पुरुषोत्तम पात्रा, गरियाबंद। केमिकल युक्त गुलाल सेहत को ज्यादा नुकसान पहुंचा सकता है. ऐसे में हर्बल गुलाल ग्रामीण अंचलों में आम आदमी तक आसानी से पहुंच जाए, इसलिए अमलीपदर के सिद्धि विनायक व बुढ़गेलटप्पा के गंगा माई स्वसहायता समूह द्वारा हर्बल गुलाल बनाया जा रहा है. अमलीपदर समूह की अध्यक्ष भारती पटेल ने बताया कि समूह की 11 सदस्य फिलहाल 50 कीलो गुलाल बनाएंगी।इतना ही मात्रा बुढ़गेल टप्पा की समूह द्वारा बनाया जा रहा है।सप्ताह भर पहले काम शुरु किया गया था।दोपहर 1 बजे से शाम 5 बजे तक काम मे जुटती है और रोजाना 3 से 5 किलो तक गुलाल तैयार हो रहा था,शुरुवाती दौर में अन्य जरुरी सामग्रियों को अरेंज करने में समय लगा।अब तक 20 किलो बना चुकी है.

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20 मार्च से बाजार में होगी उपलब्ध

दीपावली के समय फरसरा इलाके की महिला समूह दीया बाती तैयार कर बाजार में सफल हो चुकी है. ग्रामीण आजीविका मिशन की क्लस्टर प्रभारी निधि साहू ही इस बार होली में हर्बल गुलाल बनाने का प्रयोग कर रही हैं. गणतंत्र दिवस में अपने काम को लेकर जिला प्रसाशन से सम्मानित भी हुई है.

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निधि साहू ने बताया कि 20 तारीख के पहले समूह द द्वारा तैयार हर्बल गुलाल अमलीपदर के दुकान व साप्ताहिक बाजारों में बिकने लगेगा. इसको बनाने में 50 रुपये का लागत प्रति किलो आ रहा है, जिसे 70 व अधिकतम 80 रुपये किलो तक बेचेंगी. 10, 20 व 50 रुपए के पैकेट तैयार किया जा रहा है. दावा किया जा रहा है कि बाजारों में हर्बल गुलाल के नाम से 200 रुपए किलो तक बिकने वाले गुलाल को यह देशी मेड गुलाल टक्कर देगी.

निधि ने कहा की प्रयोग में सफल हुए तो अगले सीजन में अन्य ओर समूहों से बड़े पैमाने पर गुलाल तैयार कराया जाएगा. क्लस्टर के 25 पंचायत में 42 गाव है, जहां 792 समूह पंजीकृत है. अगरबत्ती, पेन, मछली पालन के अलावा समूह आजीविका के अन्य काम मे जुटी हुई है. गुलाल बनाने वाले समूह को आजीविका मिशन के तहत 1 लाख रुपए का लोन दिया गया है.

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ऐसा होता है हर्बल गुलाल तैयार

निधि साहू ने बताया कि गुलाल के बेस के लिए अरारोट पावडर का इस्तेमाल होता है. हरे रंग के लिए गोभी भाजी, पालक भाजी के रस का इस्तेमाल होता है. पीला रंग बनाने टमाटर व कच्चे हल्दी का इस्तेमाल किया है. लाल रंग के लिए लालभाजी, पलास फूल, टमाटर का रस निकाल कर आरारोट पावडर में मिक्स कर सुखाया जाता है. सुगन्ध के लिए परफ्यूम व एसेंस का मामूली इस्तेमाल होता है.