाग में अधिकारी तैनात हैं, लेकिन काम नहीं हो रहा. नतीजा मानसिक रोगी शहर में घूमने, कूड़े में जीवन बसर करने के साथ कूड़ा-करकट में पड़ा खाना खाने को मजबूर हैं. ऐसे स्थिति में एक मानसिक रोगी को शिक्षिका भूमिका तिवारी और उसकी सहेलियों ने हफ्तेभर की मशक्क्त के बाद लल्लूराम डॉट कॉम की मदद से हॉस्पिटल पहुंचाया, जहां मानसिक रोगी का कोरोना टेस्ट होने के बाद हॉस्पिटल या वृद्धाश्रम में भर्ती किया जाएगा.
सवाल है कि जो काम प्रशासन को करना चाहिए, वह काम शिक्षकों को क्यो करना पड़ा है. इसका जवाब है कि मानसिक रोगियों के व्यवस्थापन के लिए बनाया गया मानसिक रोगी प्राधिकरण अपने काम में असफल है. और अगर गहराई में जाएंगे तो पाएंगे को सरकार जिम्मेदार है, जिसने प्राधिकरण तो बना दिया, लेकिन उसके व्यवस्थित काम के लिए पर्याप्त व्यवस्था नहीं की, यही वजह है कि प्राधिकरण गठन के बाद से अब तक अपने काम को अंजाम नहीं दे पाया है.
यहीं नहीं मानसिक रोगियों के जरूरी इलाज और देखभाल के लिए लूनेसी/ लूनेटिक एक्ट है, लेकिन जिम्मेदारों को मानसिक रोगियों का ख्याल ही नहीं है. इनकी देख रेख व्यवस्थापन के लिए मानसिक रोगी प्राधिकरण बनाया गया सदस्य भी नियुक्त किए गए हैं, लेकिन आज तक एक भी मानसिक रोगी का इलाज शुरू नहीं कराया जा सका है. स्वास्थ्य अधिकारियों की लापरवाही का आलम यह है कि जिले में घूम रहे मानसिक विक्षिप्त लोगों का आंकड़ा ही नहीं है.
क्या कहते हैं जिम्मेदार
कलेक्टर भारती दासन ने कहा कि ये समाज कल्याण विभाग का काम है सर्वे कर काम करते हैं लगातार काम जारी है अब भी ऐसे लोग हैं तो सर्वे कर आगे काम किया जाएगा. वहीं एसएसपी अजय यादव ने कहा थाना प्रभारियों को निर्देश दिया जाएगा कि जो मानसिक रोगी घूमते नजर आ रहे हैं, उनकी प्रशासन से संपर्क कर व्यवस्था करायी जाए.
नाम भरकर का रह गया है प्राधिकरण
मानसिक रोगी प्राधिकरण के सदस्य ममता शर्मा ने कहा कि प्राधिकरण सिर्फ कहने का रह गया है. एक साल बाद भी फंक्शन में नहीं, अभी तक कार्ययोजना नहीं बनी है, प्रदेश भर से फोन आते हैं, लेकिन उनको सहायता नहीं मिल रही है. कोई व्यक्ति मदद के लिए सामने आता है वो थक-हारकर मजबूरी में छोड़ कर भाग जाते हैं. पुलिस थाना को फोन करो तो 112 नंबर में फोन करने को बोलते हैं, 112 वाले हेल्थ विभाग 108 में फारवर्ड कर देते हैं. अधिकारियों को फोन करो तो हेल्थ विभाग से संपर्क करो, समाज कल्याण विभाग से फोन करने को बोलते हैं. ऐसे में कोई कैसे मदद करेगा. इसलिए व्यवस्था ठीक करना जरूरी है. प्राधिकारण बनाया गया है, तो उसे उनका अधिकार दें, कार्य योजना बनाएं.
क्या है लूनेटिक एक्ट
बेसहारा मानसिक रोगियों के लिए लूनेटिक एक्ट बना है. इसके तहत एसडीएम थाना स्तर पर बेसहारा मानसिक रोगी को पेश करने का निर्देश देंगे. पेश हुए रोगी के इलाज के लिए सिविल सर्जन या सीएमओ को निर्देशित कर सकते हैं. रोगी का परीक्षण व उपचार शुरू कर उसे जिला कारागार अधीक्षक के सुपुर्द किया जाएगा, जहां से उसे निकटवर्ती मानसिक रोग अस्पताल में भर्ती कराया जाएगा. रोगी की मनो:स्थिति ठीक होने के बाद परिजनों या परिचितों के पास भेज दिया जाएगा.
आईपीसी में भी है प्रावधान
मानसिक रोगी स्वयं भी अपराध के शिकार हो सकते हैं या उनके द्वारा भी कोई अपराधिक घटना कारित की जा सकती है. ऐसे रोगियों के खुलेआम घूमने से बड़ी समस्या की संभावना बनी रहती है. विकृत चित्त/ मानसिक रोगी द्वारा की घटना अपराध की श्रेणी में नहीं है. आईपीसी की धारा 84 में इसका प्रावधान किया गया है.