शिवम मिश्रा, रायपुर।  जिंदगी के लिए ऊर्जा जरूरी है. ऊर्जा के लिए कोयला जरूरी है और कोयले की जरूरत पूरी करने के लिए खनन जरूरी है. मानव सभ्यता के विकास के इस क्रम में प्रकृति से समझौते के हालात बनते हमने देखे हैं. जंगलों को घटकर मैदान बन जाते हमने देखा है, बारूदी विस्फोट की आवाज में चिड़ियों की गुम होती चहचहाहट हमने देखी है, पहाड़ कटते और नदियों की दिशाएं बदलते देखी है, लेकिन इन तस्वीरों के बीच जब नाउम्मीदी हावी होने लगती है, तो सरगुजा के कोल माइंस में किए जा रहे अदाणी ग्रुप के प्रयास उम्मीद बांधते चलते हैं. आधुनिकीकरण के इस दौर में जब समझौते का विकल्प ढूंढा जा रहा है, तो अदाणी ग्रुप का प्रयास ही है, जो ‘ग्रीन माइनिंग’ के जरिए प्रकृति के साथ संतुलन की एक नई तस्वीर कैनवास पर खींचता नजर आता है.

 

परसा कोल ब्लाॅक इलाका बना ‘ग्रीन माइनिंग’ का मिसाल

सरगुजा का परसा कोल ब्लाॅक, जहां रोजाना सैकड़ों टन कोयले का खनन जारी है. खनन का निर्बाध रूप से जारी रहना देश के विकास की सबसे बड़ी जरूरत है. यकीनन इस जरूरत की बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है. रोजाना सैकड़ों पेड़ कट रहे हैं. दरअसल प्राकृतिक रूप से तैयार जंगल के नीचे ही काले सोने यानी कोयले का विशाल भंडार हैं, जिसे प्रकृति ने विकास के दोहन के लिए छोड़ रखा है. ऊर्जा की प्रतिपूर्ति के लिए खनन की जरूरत के बीच प्रकृति के साथ संतुलन बनाने के लिए दुनिया भर में शोध चल रहे हैं, इस बीच अडानी ग्रुप की ‘ग्रीन माइनिंग’ की कवायद ने एक नई दिशा दिखाई है.

20 अलग-अलग प्रकारों के वृक्षों का जंगल तैयार

खनन के बीच पर्यावरण संरक्षण को लेकर शुरू की गई यह पहल अब नतीजे दे रही है. अदाणी ग्रुप ने सरगुजा में ग्रीन माइनिंग के अपने मजबूत इरादे के बूते नर्सरी डेवलपमेंट की रणनीति पर काम शुरू किया. इन नर्सरियों में अब तक अलग-अलग स्पीशीज के सात लाख पौधे लगाए जा चुके हैं. इन पौधों को प्रभावित गांवों में लगाया जा रहा है. पौधे तेजी से बड़े वृक्ष का आकार ले रहे हैं. अदाणी ग्रुप ने हार्टिकल्चर के माध्यम से साल, नीम, साजा, महुआ जैसे 20 अलग-अलग प्रकारों के वृक्षों का जंगल तैयार किया है.

खनन प्रभावित जंगलों में ट्रांसप्लांटर मशीनों से वृक्षरोपण

नर्सरी में नए पौधों के अलावा अदाणी ग्रुप ने खनन प्रभावित जंगलों में ट्रांसप्लांटर मशीनों के जरिए रि प्लांटेशन की प्रक्रिया से वृक्षों को बचाने की पहल की है. इस कवायद में स्थानीय ग्रामीणों की सहभागिता से उन्हें आर्थिक तौर पर मजबूत भी बनाया है. सरगुजा में शुरू हुई यह नई पहल पर्यावरण के क्षेत्र में नई पहचान कायम कर रही है. स्थानीय ग्रामीण भी नर्सरी डेवलपमेंट में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. वे बताते हैं कि यह मेहनत और लगन का ही नतीजा है कि जिस तेजी से जंगल के पेड़ कट रहे हैं, उतनी ही तेजी से नए पेड़ तैयार किए जा रहे हैं, जिससे स्वच्छ हवा बह रही है.

अदाणी ग्रुप ने सात लाख से ज्यादा पेड़ लगाया

अदाणी ग्रुप ने साल 2012 से अब तक परसा कोल ब्लाॅक के एक बड़े इलाके में सात लाख से ज्यादा पेड़ लगाया है. ग्रुप के साथ काम कर रहे राजकुमार पांडेय बताते हैं कि खनन प्रभावित जंगलों में बड़े पेड़ों को ट्रांसप्लांटर मशीन से शिफ्ट करने से उन पेड़ों की उम्र बढ़ गई है. ऐसे करीब दस हजार पेड़ों का प्लांटेशन किया गया है. उन्होंने बताया कि नेटिस स्पीशीज के पौधे पर ही जोर दिया जाता है. साल, साजा, महुआ, जामुन, अर्जुन जैसे कई प्रकार के स्पीशीज डेवलप किए जा रहे हैं. उन्हें प्लांट किया जा रहा है. सकारात्मक पहल का ही असर है कि इस इलाके ने हरियाली की अपनी पहचान खत्म नहीं की है. यह पूरा इलाका अब भी हरा-भरा बना हुआ है.

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बेजान और उजड़ चुके जंगल की इबारत

मुमकिन था कि खनन के बाद परसा कोल ब्लाॅक का पूरा इलाका एक बेजान और उजड़ चुके जंगल की इबारत लिखता, लेकिन पेड़ों की मजबूत जड़ों की तरह अदाणी ग्रुप का मजबूत इरादा ही रहा, जिसने ग्रीन माइनिंग की अपनी कोशिश को एक न केवल एक मकसद दिया, बल्कि उसे साकार भी किया है.