रायपुर. डीकेएस सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल में प्रत्येक गुरुवार को पार्किंसन्स डिजीज एवं मूवमेंट डिसऑर्डर क्लिनिक चलाई जा रही है.
न्यूरोलॉजिस्ट डॉ अभिजीत कुमार ने बताया की पार्किंसन्स डिजीज के मरीजों को जीवन पर्यंत इलाज आवश्यकता होती है. इलाज के साथ-साथ सामाजिक एवं फॅमिली सपोर्ट भी आवश्यक है. इस बीमारी में विशेष फिजियोथेरेपी का भी अहम रोल है.
Parkinson’s क्लिनिक को फिलहाल मरीजों से काफी अच्छा रिस्पॉन्स मिल रहा है. इसके अलावा गुरुवार एवं मंगलवार को बोटुलिनम टोक्सिन के इंजेक्शन भी लगाए जा रहे है. बोटुलिनम टोक्सिन के इंजेक्शंस से डिस्टोनिया, राइटेर्स क्रैम्प, एवं हेमिफेशिअल स्पाज्म (चेहरे का फड़फड़ाना) में काफी लाभ मिलता है. योजना अनुसार निकट भविष्य में इस बीमारी के लिए डीप ब्रेन स्टिमुलेशन (डीबीएस) सर्जरी की भी व्यवस्था की जा रही है ताकी मरीजों को दूसरे राज्यों में जाकर महँगी सर्जरी कराने कीआवश्यकता ना पड़े.
जाने क्या है ये बीमारी
डॉक्टरों के मुताबिक ये बीमारी जीवन के चौथे से छठे दशक में होती है. वहीं, 25 फीसदी मरीज ऐसे हैं जिनकी उम्र 25 वर्ष से भी कम है. इसे पीडी के नाम से भी जाना जाता है और ये बीमारी धीरे-धीरे बढ़ती चली जाती है. इसके मुख्य लक्षणों में आराम करते समय हाथ कांपना, हिलने-डुलने में धीमापन और हाथ पैर में अकड़न शामिल हैं. जैसे-जैसे ये रोग बढ़ता जाता है, वैसे-वैसे इससे संबंधित लक्षण भी विकसित होने लगते हैं.
कैसे होती है इस रोग की पहचान
डॉक्टरों के मुताबिक ये रोग का निदान विशेषज्ञों के लिए मुश्किल नहीं है, लेकिन शुरुआती अवस्था में ये मुश्किल हो जाता है. इस बीमारी की जटिलतताओं को रोकने के लिए ये जरूरी है कि इसका इलाज समय पर शुरू हो जाए. उन्होंने बताया कि इस बीमारी का इलाज लक्षणों के आधार पर किया जाता है. लक्षणों को जांचने के लिए मरीज के ब्रेन का एमआरआई, TRODAT स्कैन और FDG PET टेस्ट करवाने पड़ते हैं. शुरुआत में पीडी रोग का प्रबंधन देखभाल, जीवनशैली में बदलाव, व्यायाम और योग के द्वारा किया जा सकता है. हालांकि, बीमारी बढ़ने के साथ कई तरह के इलाज की जरूरत होती है जिसमें ब्रेन सर्जरी तक शामिल है.