रायपुर। छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के बाद सबसे बड़ा वर्ग जनसंख्या के लिहाज अनुसूचित जाति वर्ग का है. 12 प्रतिशत जनसंख्या वाले में एससी वर्ग के लिए प्रदेश में 10 सीटें आरक्षित है. एक वक्त था जब एससी वर्ग के लोग कांग्रेस के परंपरागत वोट माने जात रहे हैं. लेकिन कांग्रेस को लगता है कि आज भी सतनामी समाज का पूरा समर्थन उनके साथ ही है. ये और बात है कि बीते तीन चुनावों से आरक्षित सीटों पर कांग्रेस का जनाधार कम होते गया है. कांग्रेस के लिए सबसे बुरी स्थिति 2013 के चुनाव में रही. 2013 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 10 सीटों में से सिर्फ 1 में जीत मिली. जबकि भाजपा आज एससी वर्ग के सीटों में बेहद मजबूत हो चुकी है. 2013 में कांग्रेस के सरकार नहीं बन पाने की एक बड़ी वजह ये भी रही. क्योंकि कांग्रेस को लगता है कि अगर एससी वर्ग के सीटों में भाजपा और उनके बीच बंटवारा हो गया होता तो कांग्रेस की सरकार बन जाती है.
कांग्रेस ने 2018 को लेकर जो चुनावी रणनीति तैयार की है उसमें प्रदेश कांग्रेस प्रभारी पीएल पुनिया के सामने सबसे बड़ी चुनौती एससी वर्ग की सीटों में कांग्रेस की वापसी करानी है. पुनिया शांत स्वभाव के नेता है. लेकिन राहुल गांधी ने पुनिया को छत्तीसगढ़ के प्रभारी के लिए इसलिए भी चुना है कि पुनिया के शांत और प्रदेश के नेताओं की आक्रमता का ताल बैठाकर ऐसे वर्ग के बीच में उसी वर्ग के नेता को भेजा जाए जो शांति से समाज की बात को सुने, शांति से उनके मुद्दों पर विचार करें, शांति के साथ उनके बीच के मतभेदों को दूर करें, शांति से कांग्रेस के खोए जनाधार के कारणों को तलाश एक बड़ी खाई को पाटने का काम करे. कांग्रेस की वर्ग विशेष की रणनीतिक ढांचे में पुनिया बहुत हद तक फिट भी बैठतें है.
लेकिन सवाल यहीं है कि क्या पुनिया एससी सीटों पर कांग्रेस का जादू चला पाएंगे. इस सवाल का जवाब पुनिया के पहले दौरे के साथ उनके गुरू घासीदास बाबा की तपोभूमि जाने के बाद से ढूँढे जाने चाहिए. पुनिया छत्तीसगढ़ को पूरा समय देने की कोशिश कर रहे हैं. इसमें उनकी कोशिश खास तौर पर एससी वर्ग की सीटों को समय देने का भी है. हालांकि वे बस्तर में जनअधिकार सभाएं कर आदिवासी वर्गों के बीच महौल बना चुके हैं. लेकिन पुनिया को महौल और खास तौर पर खुद को साबित करने की असल चुनौती उनके अपने वर्ग के लोगों के बीच है. लिहाजा प्रदेश कांग्रेस ने गुरू घासीदास जयंती के सहारे उनके दौरे का एक विस्तृत कार्यक्रम तैयार किया.
मतलब बाबा के सहारे बाबा के अनुनाइयों के दिलों को पुनिया को जीतना है. पुनिया ने इसकी शुरुआत राजनांदगांव जिले के डोंगगढ़ विधानसभा से की है. फिर उन्होंने बेमेतरा के जिले के नवागढ़ विधानसभा में सभा की. पुनिया के इस दौरे में दुर्ग जिले का अहिवारा विधानसभा और रायपुर जिले का आरंग विधानसभा भी शामिल है. ये चारों ही सीट एससी वर्ग के लिए आरक्षित है और यहां से बीजेपी लगातार जीत रही है. इसके साथ ही पुनिया दो सामान्य विधानसभा सीट जांजगीर जिले के अकलतरा और बलौदाबाजार जिले के कसडोल विधानसभा सीट में आयोजित कार्यक्रम में भी शामिल होंगे. भले ही ये दोनों विधानसभा सीट सामान्य है, लेकिन यहां जीत-हार में एससी वर्ग भूमिका अहम है.
वैसे पुनिया के सामने चुनौती सिर्फ एससी वर्ग के लिए आरक्षित इन 10 सीटों का नहीं, बल्कि एससी वर्ग से प्रभावित उन 30 समान्य सीटों का भी जहां एससी वर्ग सामान्य सीटों अपनी मौजूदगी का एहसास राजनीतक दलों कराते हैं. लिहाजा कांग्रेस प्रभारी की कोशिश यही है कि 10 के बहाने 40 सीटों में कांग्रेस के जनाधार को फिलहाल जयंती के सहारे मजबूत कर लिया जाए. जाहिर है बाबा का आशीर्वाद अगर पुनिया को जयंती के बहाने मिला और जनसमर्थन अगर चुनाव में मतसमर्थन में बदल गया तो यह कांग्रेस के लिए सत्ता का दरवाजा खोल सकता है. लेकिन सवाल यही है कि क्या पुनिया जयंती के रास्ते जादू चला पाने में कामयाब रहेंगे ?