मोहम्मद अकबर, वन मंत्री, छत्तीसगढ़ शासन. अभी कुछ दशक पहले तक गांवों के रोजमर्रा के कामों में लकड़ियों का भरपूर उपयोग होता था. भोजन तैयार करने से लेकर घर बनाने, तरह-तरह के कृषि-उपकरण तैयार करने और फसलों की सुरक्षा तक के लिए लकड़ियों अथवा वृक्षों की शाखाओं का इस्तेमाल हुआ करता था. निश्चित रूप से इसकी पूर्ति वृक्षों की कटाई से ही होती थी, यह सिलसिला सदियों तक चलता रहा. बाद में पर्यावरण को लेकर आई चेतना ने हमें लकड़ियों के स्थान पर वैकल्पिक साधनों को चुनने के लिए प्रेरित किया. हमने गांवों में भी वृक्षों की कटाई को लेकर तरह-तरह के प्रतिबंध लागू कर दिए, यहां तक कि निजी भूमि के वृक्षों की कटाई के लिए भी कड़े नियम लागू कर दिए. पर्यावरण को बचाए रखने की दिशा में हमारे द्वारा की गई कोशिशों को भी अब एक लंबा वक्त बीत चुका है. आज जब हम अपनी इन कोशिशों के परिणामों की ओर देखते हैं तो हैरान रह जाते हैं. वन क्षेत्रों का विस्तार उतनी तेजी से नहीं हो पाया, जितनी हमें अपेक्षा थी. हमने ग्रामीण क्षेत्रों में जिस तरह की हरियाली की कल्पना की थी, वैसी हरियाली नजर नहीं आती. पुराने दौर की खेतों, मेड़ों, बाड़ियों और निजी भूमि पर न तो हमें नये पेड़ नजर आते हैं, न नयी अमराइयां और न ही नये बाग-बगीचे. निश्चित रूप से हमारे उपायों में ही खामियां थीं.
असल में लकड़ियों की आवश्यकता और उसकी पूर्ति को लेकर गांवों में जो आत्मनिर्भरता थी, हमारे उपायों ने उसे ही खत्म कर दिया. किसान अपनी जरूरतें अपने खेतों और बाड़ियों से ही पूरी कर लिया करते थे, लेकिन वृक्षों की कटाई को लेकर लागू किए गए कड़े नियमों ने उन्हें हतोत्साहित किया. उन्हें अपनी निजी भूमि पर वृक्षों को रोपने और उन्हें पाल-पोसकर बड़ा करने में रुचि ही नहीं रह गई. परिणाम यह हुआ कि गांवों से वृक्षों के साथ-साथ जैविक विविधता भी लुप्त होती चली गईं, जिसका लाभ अंततः कृषि को ही मिला करता था.
ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि और कृषि-वानिकी के बीच जैसे-जैसे दूरियां बढ़ती गईं, वैसे-वैसे चिंताएं भी बढ़ती गईं. भारत सरकार द्वारा भी समय-समय पर राज्यों को निजी भूमि पर ईमारती, गैर ईमारती वृक्षों के रोपण तथा कृषि वानिकी को प्रोत्साहित करने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए जाते रहे हैं. इसी क्रम में राज्यों ने भी सुधारात्मक कदम उठाए. छत्तीसगढ़ में भी 22 प्रजातियों के वृक्षों के परिवहन के लिए परमिट की अनिवार्यता समाप्त कर दी गई. 09 जिलों में बांस प्रजातियों के परिवहन के लिए परमिट की अनिवार्यता समाप्त कर दी गई. निजी भूमि पर स्थित 04 प्रजातियों के वृक्षों की कटाई कर परिवहन के लिए परमिट जारी करने का अधिकार ग्राम पंचायतों को दे दिया गया…. लेकिन किसानों को अपनी भूमि पर वृक्ष रोपने तथा उन्हें सहेजने की दिशा में प्रेरित करने के लिए ये सुधारात्मक कदम भी पर्याप्त नहीं हैं. अपने खेतों में खड़े पेड़ों से उनको कोई लाभ नहीं मिल पा रहा है, इसलिए वे अपनी भूमि पर वृक्षारोपण करने का झंझट नहीं पालना चाहते.
ग्रामीण क्षेत्रों में वानिकी तथा कृषि वानिकी को बढ़ावा देने के उद्देश्य से राज्य शासन ने एक व्यापक सोच के साथ नयी रणनीति तैयार की है. इसी क्रम में मुख्यमंत्री वृक्षारोपण प्रोत्साहन योजना शुरु की जा रही है. इस व्यापक योजना के दायरे में राजीव गांधी किसान न्याय योजना को शामिल कर लिया गया है. नये प्रावधानों में किसानों को धान के बदले वृक्षारोपण के लिए प्रेरित किया जा रहा है. जिन किसानों ने खरीफ वर्ष 2020 में धान की फसल ली हो, तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य योजना के अंतर्गत धान विक्रय के लिए पंजीयन कराया हो और धान बेचा हो, यदि वे धान की फसल के बदले अपने खेतों में वर्ष 2021-22 तथा आगामी वर्षों में वृक्षारोपण करते हैं, तो उन्हें तीन वर्षों तक 10 हजार रुपए प्रति एकड़ प्रति वर्ष की दर से प्रोत्साहन राशि दी जाएगी. जिन खेतों में किसान वृक्षारोपण करते हैं, उनमें धान को छोड़कर वे इंटरक्राप के रूप में अन्य फसल भी ले सकते हैं. भविष्य में, अपनी निजी भूमि पर बोए गए वृक्षों की कटाई के लिए किसानों को किसी भी विभाग की अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं होगी.
छत्तीसगढ़ का 44 प्रतिशत भू-भाग वनों से आच्छादित है. विविध फसलों के लिए यहां का भूगोल समरूप नहीं है. कुछ दशकों पहले तक ज्यादातर मैदानी क्षेत्रों में धान की फसल ली जाती थी, शेष भू-भाग में स्थानीय परंपरा के अनुरूप फसलों की बोनी की जाती थी. लेकिन शासन द्वारा धान उत्पादक किसानों के कल्याण के लिए लागू की गई योजनाओं और कार्यक्रमों के कारण गैर-परंपरागत क्षेत्रों में भी धान के रकबे में तेजी से विस्तार हो रहा है. यह इसके बावजूद है कि वहां की भूमि धान के उत्पादन के लिए अनुकूल नहीं होने के कारण किसानों को लागत और मेहनत के अनुरूप आर्थिक लाभ नहीं हो पाता है. धान के नये खेत तैयार करने के लिए वृक्षों तथा वनों की कटाई करने की भी प्रवृत्ति बढ़ी है. राजीव गांधी किसान न्याय योजना के नये प्रावधान ऐसी प्रवृत्तियों को हतोत्साहित करते हुए, किसानों को वृक्षरोपण करने तथा भौगोलिक परिवेश के अनुरूप फसलें लेने के लिए प्रेरित करेंगे. इससे राज्य में फसल विविधीकरण की दिशा में किए जा रहे प्रयासों में भी तेजी आएगी. राज्य के वर्तमान वन-क्षेत्र को सहेजे रखने के साथ-साथ उन्हें समृद्ध करने तथा विस्तारित करने में मदद मिलेगी.
मुख्यमंत्री वृक्षारोपण प्रोत्साहन योजना के एक हिस्से के रूप में राजीव गांधी किसान न्याय योजना गांवों में कृषि तथा कृषि-वानिकी की परस्पराता को मजबूत करेगी. निकट भविष्य में गांवों तथा किसानों को आय का एक नया जरिया मिलेगा. गांवों और किसानों के घरों में समृद्धि के नये दरवाजे खुलेंगे.