व्रतों का जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है, व्रतों से ही जीवन की सार्थकता है. व्रत विहीन जीवन ब्रेक रहित गाड़ी की तरह है. जैन धर्म में साधकों के लिए 12 अणुव्रतों का वर्णन है, इन 12 व्रतों का पालन जैन धर्म के सभी अनुयायियों को करना चाहिये. अणुव्रत इसलिए कहे जाते हैं कि साधुओं के महाव्रतों की अपेक्षा वे लघु होते हैं.
पहला अणुव्रत है अहिंसा, अहिंसा का सामान्य अर्थ है ‘हिंसा न करना’. जब भी “हिंसा” की बात की जाती है, तब हम सिर्फ शरीर (मारना, हत्या, आदि )और वाणी (कठोर वचन, शब्द, आदि) को हिंसा समझा जाता है. परन्तु हिंसा का मतलब और भी गहरा होता है – जिसमें आत्म हिंसा और विचार हिंसा , जैसे आत्महत्या, क्रोध, लोभ, आदि की भावना भी हिंसा का मुख्य अंश होता है.
उदाहरण: किसी को मारना, पीटना, पालतू पशुओं और आश्रित कर्मियों को जरुरत से ज्यादा नियंत्रण में रखना, किसी पर अधिक भार लादना.
सोचने वाली बात यह है कि क्या अगर कोई जैन धर्म का अनुयायी, सरहद का सिपाही हो, तो क्या दुश्मनों से देश की रक्षा हेतु की गई हत्या हिंसा होगी ? हां वह हिंसा है लेकिन सैनिक अपने राष्ट्र कर्त्तव्य को निभा रहा है, इसीलिए जैन धर्म के अनुयायी के रूप में वह हिंसा नहीं करता.अन्य प्राणियों को कष्ट देकर सुख की आशा करना बबूल बो कर आम की आशा करने के जैसा है. जीव-हिंसा का पाप पृथ्वी के समस्त ऐश्वर्य के दान करने से भी कटा नहीं जा सकता है.
अहिंसा अणुव्रत को स्वीकार करने वाला व्यक्ति समस्त जीवों को अभय दान (सबसे बड़ा दान) देता है.