कुमार इंदर, जबलपुर। मध्यप्रदेश सरकार के लिए सर का दर्द बन चुके ओबीसी आरक्षण को चुनौती देने और उसे लागू करने की याचिकाओं पर मंगलवार को फिर से हाइकोर्ट में सुनवाई होगी। लंबे समय से चल रहे इस मामले में याचिकाकार्ता हाइकोर्ट के सामने कई दलीलें रख चुके हैं, जबकि सरकार बढ़े हुए ओबीसी आरक्षण के पीछे एकमात्र वजह ओबीसी की आबादी बता रही है। पिछली सुनवाई में भी सरकार ने हाईकोर्ट में यह बात रखी थी कि, मध्य प्रदेश में ओबीसी वर्ग की आबादी 50 फीसदी से ज्यादा है, लिहाजा उसे बढ़ा हुआ 27 फ़ीसदी ओबीसी आरक्षण दिया जाना चाहिए।

50 फीसदी से ज़्यादा आरक्षण नहीं

कमलनाथ सरकार ने ओबीसी वर्ग का आरक्षण 14 से बढ़ाकर 27 फीसदी कर दिया था। सरकार के उस फैसले को जबलपुर हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी। आरक्षण का प्रतिशत बढ़ाने के फैसले के खिलाफ दायर की गई याचिकाओं में कहा गया है कि राज्य सरकार ने ओबीसी आरक्षण 14 से बढ़ाकर 27 फीसदी करके आरक्षण प्रावधानों का उल्लंघन किया है। याचिकाओं में ये भी कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी मामले में दिए गए फैसले में साफ किया था कि ओबीसी, एसटी और एससी वर्ग को मिलाकर कुल 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण नहीं दिया जा सकता। जबकि प्रदेश सरकार द्वारा ओबीसी आरक्षण बढ़ाकर 27 फीसदी करने से आरक्षण का दायरा 63 प्रतिशत पहुंच गया है। इससे पहले याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने जनवरी, 2021 में एक अंतरिम आदेश देते हुए बढ़ा हुआ 27 फीसदी आरक्षण देने पर रोक लगा दी थी। इसे हाईकोर्ट ने जारी रखा है।

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सरकार पर विपक्ष हमलावर

ओबीसी आरक्षण के मसले को लेकर कांग्रेस लगातार प्रदेश सरकार पर तीखे हमले बोल रही है। कांग्रेस सरकार पर ओबीसी वर्ग की अनदेखी का आरोप लगा रही है। जबकि कांग्रेस पार्टी जानती है कि, ये आरक्षण कितना न्याय संगत है। कांग्रेस शायद इस बात से वाकिफ है कि वह भाजपा को एक ऐसी समस्या देकर गई है, जिसे भाजपा न तो निगल पा रही है और न ही उगल पा रही है। और  कांग्रेस इसी बात का फायदा भी उठाना चाह रही। कांग्रेस जानती है कि, मध्यप्रदेश में ओबीसी का अच्छा खासा वोट बैंक है और कांग्रेस की नजरें उसी पर है।

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सुप्रीम कोर्ट के आदेश का है उल्लघंन

कानून के जानकार सरकार की इस दलील को सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन मानते हैं। ओबीसी के बढ़े हुए आरक्षण को सबसे पहले मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में चुनौती देने वाले याचिकाकर्ता के अधिवक्ता आदित्य संघी का कहना है कि, देश का संविधान और सुप्रीम कोर्ट के न्याय दृष्टांत किसी भी सूरत में बढ़ा हुआ ओबीसी आरक्षण लागू करने के दावों को सिरे से खारिज करते हैं। जहां तक सरकार द्वारा दी गई दलील का मसला है तो हाल ही में आए मराठा आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश से सरकार की यह दलील भी खारिज हो जाती है, जिसमें उच्चतम न्यायालय कहा गया है कि किसी भी सूरत में आबादी के लिहाज से आरक्षण नहीं दिया जा सकता।

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