प्रतीक चौहान. रायपुर. कोरोनाकाल में सबसे ज्यादा जिस दवा की चर्चा है उसका नाम है Remedesivir. ये दवा राजधानी रायपुर समेत पूरे प्रदेश और देश में शार्टेज है. लेकिन इस दवा की सप्लाई को लेकर छत्तीसगढ़ के अधिकारी भी कुछ खास रणनीति नहीं बना पा रहे है.

यही कारण है कि ये Remedesivir इंजेक्शन ब्लैक मार्केट में अब भी धडल्ले से बेचा जा रहा है और मरीज की मजबूरी का फायदा बिचौलिए उठा रहे है. कुछ दिनों पहले तक ये इंजेक्शन राजधानी की तमाम मेडिकल दुकानों पर उपलब्ध था. लेकिन अचानक बढ़े कोरोना मरीज के कारण ये दवा शार्टेज हो गई है. अब इस दवा सप्लाई सीधे उन कोविड सेंटरों में हो रही है जहां मरीज भर्ती है. लेकिन ऐसे में सवाल है उन मरीजों का जिन्हें अस्पताल में बेड भी नसीब नहीं हो पा रहे है और गंभीर मरीज जिन्हें डॉक्टरों ने ये इंजेक्शन लगाने की सलाह दी है वह इंजेक्शन भी नहीं खरीदकर लगवा पा रहे है. दवा कारोबार से जुड़े व्यापारी बतातें है कि मार्केट में अब भी रोजाना 4-5 हजार इंजेक्शन सप्लाई के लिए अलग-अलग तरीके से पहुंच रहे है.

इतना ही नहीं ड्रग कंट्रोलर विभाग अभी भी ये सिस्टम नहीं बना पाया है कि लोगों को ये आसानी से पता चल सके कि ये इंजेक्शन उन्हें कहां और किस मेडिकल में मिलेगा और इस इंजेक्शन का स्टॉक क्या है. यही कारण है कि इंजेक्शन लेने के लिए लोग दर-दर भटक रहे है.

क्योंकि जब भी मरीज के परिजन ये इंजेक्शन दवा दुकान में लेने पहुंच रहे है तो उन्हें एक ही जवाब मिलता है कि इंजेक्शन की सप्लाई नहीं हो रही है. लेकिन वहीं दूसरे दरवाजे से ब्लैक में मोटी रकम लेकर इस इंजेक्शन का स्टॉक करने वाले दुकानदार इन्हें ब्लैक में बेच रहे है और मरीज के परिजन मजबूरी में इसे खरीद अपने मरीज की जान बचा रहे है.

लेकिन इसी बीच कई डॉक्टर ये कह चुके है कि इस रेमडिसिविर इंजेक्शन की जरूरत हर कोरोना मरीज को नहीं है. लेकिन ये बात उन डॉक्टरों को समझनी चाहिए जो उन्हें ये इंजेक्शन लिखकर अपनी पर्ची में दे रहे है.

 सभी मेडिकल में मिलेगी तो नहीं होगी ब्लैक मार्केटिंग

एक दवा कारोबार से जुड़े व्यापारी ने बताया कि Remedesivir इंजेक्शन आधा दर्जन से अधिक कंपनियां बनाती है. जिसमें सब कंपनी की एमआरपी 900 रुपए से लेकर 4-5 हजार रुपए के बीच है. आलम ये है कि राजधानी के तमाम बड़े अस्पतालों में आपको ये रेमडेसिविर इंजेक्शन तो मिल जाएगा लेकिन मोटी रकम कमाने के लालच में वहां कम एमआरपी वाली कंपनी का इंजेक्शन नहीं मिलेगा. जिसका नुकसान मरीज को होता है. ऐसे में यदि इस इंजेक्शन को मार्केट के कुछ चुनिंदा मेडिकल स्टोर संचालकों को बेचने की अनुमति मिल जाएं तो मरीज को वहां से कुछ डिस्काउंट भी मिलेगा. लेकिन इसके लिए ड्रग्स कंट्रोलर विभाग को अपनी रणनीति तैयार करने की जरूरत है. इसी बीच सीजीएमएससी ने इस इंजेक्शन की सप्लाई के लिए टेंडर भी जारी किया है. वहीं कुछ कंपनियों ने 80-90 हजार इंजेक्शन सप्लाई का पत्र भी लिखा है, जिसमें अगले कुछ दिनों में रोजाना 10-20 हजार इंजेक्शन सप्लाई करने की बात कही गई है.

सरकारी अस्पतालों में भी इंजेक्शन की किल्लत

इस इंजेक्शन की किल्लत सरकारी अस्पालों में भी है. यही कारण है कि शासकीय अस्पताल जैसे अंबेडकर और एम्स के आस-पास स्थित मेडिकल स्टोर्स के पास से इस दवा के कालाबाजारी होने की खबरें ज्यादा सामने आ रही है. लेकिन बावजूद इसके ड्रग कंट्रोलर डिपार्टमेंट ऐसे मेडिकल स्टोर्स संचालकों के खिलाफ किसी भी प्रकार की कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है न अधिकारी वहां जाकर जांच कर रहे है.

क्या है Remdesivir ?

Remedesivir ये एक एंटीवायरल दवा है, जिसे अमेरिका की दवा कंपनी गिलियड साइंसेज ने बनाया है. इसे आज से करीब एक दशक पहले हेपेटाइटिस सी और सांस संबंधी वायरस (RSV) का इलाज करने के लिए बनाया गया था, लेकिन इसे कभी बाजार में उतारने की मंजूरी नहीं मिली. लेकिन कोरोना के इस दौर में रेमडेसिविर इंजेक्शन को जीवन रक्षक दवा के रूप में देखा जा रहा है. यही कारण है कि रेमडीसिविर इंजेक्शन को लोग महंगी कीमत पर भी खरीदने को तैयार हैं. रेमडेसिविर इंजेक्शन का इस्तेमाल कोरोना के गंभीर मरीजों के इलाज में किया जाता है. हालांकि, कोरोना के इलाज में इसके प्रभावी ढ़ंग से काम करने को किसी ने मान्यता नहीं दी है. नवंबर में WHO ने भी ये कह दिया था कि रेमडेसिविर कोरोना का सटीक इलाज नहीं है.

कोरोना संकट के बाद इसकी बिक्री में काफी उछाल आया है. भारत में इस दवा का प्रोडक्शन सिप्ला, जाइडस कैडिला, हेटेरो, माइलैन, जुबिलैंट लाइफ साइंसेज, डॉ रेड्डीज, सन फार्मा जैसी कई कंपनियां करती रही हैं. गिलियड साइंसेज(Gilead Sciences) कंपनी ने रेमडेसिविर को इबोला के ड्रग के रूप में विकसित किया था, लेकिन अब माना जाता है कि इससे और भी तरह के वायरस मर सकते हैं. इसमें नया नाम कोरोना वायरस का जुड़ गया है.