पुरुषोत्तम पात्र, गरियाबंद। कोरोना काल मे संक्रमण के खिलाफ फ्रंट लाइन में आकर काम किया, जब कोरोना से संक्रिमत हुआ तो खुद को नहीं बचा पाया देवभोग अस्पताल का मल्टीमेन सुभाष सिंदूर. डेली वेजेस की नौकरी होने की वजह से सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिला. यहां तक स्वास्थ्य विभाग ने कोरोना वारियर्स भी मानने से इंकार कर दिया. अब परिवार के 7 सदस्यों का बोझ लिए पत्नी व बेटा सहायता के लिए सरकारी दफ्तर का चक्कर लगा रहे हैं.

देवभोग समुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में कलेक्टर दर पर डेली वेजेस में स्वीपर पद पर वर्ष 2006 से कार्यरत सुभाष सिंदूर की मौत कोरोना संक्रमण के चलते 5 दिसम्बर को हो गई. सुभाष स्वीपर के साथ-साथ वाहन चालक भी था. कोरोना जांच में स्वास्थ्य कर्मियों के साथ रहकर अहम भूमिका निभाया, किट डिस्पोजल के अलावा अस्पताल प्रांगण को नियमित रूप से सेनेटाइज किया करता था. इमरजेंसी में कई कोरोना मरीजों को गरियाबंद स्थित कोविड अस्पताल सेंटर तक भी पहुंचाया. इस दरम्यान 30 नवम्बर को सुभाष बीमार हो गया. 2 दिसम्बर को उसके साथ उसकी मां गायत्री की रिपोर्ट कोरोना पॉजिटिव आए.

मां को कोविड सेंटर भिजवाने के बाद खुद होम आइसोलेट हो गया था, जहां 5 दिसम्बर को उसकी मौत हो गई. अस्पताल प्रबंधन केवल 10 हजार रुपए की सहायता राशि देकर अपनी जिम्मेदारी खत्म कर ली. कोरोना की लड़ाई में फ्रंट लाइन में खड़े होकर लड़ने वाले सुभाष को नियमित कर्मचारी नहीं होने के कारण उसे कोरोना वॉरियर भी मानने से इनकार कर दिया. अब पत्नी शांति अपने पति के समर्पण भाव से किए गए कार्यों का हवाला देकर मदद की गुहार लगाने सरकारी दफ्तरों की चक्कर लगा रही है. आज बेटे सूर्यकांत के साथ सीएमएचओ दफ्तर मदद की गुहार लेकर पहुंची थी. सीएमएचओ एनके नवरत्न ने कहा कि सुभाष मेहनती कर्मी था, जो भी प्रावधान में होगा, पूरी मदद की जाएगी.

घर चलाने वाला चल बसा,संकट में परिवार

सुभाष के पिता स्वास्थ्य विभाग में नियमित कर्मी थे, जिनकी 2018 में उनकी मौत हो गई. फिलहाल, 8 हजार रुपए पेंशन मिलता है. सुभाष एकमात्र कमाने वाला मुखिया था, उसके जाने के बाद उसकी पत्नी पर तीन जवान बेटी, दो बेटे व बूढ़ी सास के परवरिश की जिम्मेदारी आ गई है. बेटा एमकॉम कर रहा है. माँ की मांग है कि कोरोना वॉरियर मानकर परिवार के एक सदस्य को नौकरी दिया जाए.

पगार मामूली, कई काम अकेले कर्मी के जिम्मे

कहने के लिए सुभाष सिंदूर देवभोग अस्पताल का स्वीपर था, जिसे जीवनदीप समिति से पिछले 15 वर्षों से मामूली पगार पर काम पर रखा गया था. पगार बढ़ते-बढ़ते केवल 4500 रुपए तक पहुंचा, लेकिन हर काम मे पारंगत होने के कारण काम बढ़ते गया. स्वीपर के साथ चालक, ड्रेसर व चीरघर में भी विशेष स्वीपर का काम उसी मामूली पगार पर करता रहा.

अब पीएम के लिए होता है घंटों इंतजार

पोस्ट मार्टम के दौरान पिछले 15 वर्षोंं सुभाष की मौजूदगी अनिवार्य रहती थी, वही एकमात्र शख्स था, जिससे चिर-फाड़ के बाद ही डाक्टर एनालिसिस करते है. सुभाष के जाने के बाद अब यह काम करने वाला कोई नहीं है. पीएम की सूचना 80 किमी दूर मैनपुर अस्पताल के स्वीपर को सूचना देकर बुलाया जाता है. उसके आने तक पीएम की प्रक्रिया अटकी पड़ी रहती है.