जेलों में कोरोना संक्रमण फैलने की आशंका के चलते सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी संख्या में कैदियों को रिहा करने का आदेश दिया है. कोर्ट ने कहा है कि सभी राज्यों में गठित हाई पावर्ड कमिटी पिछले साल जारी निर्देशों के मुताबिक कैदियों की रिहाई पर फैसला ले.

कोर्ट ने पुलिस से कहा है कि सात साल से कम सजा वाले अपराधों में अगर जरूरी न हो तो आरोपी को गिरफ्तार न किया जाए.

आइये विस्तार से जानते है इस पूरी खबर को

देश में कोविड-19 संक्रमण के बढ़ते मामलों पर संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार को जेलों में भीड़ कम करने का निर्देश दिया है. Court ने राज्यों से कहा कि जिन कैदियों को पिछले साल महामारी के कारण जमानत या पैरोल दी गई थी, उन सभी को फिर वह सुविधा दी जाए. सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि जिन विचाराधीन कैदियों को कोर्ट के पूर्व के आदेशों के अनुसार पैरोल दी गई थी. उन्हें फिर से 90 दिनों की अवधि के लिए एक पैरोल दी जा सकती है ताकि महामारी पर काबू पाया जा सकें.

और क्या कहा कोर्ट ने…

चीफ जस्टिस एनवी रमणा, जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस सूर्य कांत की एक बेंच ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बनाई गई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की उच्चाधिकार प्राप्त समितियों (HPC) द्वारा पिछले साल मार्च में जिन कैदियों को जमानत की मंजूरी दी गई थी, उन सभी को समितियों द्वारा पुनर्विचार के बगैर दोबारा वह राहत दी जाए, जिससे देरी से बचा जा सके. सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को जेलों में बंद कैदियों को पर्याप्त मेडिकल सुविधाएं मुहैया कराने का आदेश दिया है.

जेलों में होनी चाहिए नियमित टेस्टिंग- SC

Court ने जेलों में संक्रमण फैलने से रोकने के कदम उठाने की बात कहते हुए आदेश में लिखा है कि कैदियों और जेल कर्मचारियों की नियमित टेस्टिंग होनी चाहिए और जरूरत पड़ने पर उन्हें तुरंत इलाज उपलब्ध कराया जाए. कोर्ट ने यह भी कहा कि कुछ कैदी अपने सामाजिक पृष्ठभूमि के चलते या संक्रमित होने के डर से रिहा नहीं होना चाहेंगे. जेल प्रशासन को उनकी इस चिंता को भी ध्यान में रखना होगा.