सत्यपाल सिंह,रायपुर। जीवन देने वाला पानी गरियाबंद के सुपेबेड़ा में मौत का तांडव कर रहा है. लोग एक-एक करके मरते जा रहे हैं. अब तक सरकारी आंकड़ा के मुताबिक 90 लोगों की मौत हो गई है. लगभग 30 से ज्यादा लोग सिरियस है. मौत के कारण पता होने के बावजूद आज तक इसका समाधान नहीं हो पाया है. लोग मरते जा रहे और इस बीमारी की शिकार होते जा रहे हैं.

स्थानीय मुरली मनोहर ने बताया कि तेल नदी से प्रभावित 10 गांवों में पानी पहुंचाने का सरकार ने कहा था. समूह जल प्रदाय योजना भी स्वीकृत हुए साल हो गया है, लेकिन आज तक हमारे गांवों में पानी नहीं पहुंचा है. कुछ दिन तक इस प्रोजेक्ट के तहत काम चला उसके बाद काम को बंद कर दिया गया है. ऐसे में अब सरकार से भरोसा उठने लग गया है, जो आता है फोटो खिचाते हैं. बड़ी-बड़ी बात करते हैं. आस बंधा कर चले जाते हैं. साथ ही बताया कि ये दस गांव को लोग तिल तिल को मरने को मजबूर है, कोई देखने वाला नहीं है. आज हमारे गांव का हालात ऐसे है कि पानी पी रहे तो भी मर रहे हैं नहीं पी रहे तो मर रहे है.

डायलिसिस में सैकड़ों लोग

अपने मां-बाप, बहन-भाई, चाचा दादा करके अपने घर से 17 परिजनों को खोने वाले त्रिलोचन सोनवानी ने बताया कि तेल नदी का पानी अभी तक घोषणा ही रह गया है. अभी तक 90 लोगों की किडनी से मृत्यु हो चुकी है. तुकाराम क्षेत्रपाल एम्स हॉस्पिटल में जिन्दगी और मौत के बीच जंग लड़ रहा है. अभी तक 900 से अधिक बार का पेरोटोनिक डायलेसिस हो गया है.

परिजनों को नहीं मिली अनुकंपा की नियुक्ति

किडनी के बीमारी से 2 शिक्षक की मौत हुई है. जिनके परिजनों को अनुकंपा की नियुक्ति नहीं दी गई है. लालबन्धु क्षेत्रपाल सरकारी अधिकारी के पद में थे वह किडनी से करीब 4 साल ग्रसित थे, उनके मृत्यु करीब 1 साल से हो गया, परन्तु उनके परिवार के लोगों को अनुकंपा दी गई है और ना ही पेंशन मिल रहा है.

धुल खाता डायलिसिस मशीन

सुपेबेड़ा उप स्वास्थ्य केंद्र अभी 1 साल से अधिक हो गया, लेकिन आधा अधूरा काम हुआ है. देवभोग में लगे डायलिसिस मशीन को गरियाबंद शिफ्ट किया गया है, लेकिन बंद पड़ा है.

पानी बना जहर

सुपेबेड़ा के आस-पास 9 गांव को तेल नदी का पानी देने का घोषणा हुआ था. इन गांवों की पानी में फोलोराइत आर्सेनिक का ज्यादा मात्रा है, तो वहीं इसको साफ करने के लिए रुमुयल्ट प्लांट लगाया गया है, लेकिन जहां से साफ पानी सप्लाई नहीं हो रहा, इसलिए गांव के लोग प्लांट से निकलने वाले पानी को पीना बंद कर दिए हैं.

शिविर लगना भी बंद

ग्रामीणों ने बताया कि एक साल से ज्यादा हो गया है गांव जांच करने के लिए कोई नहीं आ रहा है, ना ही शिविर लग रहा है. साथ ही बताया कि 2017 से 2019 सप्ताह में एक बार शिविर लगता था जो अब बंद हो गया है.