बिलासपुर. छत्तीसगढ़ की राजनीति के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण संसदीय सचिव मामले की अंतिम सुनवाई हाईकोर्ट में शुरू हो गई है. चीफ जस्टिस राधाकृष्णन और शरद गुप्ता की युगल खण्डपीठ मे इसकी सुनवाई चल रही है.

इससे पहले हाईकोर्ट ने संसदीय सचिव के काम करने पर रोक लगा रखी है. याचिकाकर्ता मो.अकबर और राकेश चौबे का आरोप है ​कि संसदीय सचिव की नियुक्ति असंवैधानिक है. याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह पद आॅफिस आॅफ प्रॉफिट यानि लाभ का पद है. इसलिए संसदीय सचिवों की विधायकी भी जानी चाहिए. जबकि सरकार इस नियुक्ति को सही बात रही है. सरकार इसे एक बिल का हवाला देकर आॅफिस आॅफ प्रॉफिट के दायरे से बाहर बता रही है.

इस मामले में एक बड़ा पेच यह है कि इन सभी पदो पर संसदीय सचिवों की नियुक्ति मुख्यमंत्री ने थी. जबकि ऐसे पदो पर नियुक्ति का अधिकार राज्यपाल का होता है. इस मामले दिलचस्प मोड़ तब आ गया था जब मुख्यमंत्री ने आखिरी दौर की सुनवाई में हाईकोर्ट में आवेदन लगाकर कहा था कि उन्होंने जो फैसला लिया था वह मुख्यमंत्री के तौर पर लिया था. लिहाजा उन्हें व्यक्तिगत तौर पर पक्षकार न रखा जाये.

गौरतलब है कि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने असम और सिक्किम के मामलों में संसदीय सचिवों की नियुक्ति को असंवैधानिक माना है.इस मामले में हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी संसदीय सचिवों द्वारा शासकीय सुविधाओं का इस्तेमाल करने को लेकर मो. अकबर ने हाईकोर्ट की अवमानना का मामला भी दायर कर रखा है.

ये हैं छत्तीसगढ़ के 11 संसदीय सचिव

शिवशंकर पैकरा, लखन देवांगन,तोखन साहू, राजू सिंह क्षत्री, अंबेश जांगडे,रूप कुमारी चाैधरी, गोवर्धन सिंह मांझी, लाभचंद बाफना,मोती राम चंद्रवंशी, चंपादेवी पावले, सुनीती सत्यानंद राठिया.