रायपुर. डॉक्टर को भगवान का दर्जा यूं ही नहीं दिया गया है. एक 22 दिन के बच्चे के ऑपरेशन में श्री गणेश विनायक आई हॉस्पिटल के डॉक्टरों ने जो भूमिका निभाई उसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता.

 कहानी है दामेश की, जो सिर्फ 22 दिन का ही था, पैदा होते ही बच्चे के दोनों आंखों में मोतियाबिंद हो गया. ये वही मोतियाबिंद बिमारी है जो बुजुर्गों को होती है और ऑपरेशन कराने से आंखों की रोशनी वापस लौट जाती है, लेकिन बच्चों के केस में ये मामला पूरा बदल जाता है, यदि कोई बच्चा जन्म से ही मोतियाबिंद का शिकार है तो परिजनों को जल्द ही उसके लक्षणों की पहचान कर उसका इलाज कराना चाहिए आप जितनी देर करेंगे उतना ही आपके बच्चों के आंखो की रौशनी जाने का खतरा होता है.

माता पिता को जब दामेश की बिमारी का पता लगा तो उन्होने श्री गणेश विनायक आई हॉस्पिटल पहुंचे. पिता ने सोचा कि छोटा बच्चा है ऑपरेशन करना सही नहीं होगा. लेकिन डॉक्टरों ने परिवारजनों का हौसला अफजाई करते हुए नवजात शिशु का सफल ऑपरेशन किया जिससे बच्चा अब स्वस्थ्य है जो दुनिया भी देख सकेगा.

श्री गणेश विनायक आई हॉस्पिटल के नेत्र सर्जन और निदेशक डॉ. चारुदत्त कलमकर ने जानकारी साझा करते हुए कहा दामेश को जन्मजात मोतियाबिंद था, उसकी वजह से उस बच्चे को कुछ भी दिखाई नहीं देता था. उनके माता पिता ने बच्चे के आंखों की सफेदी को देखकर हमसे चर्चा की. हमारी टीम के द्वारा बच्चे का सफल ऑपरेशन किया गया अब बच्चा पूरी तरह से स्वस्थ है.

डायरेक्टर डॉ अनिल गुप्ता ने कहा कि इस तरह कि बीमारी यदि किसी बच्चे को होती है तो उसकी पहचान करना सबसे मुश्किल काम होता है. यदि हमारे आंखों की पुतली के अंदर सफेद रंग का रिफ्लेक्स होता है तो बच्चे की आंखों में कुछ गड़बड़ है. हमें तुरंत नेत्र रोग विशेषज्ञ के पास बच्चे को लेकर जाना चाहिए. जिनकी विशेष जांच करने के बाद ही बीमारी का पता चलता है. समय रहते यदि आप ऑपरेशन करा ले तो भविष्य में बच्चे की आंखों की रोशनी को बचाया जा सकता है कई बार परिजन देर करते हैं कि बच्चा छोटा है लेकिन इससे आपके बच्चे की तकलीफ और भी बढ़ने का खतरा है.